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    Home » 90 घंटे कामः कर्मचारियों को गुलाम बनाना चाहता है कॉरपोरेट?
    भारत

    90 घंटे कामः कर्मचारियों को गुलाम बनाना चाहता है कॉरपोरेट?

    By January 10, 2025No Comments7 Mins Read
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    इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र की बड़ी कंपनी एल एंड टी (लार्सन एंड टुब्रो) के चेयरमैन एसएन सुब्रमण्यन चाहते हैं कि लोग रविवार को भी काम करें। इससे पहले इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने भी सप्ताह में 70 घंटे काम करने की वकालत की थी। लेकिन सुब्रमण्यन तो उनसे आगे भी बढ़ गये और उन्होंने सप्ताह में 90 घंटे काम की वकालत कर डाली। इन दोनों दिग्गज उद्योगपतियों के समर्थन में कई और भी नामचीन उद्योगपति उतरे। लेकिन देश में इसकी व्यापक प्रतिक्रिया हो रही है। एक्स (ट्विटर) पर 90 घंटे काम ट्रेंड हो रहा है। लेकिन कॉरपोरेट जुमलेबाजों या जनता ने कभी यह पता लगाने की कोशिश की 8 घंटे मजदूरी या नौकरी करने का अधिकार कितने संघर्ष से मिला था। दास प्रथा तो खत्म हो गई लेकिन कॉरपोरेट गुलामी की ओर भारत को धीरे-धीरे बढ़ाया जा रहा है। ऐसे जुमलेबाजों का वेतन जानकर आप हैरान रह जायेंगे। इस रिपोर्ट में इन तमाम मुद्दों का जिक्र किया जा रहा है। शर्त है पूरा पढ़ने की।

    क्या कहा था सुब्रमण्यन ने

    एल एंड टी के चेयरमैन एसएन सुब्रमण्यन ने एक बातचीत के दौरान कहा कि अगर उन्होंने अपने कर्मचारियों से रविवार को काम करवाया होता तो उन्हें ज्यादा खुशी होती। उनके इस बयान का वीडियो क्लिप Reddit पर साझा किया गया था और यह फौरन ही वायरल हो गया।

    एसएन सुब्रमण्यन ने कहा, “मुझे अफसोस है कि मैं आपसे रविवार को काम नहीं करा पा रहा हूं। अगर मैं आपसे रविवार को काम करा सकूं तो मुझे ज्यादा खुशी होगी, क्योंकि मैं रविवार को काम करता हूं। आप घर बैठे क्या करते हैं आप अपनी पत्नी को कब तक घूर सकते हैं। पत्नियाँ कब तक अपने पतियों को घूरती रहेंगी चलो, दफ्तर जाओ और काम करना शुरू करो।”

    कितना वेतन पाते हैं चेयरमैन साहब

    लार्सन एंड टुब्रो के चेयरमैन एसएन सुब्रमण्यन ने 2023-24 में कुल ₹51 करोड़ का वेतन लिया। यानी उन्हें रोजाना 14 लाख रुपये वेतन मिलता है। सुब्रमण्यन का वेतन एलएंडटी के कर्मचारियों के औसत वेतन का 534.57 गुना है। 2023-24 में उनके वेतन में ₹3.6 करोड़ मूल वेतन, पहले से तय राशि ₹1.67 करोड़ और कमीशन के रूप में ₹35.28 करोड़ शामिल थे। उन्हें ₹10.5 करोड़ का रिटायरमेंट लाभ भी मिला, जिससे कुल राशि ₹51 करोड़ हो गई।

    “

    सुब्रमण्यन को वित्तीय वर्ष 23-24 में जो ₹ 51.05 करोड़ मिले, वो उनको उससे पिछले साल मिले पैसे की तुलना में 43% ज्यादा हैं। क्या उनकी कंपनी के किसी कर्मचारी की वेतन वृद्धि उसी साल 40% भी हुई। और उसी साल उसी कंपनी के कर्मचारी सैलरी कितने फीसदी बढ़ी थी। उनकी वेतन वृद्धि पिछले साल (23-24) सिर्फ 1.32% हुई थी।


    बॉलीवुड की जानी-मानी एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण ने इस मुद्दे पर बोलने का साहस किया। दीपिका ने सोशल मीडिया पर लिखा- “इतने वरिष्ठ पदों पर बैठे लोगों को ऐसे बयान देते देखना चौंकाने वाला है।” उन्होंने हैशटैग ‘मेंटल हेल्थ मैटर्स’ के साथ इसे लिखा। 

    सोशल मीडिया पर सुब्रम्णयन की आलोचना करते हुए हजारों लोगों ने एक स्वर में यही बात कही कि एल एंड टी चेयरमैन और एमडी ने एक औसत कर्मचारी की तुलना में बहुत अधिक कमाया। इसलिए उन्हें घरेलू जिम्मेदारियों के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। यही वजह है कि उन्हें काम पर समय बिताने के लिए आजाद छोड़ दिया गया है। कुछ लोगों ने चुटकी भी ली है कि न तो उन्हें अपनी पत्नी को घूरने की जरूरत है और न ही उनकी पत्नी को एमडी साहब को घूरने की जरूरत है।

