सिंधु जल संधि को लेकर भारत ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान को जमकर लताड़ लगाई है। संयुक्त राष्ट्र के एक सम्मेलन में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वारा सिंधु जल संधि के निलंबन को लेकर भारत पर की गई टिप्पणी का भारत ने यह प्रतिक्रिया दी है। भारत ने पाकिस्तान से साफ़ शब्दों में कह दिया है कि वह संधि के उल्लंघन का दोष भारत पर मढ़ना बंद करे, क्योंकि पाकिस्तान की ओर से होने वाला सीमा पार आतंकवाद इस संधि के कार्यान्वयन में बाधा डाल रहा है।
यह बयान ताजिकिस्तान के दुशांबे में ग्लेशियर्स संरक्षण पर आयोजित पहले संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान भारत के पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने दिया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने शुक्रवार को इस सम्मेलन में भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करने के फ़ैसले को ‘पानी को हथियार की तरह इस्तेमाल’ करने का आरोप लगाया था। उन्होंने इसे एकतरफा और अवैध निर्णय बताते हुए कहा था कि यह लाखों लोगों की ज़िंदगी को ख़तरे में डालता है। उन्होंने इसे संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया कदम बताया था। शरीफ ने कहा था कि पाकिस्तान ऐसा नहीं होने देगा।
इसके जवाब में भारत ने शनिवार को साफ़ किया कि पाकिस्तान का यह बयान अनुचित और इस मंच के दायरे से बाहर है। कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा, ‘हमें पाकिस्तान द्वारा इस वैश्विक मंच का दुरुपयोग करने और असंबंधित मुद्दों को उठाने की कोशिश पर आश्चर्य है। हम इस तरह के प्रयास की कड़ी निंदा करते हैं।’ उन्होंने जोर देकर कहा कि यह निर्विवाद तथ्य है कि 1960 में हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि के बाद परिस्थितियों में मूलभूत बदलाव आया है, जिसके कारण संधि की शर्तों पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है।
भारत ने 23 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि को निलंबित करने का फ़ैसला लिया था। भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराया। इस हमले के जवाब में भारत ने कई कड़े क़दम उठाए, जिनमें से एक था इस संधि को तत्काल प्रभाव से निलंबित करना। भारत का कहना है कि यह निलंबन तब तक जारी रहेगा जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देना पूरी तरह से बंद नहीं करता।
सिंधु जल संधि पर 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षर किए गए थे। यह संधि सिंधु नदी के पानी के बँटवारे को लेकर है। इस संधि के तहत भारत को रावी, ब्यास और सतलुज पर पूर्ण नियंत्रण दिया गया, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी मिला। यह संधि दोनों देशों के बीच तीन युद्धों और कई तनावों के बावजूद 65 वर्षों तक कायम रही।
पाकिस्तान की 80% से अधिक कृषि और लगभग एक तिहाई जलविद्युत उत्पादन सिंधु नदी बेसिन के पानी पर निर्भर है। इस संधि के निलंबन से पाकिस्तान में खेती, खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
पाकिस्तान ने भारत के सिंधु जल संधि के निलंबन के फ़ैसले को ‘युद्ध की कार्रवाई’ के समान बताया है और कहा है कि वह इसका जवाब देगा। पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय के सचिव सैयद अली मुर्तजा ने भारत की जल शक्ति मंत्रालय की सचिव देबाश्री मुखर्जी को पत्र लिखकर इस फ़ैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की थी। इस पत्र में भारत के निर्णय को एकतरफा और अवैध करार दिया गया और इसे पाकिस्तान की जनता और अर्थव्यवस्था पर हमला बताया गया।
भारत ने बार-बार कहा है कि वह संधि का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध था, लेकिन पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद ने इसकी भावना को नष्ट कर दिया है। कीर्ति वर्धन सिंह ने संयुक्त राष्ट्र में कहा, ‘पाकिस्तान खुद संधि का उल्लंघन कर रहा है और उसे भारत पर दोष लगाने से बचना चाहिए।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 मई को एक कार्यक्रम में कहा,
यह बयान भारत के उस इरादे को दिखाता है कि वह अब सिंधु नदी के पानी का अधिकतम उपयोग अपने लिए करेगा, जिसमें जम्मू-कश्मीर में रुके हुए जलविद्युत परियोजनाओं को पूरा करना शामिल है।
संधि का निलंबन भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक अहम मोड़ हो सकता है। भारत के पास भौगोलिक लाभ है, क्योंकि वह ऊपरी क्षेत्र में है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि भारत मौजूदा बुनियादी ढांचे के साथ पानी को पूरी तरह से रोक नहीं सकता। फिर भी किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाएँ जैसी भारत की दीर्घकालिक योजनाएँ उसे पानी पर अधिक नियंत्रण दे सकती हैं।
वहीं, पाकिस्तान ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश की है, लेकिन भारत ने इसे द्विपक्षीय मामला बताकर खारिज किया है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह निलंबन पाकिस्तान पर आतंकवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए दबाव बनाने की रणनीति है।
सिंधु जल संधि का निलंबन भारत और पाकिस्तान के बीच पहले से तनावपूर्ण संबंधों को और जटिल करता है। भारत का यह क़दम आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक मज़बूत संदेश है, लेकिन इसके साथ ही यह पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और कृषि पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। फ़िलहाल, यह मुद्दा न केवल जल बँटवारे का है, बल्कि विश्वास, सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता का भी सवाल उठाता है।