
Andhra Pradesh Famous Chandanotsavam Simhachalam Temple History (Image Credit-Social Media)
Andhra Pradesh Famous Chandanotsavam Simhachalam Temple History (Image Credit-Social Media)
Chandanotsav Sinhachalam Temple: भारत देश में ऐसे कई मंदिर हैं जिनसे पौराणिक कथाएं जुड़ी हैं और कई परंपराएं सदियों से देखने को मिलती हैं। ऐसा ही एक राज्य है आंध्रप्रदेश जिसके विशाखापत्तनम शहर स्थित सिंहाचलम मंदिर। विशाखापत्तनम में समुद्र तल से करीब 800 मीटर की ऊंचाई पर सिंहाचलम की पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है। भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर में भगवान वराह नरसिंह की पूजा की जाती है।
इस मंदिर में भगवान वराह लक्ष्मी नरसिंह स्वामी का दर्शन चंदन के आवरण से ढके रूप में होता है। चंदन के आवरण से ढकी चार फीट ऊंची यह मूर्ति शिव लिंग के समान प्रतीत होती है। मूल रूप में वराह नरसिंह की ढाई फीट ऊंची मूर्ति त्रिभंग मुद्रा में एक सूअर के सिर, मानव धड़ और शेर की पूंछ के साथ खड़ा है। भगवान की इस मूर्ति के दोनों ओर कमल का फूल पकड़े देवी श्रीदेवी और भूदेवी की मूर्तियां है।
दरअसल नरसिंह देव क्रोधित होने की वजह से चंदन के आवरण में रखे जाते हैं। पूजा के लिए एक पवित्र सामग्री चंदन भगवान को शीतलता प्रदान करता है। हर साल अक्षय तृतीया के दिन मात्र एक दिन के लिए भगवान की मूर्ति को चंदन से बाहर निकाला जाता है और श्रद्धालु भगवान की मूर्ति को करीब से देख कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दर्शन को ‘निजरूप दर्शनम’ के नाम से भी जाना जाता है। अक्षय तृतीया का दिन कोई भी कार्य शुरू करने के लिए ऐसे भी शुभ दिन माना जाता है।

Chandanotsav Sinhachalam (Image Credit-Social Media)
भगवान विष्णु के मूलविराट रूप का दोहरा अवतार वराह और नरसिंह अवतारों का संयोजन है यह श्री वराह लक्ष्मी नरसिंह स्वामी का सिंहाचलम स्थित मंदिर। वराह नरसिंह रूप भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद को बचाने के लिए लिया था। भगवान विष्णु के वराह अवतार ने हिरण्याक्ष का वध किया तो वहीं दूसरा नरसिंह अवतार द्वारा भगवान ने प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप का वध किया। दंतकथा के अनुसार हिरण्याक्ष ने अपनी शक्ति से पृथ्वी को उसकी रसातल यानी पाताल लोक में डुबो दिया था, फिर भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को उसकी सामान्य स्थिति में लौटाया।
वहीं दूसरी ओर हिरण्याक्ष के भाई हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके ब्रह्मा से एक अनोखा वर मांगा जिसमें उसे कोई सुबह या रात में, घर या बाहर, न अस्त्र न शस्त्र और ना ही मनुष्य या जानवर द्वारा कोई मार सके का वरदान प्राप्त किया। उसके पुत्र प्रहलाद पर होते अत्याचार को देखते हुए भगवान विष्णु ने मनुष्य और जानवर रूपी मिश्रित नरसिंह अवतार धारण कर ना दिन और ना रात बल्कि संधिकाल के गोधूलि बेला में हिरण्यकश्यप को दहलीज पर अपने गोद में रखकर वध कर दिया।

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सिंहाचलम मंदिर का इतिहास और वास्तुकला
इस मंदिर का उल्लेख चोल राजा कुलोत्तुंग प्रथम के काल के 10वीं सदी के शिलालेख में मिलता है। वहीं 13वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में राजा नरसिंहदेव प्रथम के शासनकाल के दौरान मंदिर परिसर में कई उप मंदिरों को जोड़ने जैसे हुए परिवर्तन का भी उल्लेख मिलता है। ये उप मंदिर भगवान विष्णु के कई अन्य स्वरूप जैसे वैकुंठनाथ, यज्ञवराह और माधवदेवरा को समर्पित थे। महान द्वैत दार्शनिक नरहरि तीर्थ ने इस मंदिर को एक मशहूर शैक्षणिक और वैष्णव धर्म के धार्मिक केंद्र में परिवर्तित करने का कार्य किया ।
इस मंदिर को कई राजाओं जैसे रेड्डी राजवंश, गजपति राजवंश आदि से संरक्षण मिला । कलिंग राजवंश के राजा कृष्णदेवराय ने सिंहाचलम में एक विजय स्तंभ का निर्माण करवाया था।
बाहर से किले जैसा दिखने वाले इस सिंहाचलम मंदिर में पांच प्रवेश द्वार और तीन बाहरी प्रांगण हैं। मंदिर की वास्तुकला में चोल, चालुक्य , कलिंग और काकतीय वंश के स्थापत्य शैली का मिश्रण देखने को मिलता है। इस मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की ओर है जो विजय का प्रतीक होता है। वहीं ज्यादातर मंदिरों का मुख्य द्वार पूर्व की ओर होता है और समृद्धि का सूचक होता है। मंदिर के पश्चिमी प्रवेश द्वार पर मुख्य शिखर पांच-स्तरीय राजगोपुरम रूप के बना है जिधर एक विवाह कल्याणमंडप बना है और उस हॉल में 96 स्तंभ बने हैं। इन स्तंभ और दीवारों पर भगवान विष्णु और उनकी पत्नी माता लक्ष्मी के साथ कई और आकृतियां उकेरी हुई हैं।

Chandanotsav Sinhachalam (Image Credit-Social Media)
इस मंदिर के पास स्वामी पुष्करिणी और पहाड़ी के नीचे गंगाधर नामक दो प्रमुख सरोवर हैं। इसमें भक्त स्नान करते हैं। मंदिर में कोणार्क मंदिर के समान तीन-स्तरीय विमान के कोनों पर नरसिंह के प्रतीक सिंह की मूर्तियां बनी हुई हैं वहीं विमान के शीर्ष पर सोने की परत चढ़ा हुआ गुंबद कलश है। मंदिर के भीतर गर्भगृह में दीवार पर प्रह्लाद के सामने हिरण्यकश्यप का वध करते हुए भगवान नरसिंह की खड़ी मुद्रा में मूर्ति उकेरी हुई है। वहीं सामने दूसरे दीवार पर वराह की भी मूर्ति देख सकते हैं। इसके अतिरिक्त कालिया मर्दन और गोवर्धन पर्वत उठाए श्रीकृष्ण की मूर्ति भी दीवारों पर देख सकते हैं।
इस सिंहाचलम मंदिर में चंदनोत्सव के अलावा कल्याणोत्सव पर्व भी खास रूप से मनाया जाता है। चैत्र माह में पांच दिनों तक मनाए जाने वाले कल्याणोत्सव पर्व में वराह नरसिंह का वार्षिक दिव्य विवाह का आयोजन किया जाता है।
इसके अतिरिक्त वैशाख महीने में नरसिंह जयंती और आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को गिरिप्रदक्षिणा जैसा उत्सव भी श्रद्धालु बड़े भक्ति भाव से मनाते हैं। इस दौरान श्रद्धालु सिंहाचलम की पहाड़ी के चारों ओर करीब 30,000 मीटर यानि 98,000 फीट की दूरी तय कर इस परिक्रमा को पूरा कर भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।