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Alwar Ka Khanzada Maqbara: अलवर का खोया हुआ ख़ानज़ादा मक़बरा उन शाही कहानियों और विरासतों का प्रतीक है, जिन्होंने राजस्थान के समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर को आकार दिया है। यदि आप कभी दिल्ली या जयपुर की यात्रा पर हों, तो अलवर की इस अद्भुत धरोहर को देखने का अवसर अवश्य प्राप्त करें।
अलवर का इतिहास और नामकरण (History and Naming of Alwar)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के जनक मेजर जनरल सर अलेक्ज़ेंडर कनिंघम के अनुसार, अलवर नाम का उद्गम सलवा जनजाति से हुआ था। पहले इसे सलवापुर, फिर सलवार तथा हलवार कहा जाता था, अंततः इसे अलवर कह लिया गया। मध्ययुग में अलवर और उसके आस-पास के क्षेत्रों पर यदुवंशी राजपूतों का शासन था। दिल्ली में सुल्तानों के शासनकाल के दौरान, राजा सोनपर पाल ने इस्लाम अपना लिया था। उस समय अलवर मेवात क्षेत्र की राजधानी रहा करता था, जिसमें नूह (अब हरियाणा) और भरतपुर (अब राजस्थान) शामिल थे। धर्म परिवर्तन के पश्चात् यह शासक परिवार ख़ानज़ादा राजपूतों के नाम से पहचान में आने लगा। प्रारंभ में उनकी राजधानी इंदौरी, कोटला और तिजारा पर स्थित थी, लेकिन बाद में उन्होंने अपने राज्य का विस्तार कर अलवर को अपनी राजधानी बना लिया।
ख़ानज़ादा ख़िताब की उत्पत्ति
ख़ानज़ादा ख़िताब को लेकर दो प्रमुख दृष्टिकोण प्रचलित हैं।
सबसे पहले, यह ख़िताब दिल्ली के सुल्तान द्वारा दिया गया था। ‘ख़ानज़ादा’ शब्द का मूल रूप ‘ख़ान जदु’ (मालिक, भगवान) से निकला है।
दूसरी बात के अनुसार, इसे मूल रूप से ‘ख़ानज़ाद’ (अर्थात् गुलाम) कहा जाता था, जिसे बाद में एक परिवर्तित रूप में ख़ानज़ादा कहा जाने लगा। मेवाती प्रमुख को यह ख़िताब तभी प्रदान किया गया जब उसने दिल्ली के सुल्तानों की अधीनता स्वीकार कर ली थी।
अलवर का शाही इतिहास और ख़ानज़ादा मक़बरा (Royal History and Khanzada Tomb of Alwar)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
राजस्थान में अलवर अपने ख़ूबसूरत महलों, क़िलों और टाइगर रिज़र्व के लिए प्रसिद्ध है। कभी यह कछवाह महाराजाओं का सत्ता केंद्र रहा करता था, जिसकी शाही झलक इसके अवशेषों में हर जगह देखी जा सकती है। अलवर स्टेशन के पास स्थित एक शानदार मक़बरा है, जिसका इतिहास में बहुत कम ज़िक्र होता है। यह मक़बरा ‘ख़ानज़ादा’ का है, जो मुग़लों के आगमन से पहले अलवर में शासन करता था। इसे अलवर शहर में ‘फ़तेह जंग का गुंबद’ या ‘फ़तेह जंग का मक़बरा’ के नाम से जाना जाता है। दुर्भाग्य से अधिकांश सैलानी इस अद्भुत मक़बरे के बारे में अनभिज्ञ रहते हैं।
अलवर की भौगोलिक स्थिति और आधुनिक महत्व (Geographical Location and Modern Importance of Alwar)
दिल्ली से जयपुर की ओर जाते समय, अलवर राजस्थान का पहला ज़िला और शहर होने के नाते आपका स्वागत करता है। यह शहर दिल्ली और जयपुर दोनों से लगभग 150 कि.मी. की दूरी पर स्थित है, जिससे इसका भौगोलिक स्थान दोनों नगरों के मध्य होने का महत्व रखता है। अलवर न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि यह आधुनिक पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र है।
