नीति आयोग की 10वीं गवर्निंग काउंसिल की बैठक शनिवार को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई। इस अहम बैठक में दक्षिणी राज्यों ने सहकारी संघवाद को मज़बूत करने और केंद्र-राज्य संबंधों में बेहतर समन्वय की ज़रूरत पर बल दिया। हालाँकि, तीन प्रमुख विपक्षी मुख्यमंत्री अनुपस्थित रहे।
नीति आयोग की इस बैठक का प्राथमिक उद्देश्य ‘विकसित भारत@2047’ के विजन को साकार करने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच नीतिगत तालमेल को बढ़ावा देना था। बैठक में आर्थिक विकास, बुनियादी ढाँचे, जल प्रबंधन और क्षेत्रीय असंतुलन जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में सहकारी संघवाद को भारत के विकास का आधार बताया और राज्यों से इस दिशा में सक्रिय योगदान देने का आह्वान किया।
दक्षिणी राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने बैठक में अपनी सक्रिय भागीदारी दर्ज की और कई अहम मुद्दों को उठाया। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने केंद्र से राज्यों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता और संसाधन आवंटन की मांग की। उन्होंने विशेष रूप से आंध्र प्रदेश के लिए विशेष आर्थिक पैकेज और पोलावरम परियोजना जैसे बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए केंद्र के समर्थन पर जोर दिया।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने जल बंटवारे के मुद्दे को उठाया और कावेरी जल विवाद के समाधान के लिए केंद्र की मध्यस्थता की मांग की। उन्होंने यह भी कहा कि सहकारी संघवाद तभी सार्थक होगा जब राज्यों की विशिष्ट ज़रूरतों को नीति निर्माण में प्राथमिकता दी जाएगी।
अपने राज्य की 2030 तक एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की महत्वाकांक्षा को दोहराते हुए स्टालिन ने कहा, ‘हम दीर्घकालिक योजनाओं के साथ आगे बढ़ रहे हैं। मैं आपको आश्वस्त करता हूँ कि तमिलनाडु भारत की 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण योगदान देगा।’
उन्होंने कहा,
तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने भी बैठक में हिस्सा लिया और राज्य की औद्योगिक और कृषि विकास योजनाओं के लिए केंद्र से समर्थन मांगा। उन्होंने यह भी जोर दिया कि राज्यों को नीति निर्माण में बराबर की भागीदारी दी जानी चाहिए।
बैठक की चर्चा के बीच तीन प्रमुख विपक्षी मुख्यमंत्रियों— पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी, कर्नाटक के सिद्धारमैया और केरल के पिनराई विजयन की अनुपस्थिति ने सुर्खियां बटोरीं।
हालाँकि, कांग्रेस शासित कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने राज्य में ‘पहले से निर्धारित कार्यक्रम’ का हवाला देते हुए अपने भाषण को परिषद में पढ़े जाने के लिए भेजा। बेंगलुरु के सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री बैठक का बहिष्कार नहीं कर रहे थे, बल्कि उनके पास मैसूर में एक निर्धारित कार्यक्रम था।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने बैठक में हिस्सा लिया और सहकारी संघवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। मान ने कहा कि उनके राज्य के साथ सौतेला और भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘पंजाब विकसित भारत@2047 के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने को तैयार है, लेकिन इसके लिए केंद्र और राज्यों के बीच विश्वास और सहयोग जरूरी है।’
सुक्खू ने कहा, ‘यदि वैध बकाया राशि समय पर जारी की जाती है, तो हिमाचल प्रदेश आत्मनिर्भर बन जाएगा।’
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी बैठक में अपने राज्य की प्रगति और नीति आयोग के साथ सहयोग की योजनाओं को साझा किया। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश ने बुनियादी ढांचे और निवेश के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है, जिसे नीति आयोग के सहयोग से और तेज किया जा सकता है।
बैठक के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी से अलग से मुलाकात की। इस मुलाकात को तेलंगाना के क्षेत्रीय मुद्दों, विशेष रूप से बुनियादी ढांचा और औद्योगिक विकास से संबंधित चर्चाओं के लिए अहम माना जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, इस मुलाकात में तेलंगाना को विशेष आर्थिक पैकेज और केंद्र की योजनाओं में अधिक भागीदारी देने पर विचार-विमर्श हुआ।
नीति आयोग की यह बैठक केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की दिशा में एक अहम क़दम थी। कई विश्लेषकों का मानना है कि नीति आयोग को सभी राज्यों के लिए एक समावेशी मंच बनाने के लिए और अधिक प्रयास करने होंगे। केंद्र और राज्यों के बीच विश्वास की कमी को दूर करने की ज़रूरत है ताकि नीति निर्माण में सभी की भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
नीति आयोग की 10वीं गवर्निंग काउंसिल की बैठक ने जहां एक ओर ‘विकसित भारत@2047’ के लिए महत्वपूर्ण चर्चा को आगे बढ़ाया, वहीं विपक्षी नेताओं की अनुपस्थिति ने केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव को भी उजागर किया। दक्षिणी राज्यों ने सहकारी संघवाद को मजबूत करने की मांग की, लेकिन इस दिशा में प्रगति के लिए केंद्र और राज्यों को मिलकर काम करना होगा। यह बैठक भविष्य में नीति निर्माण और सहकारी संघवाद के लिए एक अहम क़दम साबित हो सकती है, बशर्ते सभी हितधारकों का विश्वास और सहयोग सुनिश्चित हो।