भारत में प्रेस स्वतंत्रता पर अभूतपूर्व संकट मंडरा रहा है, और इसका सबसे ताजा उदाहरण गुजरात से सामने आया है, जहां प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गुजरात समाचार के संपादक और मालिक बाहुबली शाह को गिरफ्तार किया है। 1932 में स्थापित, गुजरात समाचार राज्य का सबसे पुराना और भारी संख्या में प्रसारित दैनिक समाचार पत्रों में से एक है। यह दूसरी बार है जब बीजेपी शासित गुजरात सरकार ने पत्रकारों और मीडिया मालिकों को निशाना बनाया है। इससे पहले, द हिंदू अखबार के पत्रकार महेश लांगा को भी गुजरात में गिरफ्तार किया गया था। ये गिरफ्तारियां कोई छोटी घटनाएं नहीं हैं; यह मोदी सरकार और गुजरात सरकार के उस सुनियोजित अभियान का हिस्सा हैं। भारत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता रैंकिंग में पहले ही दुनिया में 161वें स्थान पर है। यह रैंकिंग इस बात का साफ प्रमाण है कि देश में प्रेस स्वतंत्रता को कुचला जा रहा है।
गुजरात समाचार के मालिक बाहुबली शाह को गुरुवार देर रात ईडी ने 36 घंटे तक चली छापेमारी के बाद बिना किसी पूर्व लिखित नोटिस के गिरफ्तार किया। उनके भाई और गुजरात समाचार के संपादक-प्रमुख श्रेयांस शाह ने इस कार्रवाई को राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया। श्रेयांस ने बताया कि बाहुबली शाह हाल ही में गंभीर दिल का दौरा पड़ने के बाद अस्वस्थ हैं। फिर भी उन्हें “कुछ बातें कबूल करने” के लिए दबाव डाला गया। श्रेयांस ने कहा कि छापेमारी 20 साल पुराने कुछ बैंक लेनदेन से संबंधित थी, जो पूरी तरह से वैध थे। यह एक सिविल मामला है, और हम इसे अदालत में लड़ने को तैयार हैं। हमारा कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। मेरे भाई के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया जा रहा है?”
ईडी ने 24 स्थानों पर छापेमारी की, जिसमें श्रेयांस शाह के बेटों, निर्माण और अमम शाह के आवास, अखबार का ऑनलाइन विभाग कार्यालय, और शाह परिवार की रियल एस्टेट परियोजनाओं से जुड़े परिसर शामिल थे। इसके अलावा, 14 मई को आयकर विभाग ने गुजरात समाचार के मुख्यालय, बाहुबली और श्रेयांस शाह के आवास, और GSTV न्यूज़ चैनल के कार्यालय पर छापेमारी की थी। हैरानी की बात यह है कि 9 मई को गुजरात समाचार का X खाता बिना किसी स्पष्टीकरण के निलंबित कर दिया गया, जो इस कार्रवाई के पीछे की मंशा पर और सवाल उठाता है। एक्स की ओर से ऐसी कार्रवाई भारत सरकार की मांग के बाद की जाती है।
गुजरात समाचार लंबे समय से सत्ता के खिलाफ निष्पक्ष और निडर पत्रकारिता का प्रतीक रहा है, चाहे सत्ता में कोई भी हो। हाल ही में, इसने भारत-पाकिस्तान सीमा पर संघर्षविराम और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों पर सवाल उठाए थे, जिसे विपक्षी कांग्रेस ने “नंगे राजा को सच का आईना दिखाने” की हिम्मत बताया। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने X पर लिखा, “93 साल पुराना गुजरात समाचार सत्ता विरोधी आवाज रहा है। जो हिम्मत करते हैं, उनका यही हश्र होता है।”
कांग्रेस विधायक जिग्नेश मेवानी ने एक्स पर वीडियो बयान में कहा- गुजरात के सब से बड़े न्यूज़ पेपर “गुजरात समाचार” के मालिक तंत्री बाहुबली शाह की ED ने गिरफ्तारी की वह बेहद शर्मनाक है! हम गुजरात समाचार के साथ खडे है! पिछले 25 सालों से ईस अखबार ने मोदी शाह की नीतियों की जो धुलाई की है, उसका बदला लेने की भावना से ईस कृत्य को अंजाम दिया है!
गुजरात में पत्रकारिता पहले से ही सबसे चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में काम कर रही है। गुजरात समाचार संभवतः एकमात्र प्रमुख मीडिया समूह है जो नियमित रूप से सरकार की नीतियों की आलोचना करता है। इसके कवरेज, खासकर कोविड-19 महामारी और किसान आंदोलनों के दौरान, ने सरकार की कमियों को उजागर किया था। इससे पहले, द हिंदू के पत्रकार महेश लांगा को मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में गिरफ्तार किया गया था, जिसे कई लोगों ने पत्रकारिता को दबाने की कोशिश माना।
ये गिरफ्तारियां और छापेमारी न केवल गुजरात समाचार जैसे संस्थानों को निशाना बना रही हैं, बल्कि पूरे भारत में स्वतंत्र पत्रकारिता को डराने और चुप कराने का प्रयास है। सरकार की यह रणनीति साफ है: जो मीडिया उसके साथ नहीं है, उसे वित्तीय अनियमितताओं या अन्य झूठे आरोपों के बहाने कुचल दो।
मोदी सरकार और गुजरात सरकार का यह रवैया न केवल प्रेस स्वतंत्रता, बल्कि भारत के लोकतंत्र के लिए भी खतरा है। जब पत्रकारों और मीडिया मालिकों को उनकी निष्पक्षता के लिए सजा दी जाती है, तो यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिकों के सूचना के अधिकार पर सीधा हमला है। अंतरराष्ट्रीय संगठन जैसे रिपोटर्स विदाउट बॉर्डर्स, एमनेस्टी इंटरनेशनल, और कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने बार-बार भारत में प्रेस स्वतंत्रता पर बढ़ते हमलों की निंदा की है।
गुजरात समाचार के कर्मचारी और पत्रकार इस कठिन समय में भी हार नहीं मान रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि सरकार कब तक सच्चाई को दबाने की कोशिश करेगी? जनता को यह समझना होगा कि स्वतंत्र मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, और इसे कमजोर करने का मतलब है देश के लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करना।
मोदी और गुजरात सरकार को यह समझना होगा कि प्रेस स्वतंत्रता को कुचलकर वे न केवल पत्रकारों, बल्कि पूरे देश की आवाज को दबा रहे हैं। गुजरात समाचार पर हमला और बाहुबली शाह की गिरफ्तारी इस बात का सबूत है कि सत्ता की आलोचना करने वालों के लिए भारत में कोई जगह नहीं छोड़ी जा रही है। यह समय है कि नागरिक और विपक्ष एकजुट होकर इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएं, ताकि भारत का लोकतंत्र और प्रेस स्वतंत्रता बचाई जा सके।
एक्स पर लोग इस मामले में तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। कुछ प्रतिक्रियाएं पढ़िए-