राजनीतिक संघर्ष और युद्ध
ख़ानज़ादा हसन ख़ान मेवाती (Khanzada Hasan Khan Mewati) अपनी सेना लेकर आया और मेवाड़ के राणा सांगा के नेतृत्व में युद्ध लड़ा। राणा सांगा (Rana Sanga) की सेना में कुल दो लाख सैनिकों की विशाल संख्या थी, लेकिन इतनी बड़ी सेना होने के बावजूद राणा सांगा की लड़ाई हार गई। इसी हार के साथ भारत में मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की नींव रखी गई। हसन ख़ान मेवाती इस रणभूमि में मारा गया, और उसके ख़ानज़ादा ने मेवाती क्षेत्रों को मुग़ल साम्राज्य के अंतर्गत सौंप दिया गया।
मुग़ल दरबार में ख़ानज़ादा परिवार का स्थान
युद्ध के बाद, ख़ानज़ादा परिवार को सम्मान के साथ मुग़ल दरबार में नौकरियां दी गईं। मुग़लों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित हो गए थे। ऐसा माना जाता है कि बाबर के बेटे हुमायूं ने, बाबर द्वारा मारे गए हसन ख़ान मेवाती के भतीजे जमाल ख़ान की बड़ी बेटी से गुपचुप शादी की थी। इसी के साथ, हुमायूं ने अपने मंत्री बैरम ख़ान की भी उसी मेवाती ख़ानज़ादा की एक छोटी बेटी से शादी करा दी थी। हसन ख़ान मेवाती के वंशजों में से एक फ़तेह जंग था, जो मुग़ल शहंशाह शाहजहां के सबसे भरोसेमंद मंत्रियों में से एक माना जाता है।
फ़तेह जंग का मक़बरा: एक ऐतिहासिक स्मारक

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
ऐसा माना जाता है कि सन 1547 में, जब अलवर के सूबेदार फ़तेह जंग की मृत्यु हुई, तो कुछ ही समय बाद उनका एक भव्य मक़बरा बनाया गया। मेजर जनरल कनिंघम ने क्षेत्र की जांच पड़ताल के दौरान इस इमारत का उल्लेख करते हुए कहा:-
“मक़बरा चोकोर है। इसका आकार चारों तरफ़ से 60-60 फ़ुट लंबा। तीन मंज़िला इस इमारत की सभी मंज़िलों की चौड़ाई एक समान है। हर मंज़िल के सात दरवाज़े हैं। चारों कोनों पर, आठ–आठ कोने वाले मीनार हैं। गुंबद, चौथी मंज़िल पर बने, चोकोर चबूतरे से निकलता हुआ लगता है। उस छोटे चबूतरे का आकार चारों तरफ़ से 40-40 फ़ुट है।”
मक़बरे के अंदर पलस्तर पर हल्के से उभरे हुए सजावटी काम की भी सराहना की गई है। आज यह विशाल मक़बरा अलवर जंक्शन के पास से गुजरने वाली लगभग हर ट्रेन से देखा जा सकता है। दुर्भाग्य से, इस छोटे से शहर के एक धुंधले हिस्से में स्थित इस मक़बरे के बारे में अधिकांश स्थानीय लोगों को जानकारी नहीं है कि यह किसका मक़बरा है या यह कितना पुराना है।
वास्तुकला में मुग़ल और राजपूत शैली का संगम
राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा इस मक़बरे का उत्तम रखरखाव किया जा रहा है और इसमें प्रवेश करने के लिए कोई फ़ीस नहीं ली जाती है। गौरतलब बात यह है कि मक़बरे में ईरानी चार बाग़ शैली के बग़ीचे की झलक नजर आती है, जैसा कि मुग़ल काल में हर बड़े या छोटे मक़बरे में देखा जाता था। यह मक़बरा बेमिसाल इसलिए भी है क्योंकि यह मुग़ल वास्तुकला के साथ राजपूताना रंग और जमावट का अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करता है। जहां इमारत की संरचना मुग़ल शैली में बनी है, वहीं इसके रंग और सजावट के अंदाज़ में राजपूताना प्रभाव स्पष्ट झलकता है।
