सिंधु जल समझौता बहाल न होने से पाकिस्तानी की बेचैनी बढ़ती जा रही है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसाक डार ने मंगलवार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर दोनों देशों के बीच “पानी के मुद्दे” का समाधान नहीं हुआ, तो संघर्षविराम “खतरे में पड़ सकता है”।
सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में डार ने सिंधु जल संधि (IWT) का हवाला दिया। 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने इस जल संघि को स्थगित कर दिया था। उन्होंने कहा कि अगर “पानी के मुद्दे” का समाधान नहीं होता है, तो इसे “युद्ध की कार्यवाही” के रूप में देखा जाएगा। जैसा कि खबरों में बताया गया था कि सिंधु जल समझौता टूटने पर पाकिस्तान में भयानक पानी संकट हो सकता है।
दरअसल, पाकिस्तान पीएम मोदी का सोमवार का बयान आने के बाद चिंतित नज़र आ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा था कि “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।” प्रधानमंत्री की यह टिप्पणी विदेश मंत्रालय के उस निर्देश की पुष्टि थी कि सैन्य अभियान रुकने के बावजूद सिंधु जल संधि की स्थिति यथावत बनी रहेगी। यानी भारत उस संधि को बहाल नहीं करेगा।
पाकिस्तान के वित्त मंत्री मुहम्मद औरंगज़ेब के बयान से भी पाकिस्तान की बेचैनी सामने आई है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि भारत IWT को उसके मूल ढांचे में बहाल करेगा और संधि के निलंबन को वापस लेगा। औरंगज़ेब ने कहा कि भारत के निलंबन का कोई तात्कालिक आर्थिक असर नहीं होगा और पाकिस्तान “ऐसे किसी भी परिदृश्य पर विचार तक नहीं करना चाहता जो इस संधि की बहाली को शामिल न करे।”
सिंधु वह नदी है जिसके नाम पर भारत को दुनिया हिंदुस्तान और इंडिया के रूप में जानती है। यह केवल नदी नहीं, हड़प्पा जैसी महान सभ्यता की जननी भी है। फ़िलहाल यह पाकिस्तान की जीवन रेखा कही जाती है। सिंधु और इसकी सहायक नदियों के पानी को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता है, लेकिन इसे निलंबित करने के भारत के फ़ैसले के बाद मीडिया दावा कर रहा है कि पाकिस्तान के खेत बंजर हो जाएँगे और वह बूँद-बूँद पानी के लिए तरसेगा।
22 अप्रैल को पहलगाम हमले के अगले ही दिन यानी 23 अप्रैल 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी यानी सीसीएस की बैठक में यह फ़ैसला लिया गया। विदेश सचिव ने ऐलान किया, ‘इस आतंकी हमले की गंभीरता को देखते हुए सीसीएस ने फ़ैसला किया है कि 1960 का सिंधु जल समझौता तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाएगा, जब तक कि पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को पूरी तरह और भरोसेमंद तरीक़े से बंद नहीं करता।’ यह ऐलान भारत की ओर से पाकिस्तान को दिया गया एक कड़ा संदेश है।
19 सितंबर 1960 को कराची में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता हुआ था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुए इस समझौते ने सिंधु और इसकी छह सहायक नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज, सिंधु, चिनाब, झेलम) के पानी का बँटवारा किया। इसके प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:
सिंधु जल समझौते में एकतरफ़ा निलंबन का कोई साफ़ प्रावधान नहीं है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि वियना संधि (1969) की धारा 62 के तहत, अगर मूलभूत परिस्थितियों में बदलाव (जैसे आतंकवाद) हो तो भारत इस समझौते से पीछे हट सकता है।
लेकिन यह इतना आसान नहीं है:
विश्व बैंक की भूमिका: चूँकि विश्व बैंक इस समझौते का मध्यस्थ है, पाकिस्तान इस मुद्दे को विश्व बैंक या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ले जा सकता है।
कानूनी जटिलता: समझौता अंतरराष्ट्रीय क़ानून से बंधा है और इसे पूरी तरह रद्द करना जटिल और समय लेने वाला होगा।
भारत ने 2023 में इस समझौते में संशोधन की मांग की थी, लेकिन निलंबन एक बड़ा और अभूतपूर्व क़दम है।
बहरहाल, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “ऑपरेशन सिंदूर ने आतंक के खिलाफ लड़ाई में एक नई रेखा खींच दी है – यह एक नया चरण है, एक न्यू नॉर्मल है। इसका मतलब है कि अब ऑपरेशन सिंदूर जैसे हमले आम बात हो सकते हैं। अगर भारत पर आतंकवादी हमला होता है, तो हम उसका मुंहतोड़ जवाब देंगे। भारत किसी भी परमाणु ब्लैकमेल को बर्दाश्त नहीं करेगा।”
मोदी ने यह भी कहा कि “आतंक और बातचीत एक साथ नहीं हो सकते। आतंक और व्यापार एक साथ नहीं हो सकते। और, पानी और खून भी एक साथ नहीं बह सकते।”