
Politician Isha Khan Chaudhary Wikipedia (Image Credit-Social Media)
Politician Isha Khan Chaudhary Wikipedia (Image Credit-Social Media)
Politician Isha Khan Chaudhary Biography: भारतीय राजनीति में परिवारिक विरासत कोई नई बात नहीं है लेकिन जब कोई राजनेता खुद के बूते पर चुनावी जीत दर्ज करता है और जनसेवा को अपनी प्राथमिकता बनाता है। तो वह केवल एक ‘विरासतधारी’ नहीं रह जाता बल्कि वह खुद एक पहचान बन जाता है। पश्चिम बंगाल के मालदा दक्षिण लोकसभा क्षेत्र की सांसद ईशा खान चौधरी इसी उदाहरण की मिसाल हैं। एक सशक्त राजनीतिक विरासत से आने के बावजूद उन्होंने अपनी सादगी, स्पष्टता और जनसेवा की भावना से जनता का विश्वास जीता है। कांग्रेस पार्टी की नेता ईशा ने राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई है। आज वह बंगाल की राजनीति में एक प्रभावशाली नाम बन चुकी हैं। ईशा खान चौधरी ने पश्चिम बंगाल के मालदा दक्षिण (Maldaha Dakshin) लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र की सांसद का कार्यभार 4 जून 2024 को संभाला और यह सीट उनके पिता अबू हासेम खान चौधरी से उन्हें विरासत में मिली। इससे पहले, ईशा खान चौधरी पश्चिम बंगाल विधान सभा में दो बार सदस्य रह चुकी हैं। 2011 से 2016 तक बैष्णबनगर विधानसभा क्षेत्र से।
2016 से 2021 तक सुजापुर विधानसभा क्षेत्र से। उनकी राजनीतिक यात्रा में यह उल्लेखनीय है कि उन्होंने 2016 के विधानसभा चुनाव में अपने चाचा अबू नसर खान चौधरी को हराया। जो उस समय तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार थे। वर्तमान में, ईशा खान चौधरी संसद में अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास और सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय रूप से कार्य कर रही हैं।

जन्म और प्रारंभिक जीवन – कनाडा से मालदा तक का सफर
ईशा खान चौधरी का जन्म 22 मई 1971 को पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में हुआ। हालांकि उनका अधिकांश बचपन कनाडा में बीता। लेकिन उनका जुड़ाव भारत, खासकर मालदा से कभी टूटा नहीं। वे एक बंगाली मुस्लिम परिवार से आती हैं। जिसकी राजनीतिक विरासत बेहद प्रभावशाली रही है। उनके पिता अबू हासेम खान चौधरी एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। उनके चाचा एबीए गनी खान चौधरी को भारतीय राजनीति में विकास पुरुष के रूप में जाना जाता है। जिन्होंने रेल मंत्रालय में रहते हुए देश में कई ऐतिहासिक योजनाओं की नींव रखी।
शिक्षा के क्षेत्र में ईशा ने अंतरराष्ट्रीय पहचान प्राप्त की। उन्होंने यॉर्क विश्वविद्यालय (York University), कनाडा से कला स्नातक (बीए) की डिग्री हासिल की। उच्च शिक्षा ने उन्हें वैश्विक दृष्टिकोण दिया, जो आगे चलकर उनके राजनीतिक दृष्टिकोण और नीतियों में परिलक्षित हुआ।

राजनीतिक विरासत और पारिवारिक पृष्ठभूमि
ईशा का परिवार पश्चिम बंगाल के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक परिवारों में से एक है। उनके पिता अबू हासेम खान चौधरी ने लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी के प्रति निष्ठा बनाए रखी और मालदा क्षेत्र में पार्टी को मजबूत किया। उनके चाचा एबीए गनी खान चौधरी और अबू नसर खान चौधरी दोनों केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। उनकी चाची रूबी नूर और चचेरी बहन मौसम नूर भी सक्रिय राजनीति में रही हैं। जहां मौसम नूर अब तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो चुकी हैं वहीं ईशा ने हमेशा कांग्रेस की विचारधारा को अपनाया और पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखी।
राजनीतिक करियर की शुरुआत- जमीनी राजनीति से संसद तक
ईशा खान चौधरी का सक्रिय राजनीतिक सफर वर्ष 2011 से शुरू होता है। जब उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में बैष्णबनगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इस चुनाव में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के उम्मीदवार को हराया। जिससे यह स्पष्ट हो गया कि वे सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक प्रभावशाली जननेता बनने जा रही हैं।
2016 का टकराव चाचा बनाम भतीजी

