भारत ने हाल ही में जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा हासिल कर लिया है। यह उपलब्धि नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर सुब्रह्मण्यम के हवाले से आईएमएफ़ के आँकड़ों के आधार पर घोषित की गई। उनके अनुसार, भारत की जीडीपी 4.19 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच गई है, जबकि जापान की जीडीपी 4.18 ट्रिलियन डॉलर पर ठहर गई है। अब भारत से आगे केवल अमेरिका, चीन और जर्मनी हैं।
यह खबर सुनकर देशवासियों के चेहरे पर मुस्कान आना स्वाभाविक है, लेकिन जब हम अपने आस-पास फैली बेरोज़गारी, महंगाई और भूख को देखते हैं तो सवाल उठता है— क्या यह तरक्की सिर्फ काग़ज़ों पर है? क्या यह एक आर्थिक छलावा भर है जिसका ज़मीन पर असर नहीं?
जीडीपी की चमक और ज़मीनी सच्चाई
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) एक देश के भीतर एक निश्चित अवधि में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को दर्शाता है। इसमें विदेशी कंपनियों की आय भी शामिल होती है जो भारत में उत्पादन करती हैं।
अगर हम विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना करें, तो भारत की तस्वीर कुछ अलग नजर आती है:
जाहिर है, भारत की विशाल जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति आय बेहद कम है। भारत की प्रति व्यक्ति आय मात्र $2,600 (लगभग ₹2.2 लाख) है, जिससे भारत वैश्विक रैंकिंग में 136वें स्थान पर है। इसके विपरीत, जापान की प्रति व्यक्ति आय $35,395 है, जो भारत से 14 गुना अधिक है। जापान 30वें स्थान पर है।
बेरोज़गारी और भूख भी भारत की आर्थिक स्थिति की पोल खोलते हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के अनुसार, 2024 में भारत की बेरोज़गारी दर 7-8% रही, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 8-9% तक पहुंच गई। वहीं जापान में यह दर मात्र 2.5-3% है।
बढ़ती असमानता की भयावहता
भारत में आय और संपत्ति की असमानता दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है।
- शीर्ष 1% भारतीयों के पास देश की 22.6% राष्ट्रीय आय है।
- शीर्ष 10% के पास 57.7% आय और 65% संपत्ति है।
- इसके विपरीत, निचले 50% लोगों के पास सिर्फ 15% आय और 6.4% संपत्ति है।
यानी भारत की जीडीपी की चकाचौंध में ग़रीबों की ज़िंदगी और अधिक अंधेरे में डूबती जा रही है।
विदेशी निवेशक क्यों भाग रहे हैं?
चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद भारत में नेट FDI (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) में 96.5% की गिरावट आई है। 2023-24 में जहाँ नेट FDI $10.1 अरब था, वहीं 2024-25 में यह घटकर $353 मिलियन रह गया यानी 35.3 करोड़। एक अरब के आधे से भी कम।
इस गिरावट के कई कारण हैं
IPO से भारी प्रत्यावर्तन: विदेशी निवेशकों ने Hyundai और Swiggy जैसे आईपीओ के जरिए $49 अरब डॉलर निकाले।
भारतीय कंपनियों का विदेशी निवेश: 2024 में भारतीय कंपनियों ने $29.2 अरब विदेशों में निवेश किए।
वैश्विक आर्थिक मंदी, व्यापार युद्ध, और भारत में नीतिगत अस्थिरता ने विदेशी निवेशकों के भरोसे को कमजोर किया।
आलोचना बर्दाश्त नहीं
NDTV के संस्थापक प्रणय रॉय और राधिका रॉय के खिलाफ CBI की जांच और अंततः NDTV का अडानी समूह को बेचा जाना दर्शाता है कि सरकार विरोधी आवाज़ों को कैसे दबाया जाता है। अदालत ने 2025 में CBI की क्लोजर रिपोर्ट को मंज़ूर करते हुए यह साफ़ कर दिया कि कोई अनियमितता नहीं थी। लेकिन तब तक NDTV हाथ से जा चुका था।
सांप्रदायिक तनाव और निवेश
24 मई को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में चार मुस्लिम मीट कारोबारियों पर मॉब लिंचिंग की घटना सामने आई। सभी के पास वैध दस्तावेज़ थे, फिर भी उन्हें पीटा गया और उनकी गाड़ी जला दी गई। यह न केवल मानवाधिकारों का हनन है, बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी घातक है। यह यूपी की क़ानून व्यवस्था की तस्वीर है जो कारोबार पर भारी पड़ रही है।
हास्यास्पद यह है कि भारत भैंस के मांस का विश्व में सबसे बड़ा निर्यातक है— 2025 में 1.65 मिलियन मीट्रिक टन, और $3.2 बिलियन मूल्य के साथ चौथे स्थान पर। निश्चित ही इसके पीछे सरकार का प्रोत्साहन है लेकिन जिन लोगों के हाथों से यह व्यापार होता है, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जाती।
विकास की कसौटी
जीडीपी में उछाल तरक़्क़ी का एक संकेत है लेकिन उसका फल समाज में किसे मिल रहा है और किसे नहीं, यह सवाल भी कम महत्व का नहीं है। जिस समाज में डर, भूख, बेकारी और हताशा का बोलबाला हो, वहाँ आर्थिक आँकड़े झूठ के माया-महल बनकर रह जाते हैं। आबादी की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था का आकार बड़ा दिखना सामान्य बात है लेकिन जब तक उसके नागरिक सुरक्षित, समृद्ध और संतुष्ट नहीं होते, तब तक यह विकास अधूरा ही रहेगा।