यह ऐतिहासिक स्मारक न सिर्फ अलवर के गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है, बल्कि मुग़ल और राजपूत कला एवं संस्कृति के अद्भुत संगम का भी प्रतीक है।
इस मक़बरे की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि यह एक बहु-मंज़िला इमारत है, जिसके चारों ओर खूबसूरत छज्जे लगे हैं। आज भी यहाँ सीधे चढ़ने वाली सीढ़ियाँ हैं, जो मक़बरे के सभी मंज़िलों तक जाती हैं और इमारत के चारों ओर समायोजित की गई हैं। मक़बरे के अंदर प्रवेश करने के लिए, विशाल लकड़ी के बने दरवाज़ों के पट खोलने पड़ते हैं।
आंतरिक सजावट और ऐतिहासिक आभा
भीतर प्रवेश करने पर, बरसों पहले दुनिया से गुज़र चुके फ़तेह जंग की कब्र के पास किसी मौलवी को क़ुरान की आयतें पढ़ते देखा जा सकता है, जो इस स्थल की धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाता है। दीवारों पर अब हल्की-फुल्की चित्रकारी नजर आती है, पर गहराई से देखने पर सब्ज़ियों के रंगों से बनाए गए फूल-पत्तियों के सूक्ष्म निशान स्पष्ट दिखाई देते हैं। पांच सौ साल बाद भी, हरे पत्तों के बीच लाल और नीले रंग के फूल की छाप इस इमारत की सुंदरता में चार चाँद लगा देती है। पहली मंज़िल पर कुरान की आयतें खुदी हुई हैं, जो इस स्थान की पवित्रता और ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती हैं।
एक अद्वितीय शिल्पकला का प्रतीक
‘फ़तेह जंग का गुंबद’ एक विशाल और अद्भुत वास्तुशिल्प है, जिसे ख़ानज़ादा शासक अलवर ने अपने समय में पीछे छोड़कर गया था। यह स्थल न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह वास्तुकला के अद्वितीय संगम का भी प्रतीक है।
शहर में आने वाले सैलानियों को सलाह दी जाती है कि वे इस अनूठे स्मारक को अवश्य देखें, क्योंकि यह न केवल उनके देखने का अनुभव समृद्ध करता है, बल्कि अलवर के शाही अतीत की झलक भी प्रस्तुत करता है।
फ़तेह जंग गुंबद के पास घूमने योग्य स्थल (Places To Visit Near Fateh Jang Gumbad)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
सरिस्का टाइगर रिजर्व (Sariska Tiger Reserve)
यह राष्ट्रीय उद्यान बाघों और वन्यजीवों के लिए प्रसिद्ध है। प्राकृतिक प्रेमियों और फोटोग्राफर्स के लिए यह एक स्वर्ग है, जहाँ आप रोमांचकारी जंगल सफारी का अनुभव ले सकते हैं।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
बाला किला (Bala Quila)
अलवर का यह भव्य किला पहाड़ियों की ऊँचाई पर स्थित है और पूरे शहर का विहंगम दृश्य प्रस्तुत करता है। यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त का अद्भुत नज़ारा देखा जा सकता है।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
मूसी महारानी की छतरी (Moosi Maharani Ki Chhatri)
राजस्थानी और मुगल स्थापत्य शैली का यह अनूठा मिश्रण, महाराजा बख्तावर सिंह और उनकी प्रेमिका मूसी की याद में बनी है, जो प्रेम और बलिदान की कहानी कहती है।
फ़तेह जंग गुंबद केवल एक मकबरा नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर है जो राजस्थान के समृद्ध अतीत, मुगलकालीन स्थापत्य कला और राजसी जीवनशैली को दर्शाता है।