
तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की अवकाश पीठ में एक विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की है। इसमें मद्रास हाई कोर्ट के 21 मई, 2025 के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों से संबंधित 2020 में पारित नौ कानूनों के ऑपरेशन पर रोक लगाई गई थी। यह कदम तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच चल रहे टकराव के बीच उठाया गया है, जो विश्वविद्यालयों में उप-कुलपतियों की नियुक्ति के अधिकार को लेकर विवाद का केंद्र बना हुआ है।
यह मामला इसलिए अहम बन गया है क्योंकि संबंधित पक्षों ने पहले अवकाश पीठ से राहत नहीं मांगी थी। लेकिन अब तमिलनाडु सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट का रुख किए जाने के बाद उम्मीद है कि मामला एक-दो दिनों में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल 13 जुलाई तक गर्मी की छुट्टियां हैं, और सिर्फ सीमित मामलों की सुनवाई हो रही है। सभी रेगुलर बेंच 14 जुलाई को दोबारा खुलेंगी।
मद्रास हाईकोर्ट ने 21 मई 2025 को एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित संशोधन कानूनों के उस हिस्से पर अंतरिम रोक लगा दी थी, जो उप-कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार राज्यपाल (जो विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी हैं) से हटाकर राज्य सरकार को देता है। यह याचिका तिरुनेलवेली के एक वकील और बीजेपी कार्यकर्ता के. वेंकटचलपति ने दायर की थी। उन्होंने तर्क दिया था कि ये संशोधन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के नियमों, विशेष रूप से 2018 के नियम 7.3, के विपरीत हैं, जो उप-कुलपतियों की नियुक्ति के लिए कुलाधिपति द्वारा एक सर्च कमेटी की सिफारिशों के आधार पर प्रक्रिया निर्धारित करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री सूत्रों के अनुसार, मामला जल्द ही सुना जाएगा। एक अधिकारी ने लाइव लॉ को बताया, “यह मामला बेहद संवेदनशील प्रकृति का है, इसलिए यह एक-दो दिन में सुनवाई के लिए आ सकता है।”
सीनियर एडवोकेट पी. विल्सन द्वारा तैयार की गई इस SLP में तमिलनाडु सरकार ने 2014 के एक सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया था कि संवैधानिक मामलों में अंतरिम आदेश देते समय अदालतों को सतर्क रहना चाहिए और संविधान की वैधता को प्राथमिकता देनी चाहिए।
तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में तर्क दिया है कि हाईकोर्ट का अंतरिम आदेश संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, क्योंकि राज्य विधानसभा द्वारा पारित कानूनों को केवल तभी रोका जा सकता है, जब वे स्पष्ट रूप से असंवैधानिक या मनमाने हों। सरकार का कहना है कि ये संशोधन सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल 2025 के फैसले के बाद अधिसूचित किए गए थे, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए यह माना गया था कि राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा रोके गए 10 विधेयकों को उनकी सहमति माना जाए। इन विधेयकों में उप-कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार राज्य सरकार को देने का प्रावधान था।
यह उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले इन कानूनों को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियों का उपयोग करते हुए वैध ठहराया था, और यह भी कहा था कि राज्यपाल द्वारा इन विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजना अवैधानिक था।
तमिलनाडु सरकार ने कहा कि हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश ने उन प्रावधानों पर रोक लगा दी है जो कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार कुलाधिपति (राज्यपाल) से हटाकर राज्य सरकार को सौंपते हैं। सरकार ने कहा कि यह आदेश अंतरिम स्तर पर ही अंतिम राहत प्रदान करने जैसा है।
राज्य ने हाई कोर्ट पर अंतरिम याचिकाओं की सुनवाई में “अनावश्यक जल्दबाज़ी” दिखाने का आरोप लगाया और कहा कि कोर्ट ने अपने निष्कर्षों के लिए “अप्रासंगिक कारण” दिए।
हालांकि यह असामान्य नहीं है कि अवकाश अदालतें अत्यावश्यक मामलों के लिए सामान्य समय से आगे भी बैठी हैं। तमिलनाडु सरकार ने कहा कि 21 मई को हाई कोर्ट की पीठ ने राज्य को समुचित उत्तर देने का मौका दिए बिना सुनवाई में जल्दबाज़ी की, जबकि जून से पहले इन कानूनों के तहत किसी कार्रवाई की संभावना नहीं थी।
सरकार ने यह भी बताया कि 21 मई की सुनवाई के दौरान एक अजीब घटना हुई—अदालत का माइक्रोफोन म्यूट था और न तो कोर्ट रूम के अंदर मौजूद लोग और न ही वर्चुअली सुनवाई में जुड़े लोग आदेश को सुन सके।
तमिलनाडु सरकार ने कहा, “हाई कोर्ट ने अपने निष्कर्षों के लिए ऐसे अप्रासंगिक कारण दिए, जैसे कि याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील वही थे जिन्होंने कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के समूह की ओर से बहस की थी।”
सरकार ने कहा, “हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता (राज्य) को न तो जवाबी हलफनामा दायर करने का पर्याप्त अवसर दिया और न ही याचिका पर जवाब देने या बहस करने का मौका, और सीधे राज्य विधानसभा द्वारा पारित नौ कानूनों पर रोक लगा दी। जिन्हें इस अदालत (सुप्रीम कोर्ट) ने ‘तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल’ नामक ऐतिहासिक फैसले में माने हुए अनुमोदन के रूप में मान्यता दी थी।”
बहरहाल, यह विवाद तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल आर.एन. रवि के बीच लंबे समय से चल रहे तनाव का हिस्सा है। सरकार का आरोप है कि राज्यपाल ने विश्वविद्यालयों में उप-कुलपतियों की नियुक्ति के लिए सर्च कमेटियों के गठन में बाधा डाली है, जिससे कई विश्वविद्यालयों में प्रशासनिक संकट पैदा हो गया है। दूसरी ओर, याचिकाकर्ता और उनके वकील दामा शेषाद्रि नायडू ने तर्क दिया कि शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है, और केंद्र और राज्य के कानूनों में टकराव की स्थिति में केंद्रीय कानून (UGC नियम) को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।