    ऐसा नहीं है कि सारे उद्योगपति आंख बंद कर इसका समर्थन कर रहे हैं। उद्योगपति हर्ष गोयनका ने बहुत पते की बात करते हुए गुलाम शब्द का इस्तेमाल किया है। हर्ष गोयनका ने लिखा है- सप्ताह में 90 घंटे क्यों न रविवार का नाम बदलकर ‘सन-ड्यूटी’ कर दिया जाए और ‘दिन की छुट्टी’ को एक पौराणिक अवधारणा बना दिया जाए! मैं कड़ी मेहनत और होशियारी से काम करने में विश्वास करता हूं, लेकिन जीवन को लगातार ऑफिस शिफ्ट में बदल देना यह थकावट का नुस्खा है, सफलता का नहीं। वर्क लाइफ बैलेंस वैकल्पिक नहीं है, यह आवश्यक है। ख़ैर, यह मेरा विचार है! #वर्क स्मार्ट नॉट स्लेव। बता दें कि हर्ष गोयनका आरपीजी ग्रुप के चेयरमैन हैं। जिनमें 15 से ज्यादा कंपनियां शामिल हैं। उनका कुल कारोबार 4.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। वो फोर्ब्स की अमीरों की सूची में भी शामिल हैं।

    90 hours a week Why not rename Sunday to ‘Sun-duty’ and make ‘day off’ a mythical concept! Working hard and smart is what I believe in, but turning life into a perpetual office shift That’s a recipe for burnout, not success. Work-life balance isn’t optional, it’s essential.… pic.twitter.com/P5MwlWjfrk

    — Harsh Goenka (@hvgoenka) January 9, 2025

    बहुत आसान नहीं था 8 घंटे ड्यूटी का अधिकार पाना

    1850 के दशक में दुनिया भर में आठ घंटे की ड्यूटी के लिए संघर्ष हो चुके हैं। मजदूरों को इस मांग पर पीटा गया। ऐसे अत्याचार हुए कि अगर उसे यहां लिखा जाये तो बहुत बड़ी रिपोर्ट हो जायेगी। इस मांग पर ऐतिहासिक मई दिवस 1884 में पिट्सबर्ग कन्वेंशन में विचार हुआ। श्रमिक संगठनों ने कहा कि “1 मई, 1886 से आठ घंटे की कानूनी ड्यूटी होगी।” इस सम्मेलन में अधिक अवकाश, बेहतर जीवन स्तर और बेहतर मजदूरी की दिशा को लेकर तमाम प्रस्ताव पास किया गया। इसके बाद 8 घंटे की ड्यूटी को धीरे-धीरे सभी देशों में लागू कर दिया गया।

    पूंजीवादी व्यवस्था कैसे काम करती है। 8 घंटे ड्यूटी का संघर्ष उसका उदाहरण है। दुनिया के तमाम देशों और ब्रिटिश उपनिवेश के देशों में 1800 के बाद दास प्रथा को खत्म कर दिया गया लेकिन लोगों को 8 घंटे की ड्यूटी नहीं मिली। उन्हें पहले की तरह ही बिना आराम किये हफ्तों काम करना पड़ता था। भारत में दास प्रथा 1843 में खत्म हुई थी।

    क्या है इरादा साहब

    नारायण मूर्ति का 70 घंटे काम करने वाला बयान जब आया था। तो उस समय ओला के भाविश अग्रवाल, जिंदल स्टील वर्क्स ग्रुप के सज्जन जिंदल और एलएंडटी के चेयरमैन एमेरिटस एएम नाइक जैसे बिजनेस दिग्गजों ने सार्वजनिक रूप से 70 घंटे के कार्य सप्ताह के प्रस्ताव का समर्थन किया था। लेकिन काम के घंटे बढ़ाने की बहस का फिर से उठना पूंजीवादी शासक वर्ग के आठ घंटे के कार्य दिवस को छीनने के अथक प्रयास को उजागर करता है। उसे 8 घंटे की ड्यूटी की श्रमिक वर्ग की जीत अब चुभ रही है।

    2019 में मोदी सरकार का लेबर कोड

    मोदी सरकार ने दोबारा सरकार बनने के बाद 2019 में श्रम संहिता (Code of Wages, 2019) जारी की। जिसमें ड्यूटी को 12 घंटे तक करने की अनुमति दी गई। इसमें कंपनियों को मनमाने तरीके से छंटनी की छूट दी गई।ट्रेड यूनियनों ने आशंका जताई कि कंपनी मालिकान इसका दुरुपयोग करके श्रमिकों से निर्धारित आठ घंटे से अधिक काम करवायेंगे। ट्रेड यूनियनों के विरोध के कारण ये श्रम संहिताएं फिलहाल रुकी हुई हैं। कहा जा रहा है कि लंबी ड्यूटी से उत्पादकता बढ़ती है। लेकिन इस पर बहस जारी है। लेकिन कहीं न कहीं मोदी सरकार के लेबर कोड का संबंध इन कॉरपोरेट जुमलेबाजों से है।

    अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) का कहना है कि भारत के पास पहले से ही दुनिया में सबसे मेहनती कार्यबल है। आईएलओ की रिपोर्ट है कि, 2023 में, दुनिया की दस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारतीयों का औसत कार्य सप्ताह सबसे लंबा था। सिर्फ कतर, कांगो, लेसोथो, भूटान, गाम्बिया और संयुक्त अरब अमीरात में भारत की तुलना में औसत कामकाजी घंटे अधिक हैं, जो दुनिया में सातवें नंबर पर आता है। हालाँकि, उन देशों की उत्पादकता कम है। जाहिर है, पहले से ही लंबे कार्य सप्ताहों के बावजूद उत्पादकता की समस्या बनी हुई है। दूसरी करफ नॉर्वे, फ़िनलैंड, स्विटज़रलैंड आदि जैसे कई अन्य देशों में जहां काम के घंटे कम हैं, उन्होंने उच्च श्रम उत्पादकता हासिल की है।

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