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    Home » महाकुंभ भगदड़ के दोषी श्रद्धालु हैं, वीवीआईपी नहीं!
    भारत

    महाकुंभ भगदड़ के दोषी श्रद्धालु हैं, वीवीआईपी नहीं!

    By February 2, 2025No Comments6 Mins Read
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    तो आ गए न श्रद्धालु, आप भी लपेटे में! आना ही था। अंततः तो दोषी वही होता है, जो साधारण है, निर्बल है, निरपराध है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनके अधिकारी कह रहे हैं कि प्रयागराज के महाकुंभ में मौनी अमावस्या को जो लोग मारे गए, घायल हुए, कुचल कर भी किसी चमत्कार से बच गए, दोषी वे ही थे। दोषी वे थे क्योंकि सरकार की व्यवस्था तो पुख्ता थी। हर जगह कैमरे ही कैमरे थे।

    यह लोगों की जिद थी कि हम भी वीवीआईपियों की तरह त्रिवेणी संगम पर ही स्नान करेंगे, जबकि उनके लिए दूसरे घाट थे पर वे नहीं माने। हम इतनी दूर से, इतने कष्ट झेलकर आए हैं तो नहाएंगे तो यहीं। प्रयागराज आकर उनकी आकांक्षाएं- इच्छाएं भी वीवीआईपी हो गई थीं!

    ये भी उतना ही पुण्य कमाना चाहते थे, जितना कि साधु-संत, नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्रिमंडल के सदस्य, हेमा मालिनी, बाबा रामदेव आदि संगम पर नहाकर कमा रहे थे। ये नहाने में समाजवाद चाहते थे, वर्जित फल का स्वाद चखना चाहते थे।

    धरती पर इनकी जो भी स्थिति हो मगर स्वर्ग जाकर ये इन महामानवों की बराबरी करना चाहते थे। अपने मेहनती बदन की ‘बू’ से त्रिवेणी के जल को ‘अपवित्र’ करना चाहते थे। मिल गया न इसका नतीजा तुरंत! सामने आ गया न इसका परिणाम! अपनी हैसियत भूलोगे तो जहां जाओगे, नतीजा यही होगा।

    जो धरती पर संभव नहीं है, उसे स्वर्ग में संभव करना चाहोगे तो यही होगा वीवीआईपी और सामान्य जन का भेद यहाँ नहीं मिटा सकते मगर वहाँ मिटाना चाहोगे तो और होगा भी क्या यही होगा, जो हुआ। इन्हें पता नहीं था कि वीवीआईपी कहीं भी जाए, धरती पर रहे या ऊपर जाए, वह वीवीआईपी रहता है। उससे बराबरी की चाह पागलपन है। इसलिए कुल तीस मरे या सौ, घायल साठ हुए या दो सौ, गलती श्रद्धालुओं की है। मरना उन्हें ही था, किसी वीवीआईपी को नहीं! उसे तो खरोंच भी लग जाती तो सरकार खून बहा देती!

    सरकार- यह सरकार -कभी कोई गलती नहीं कर सकती। यह गलती प्रूफ सरकार है। उसने संगम तक पहुंचानेवाले सभी पंटून पुल अपने और अपनों के लिए कब्जे में कर रखे थे, यह उसका अधिकार था, उसकी ग़लती नहीं!

    प्रयागराज के कमिश्नर आधी रात को माइक से लोगों से आह्वान कर रहे थे कि उठो श्रद्धालुओ, जागो और अभी से स्नान करने चले जाओ। सुबह भगदड़ मच सकती है। यह उनकी ग़लती नहीं थी।

    वैसे भी भारत देश में ग़लती सरकारें नहीं करतीं। जब ग़लती करने के लिए देश में लगभग डेढ़ अरब लोग आसानी से उपलब्ध हैं तो ग़लती सरकार क्यों करें गलती का बोझ अपने सिर पर क्यों उठाए अगर वह सरकार हिंदुवादी है, तब तो उसकी गलती होने का प्रश्न नहीं! गलती महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू करते थे, गलती मोदी और योगी नहीं कर सकते! ये और सबकुछ करते हैं मगर गलती नहीं करते, झूठ नहीं बोलते, सच नहीं छुपाते! इन्होंने महाकुंभ में सारे इंतजाम ‘विश्व स्तर’ के किए थे। जो लोग विश्व स्तर के थे, उनके लिए उस स्तर के प्रबंध थे। जो एक लाख रुपए, अस्सी या पचास हजार रुपए रोज खर्च कर सकते थे, जो सत्ता के लगुए-भगुए थे, उन्हें कोई समस्या नहीं हुई क्योंकि उनके लिए प्रबंध ‘विश्व स्तर’ का था। उनकी सेवा में सब हाजिर था, त्रिवेणी उनकी बगल में उपस्थित थी। पानी साफ था। घाट सुंदर और सुरक्षित थे।