2016 के चुनाव में उन्होंने सुजापुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। इस बार मुकाबला निजी भी था और राजनीतिक भी। उनका मुकाबला उनके ही चाचा अबू नसर खान चौधरी से था। जो अब तृणमूल कांग्रेस पार्टी में शामिल हो चुके थे। ईशा ने चुनावी अभियान के दौरान स्पष्ट रूप से कहा कि उनके चाचा ने नागरिकों के लिए अपेक्षित काम नहीं किया और अब जनता एक नई सोच और नेतृत्व चाहती है। परिणामों ने इस दावे को सच साबित किया। ईशा को 97,000 वोट मिले जबकि उनके चाचा को मात्र 50,000 वोटों से संतोष करना पड़ा। यह जीत न केवल उनके आत्मविश्वास को बढ़ावा देने वाली थी बल्कि यह कांग्रेस पार्टी के लिए भी एक अहम संदेश था कि युवाओं और महिलाओं में नेतृत्व की क्षमता है।
लोकसभा में प्रवेश और राष्ट्रीय राजनीति
2019 के आम चुनावों में कांग्रेस ने ईशा खान चौधरी को मालदा दक्षिण लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया। उन्होंने भारी जनसमर्थन के साथ चुनाव जीतकर संसद में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इसके साथ ही वे राष्ट्रीय राजनीति का चेहरा बन गईं। संसद में उनके भाषण, सवाल पूछने की शैली और विकास पर केंद्रित दृष्टिकोण ने उन्हें एक गंभीर और समर्पित सांसद के रूप में स्थापित किया। वे संसद की कई स्थायी समितियों की सदस्य भी रहीं और महिला सशक्तिकरण, शिक्षा और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर उन्होंने अपनी मजबूत राय रखी।
सामाजिक सरोकार और ज़मीन से जुड़ी नेता

ईशा खान चौधरी ने हमेशा समाज के कमजोर वर्गों के लिए आवाज़ उठाई है। चाहे वह गरीब छात्रों के लिए छात्रवृत्ति योजना की पैरवी हो या ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार के लिए जागरूक करना। उन्होंने हर मोर्चे पर सक्रिय भूमिका निभाई है। उनके निर्वाचन क्षेत्र में उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार, सड़क निर्माण, सिंचाई सुविधाओं की बहाली और शिक्षा संस्थानों के आधुनिकीकरण पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने कई बार कहा है कि उनकी प्राथमिकता है कि, ‘ हर गांव तक विकास और हर परिवार की पहुंच मुकम्मल करनी है।’
महिला नेतृत्व का प्रतीक
राजनीति में महिलाओं की भूमिका हमेशा चर्चा का विषय रही है और ईशा इस दिशा में एक प्रेरणास्रोत बनकर उभरी हैं। वे युवा महिलाओं को राजनीति में आने के लिए प्रेरित करती हैं और अपने सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता और समर्पण के साथ कार्य करती हैं। वे अक्सर छात्राओं और युवतियों के साथ संवाद करती हैं और उन्हें शिक्षा, करियर और राजनीतिक भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
वर्तमान राजनीतिक स्थिति और भविष्य की संभावनाएं
आज जब कांग्रेस पार्टी पश्चिम बंगाल में पुनर्संरचना की ओर अग्रसर है, ईशा खान चौधरी जैसे नेताओं की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने बताया जिस तरह पार्टी के लिए निष्ठा और परिश्रम से काम किया है। वह उन्हें एक संभावित भविष्य का बड़ा चेहरा बनाता है। उनकी नेतृत्व क्षमता, जमीन से जुड़ाव और मुद्दों पर स्पष्ट राय उन्हें न केवल अपने निर्वाचन क्षेत्र में लोकप्रिय बनाती है बल्कि पार्टी स्तर पर भी उन्हें मजबूती देती है। ईशा खान चौधरी एक राजनीतिक विरासत की उत्तराधिकारी तो हैं ही लेकिन उससे भी अधिक वे एक जुझारू, समर्पित और दूरदर्शी नेता हैं। वे उन चुनिंदा नेताओं में से हैं जिन्होंने पारिवारिक नाम के साथ-साथ अपनी अलग पहचान बनाई है। उनकी राजनीति केवल सत्ता तक सीमित नहीं है बल्कि समाज के हर वर्ग को जोड़ने और सशक्त बनाने की दिशा में निरंतर सक्रिय है।