    जो विश्व क्या भारत स्तर के भी नहीं थे, गांव या कस्बा स्तर के थे। वे सच्चे श्रद्धालु होंगे तो भी वे थे तो फटेहाल या फटेहाल से कुछ ऊपर थे, उनके साथ व्यवहार भी उसी स्तर का हुआ। उनके लिए विश्व स्तर के इंतज़ाम कैसे किए जा सकते थे उनकी आदतें बिगाड़ी नहीं जा सकती थीं वरना गांव जाकर वे परेशान होते, कुंठित होते! उनके लिए गीली जमीन थी, ऊपर खुला आसमान था। ठंड थी भुगतने के लिए, पुलिस का डंडा था उन्हें सोते से जगाने के लिए मगर पंटून पुल नहीं थे संगम तक जाने के लिए।

    अब जो देखो, वीआईपीवाद- वीआईपीवाद को कोसने लगा है। कोसो, खूब कोसो! तुम्हें हमने 2014 में ‘आजादी’ इसीलिए तो दिलाई थी कि तुम आओ और कोसो! 2024 में ‘सच्ची आजादी’ इसीलिए तो हमने दिलाई कि तुम हमारे इंतजाम की धज्जियां उड़ाओ और हमें कोसो! कुंभ में तुम्हें हमने इसीलिए तो बुलाया था कि हमें कोसो! हमारे एहसानों का बदला, लाभार्थियों, तुम इस तरह दे रहे हो! 

    दुनिया में हमें बदनाम करनेवाले ‘बदमाशों’ के गिरोह में तुम भी शामिल हो गए हो!

    अरे क्या मोदी जी, शाह जी, राजनाथ जी, योगी जी, हेमा जी, आदि जी- इत्यादि जी, तुम्हारी तरह बीस बीस – पच्चीस पच्चीस किलोमीटर पैदल चल कर संगम तक नहाने जाते अपने सिर पर पुटलिया या झोला रखकर चलते योगी मंत्रिमंडल के सदस्य एक रस्से में खुद को बांध कर वहां जाते कि कहीं मुख्यमंत्रीजी, मंत्रियों से बिछड़ न जाएं, कहीं खो न जाएं! तुम क्रांति करने आए थे या पवित्र स्नान करने!

    क्या हम इनकी कारें या हवाई जहाज शहर से कहीं बहुत दूर रोक लेते इनसे कहते कि जाओ अब तुम भी 10-20-25 किलोमीटर पैदल! क्या मौनी अमावस्या के दिन आधी रात को इन्हें जमीन पर लेटाते और लोगों को इनके ऊपर पांव रखकर कुचलते हुए जाने की सुविधा देते 

    और सुनो हमारा नारा जो भी हो, भाषणों में हम जो भी कहते हों, सच यह है कि यह देश, इसकी सारी संपदा, इसकी सारी सुविधाएँ केवल और केवल वीआईपियों के लिए है। यह देश पहले भी उनका था, उनका है और आगे भी उनका रहेगा। पांच किलो मुफ्त अनाजवाला जहां भी जाएगा, पांच किलो वाला ‘सम्मान’ ही पाएगा। लात ही खाएगा, घूंसे ही खाएगा, भगाया और दुरदुराया ही जाएगा। कुचला ही जाएगा! और हमें विश्वास है कि फिर भी वोट देने हमें ही आएगा! समझे कुछ, लोकतंत्र का मतलब!

    और सुनो श्रद्धालुओ, आगे से तुम्हें आना हो तो आना वरना पोखर के पानी को त्रिवेणी का जल समझकर वहीं नहा लेना! यहां आना तो आकर रोना मत। अपने घायलों को और मृतकों को ढूंढने अस्पताल -अस्पताल जाने की हिम्मत हो तो दुबारा आना। अगली बार हम न होंगे मगर जो भी होगा, हम जैसा ही होगा! हमारी ही प्रतिकृति होगा! इसलिए सोच-समझकर आना। छाती पीटने मत आना!

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