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    Home » मानसून सत्र की घोषणा 47 दिनों पहले क्यों, क्या विशेष सत्र से इसलिए भागी सरकार
    भारत

    मानसून सत्र की घोषणा 47 दिनों पहले क्यों, क्या विशेष सत्र से इसलिए भागी सरकार

    Janta YojanaBy Janta YojanaJune 4, 2025No Comments4 Mins Read
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    केंद्र सरकार ने विपक्ष की विशेष सत्र की मांग को दरकिनार करते हुए बुधवार को संसद के मानसून सत्र की घोषणा कर दी है। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने बताया कि मानसून सत्र 21 जुलाई से 12 अगस्त तक चलेगा।

    रिजिजू ने संवाददाताओं से कहा, “हमने संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से 12 अगस्त तक बुलाने का निर्णय लिया है। कैबिनेट कमेटी ऑन पार्लियामेंटरी अफेयर्स ने यह तारीख तय की है और अब प्रस्ताव राष्ट्रपति को भेजा जाएगा।”

    यह मानसून सत्र पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद पहली बार आयोजित किया जा रहा है। 22 अप्रैल को हुए उस हमले में 26 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ की ओर से विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी।

    सरकार की घोषणा के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश और टीएमसी के डेरेक ओब्रायन ने सरकार पर हमला बोला। जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा- आमतौर पर संसद सत्र की तारीखों की घोषणा कुछ दिन पहले की जाती है। लेकिन इस बार सत्र शुरू होने से 47 दिन पहले ही तारीखों का ऐलान कर दिया गया -ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। यह निर्णय मोदी सरकार ने केवल इसलिए लिया है ताकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और INDIA गठबंधन द्वारा बार-बार उठाई जा रही तत्काल विशेष बैठक की मांग से बचा जा सके।

    6 हफ्ते बाद तो जवाब देना ही होगा

    जयराम रमेश ने कहा कि कांग्रेस सहित इंडिया गठबंधन के विभिन्न दलों ने संसद की एक तत्काल बैठक बुलाकर राष्ट्रीय महत्व के गंभीर मुद्दों पर चर्चा की आवश्यकता जताई है। जिसमें पहलगाम में हुए बर्बर आतंकी हमलों के लिए जिम्मेवार आतंकवादियों को अब तक न्याय के कटघरे में लाने में विफलता। ऑपरेशन सिंदूर का स्पष्ट राजनीतिकरण। सिंगापुर में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) द्वारा किए गए अहम खुलासे। भारत को पाकिस्तान के साथ एक ही श्रेणी में रखे जाने की गंभीर और चिंताजनक कूटनीतिक स्थिति। पाकिस्तान की वायुसेना में चीन की गहरी और खतरनाक घुसपैठ के स्पष्ट प्रमाण।
    राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता को लेकर बार-बार किए जा रहे दावे। विदेश नीति और कूटनीतिक स्तर पर सरकार की लगातार होती विफलताएं। उन्होंने लिखा कि मानसून सत्र के दौरान भी ये तमाम मुद्दे, जो राष्ट्रहित में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, चर्चा के केंद्र में रहेंगे। प्रधानमंत्री ने भले ही विशेष सत्र से खुद को अलग रखा हो, लेकिन छह सप्ताह बाद उन्हें इन कठिन सवालों का जवाब देना ही होगा।

      

    टीएमसी का भी हमला

    तृणमूल कांग्रेस नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा, टीएमसी ने पिछली घोषणाओं का अध्ययन किया है, और आमतौर पर सत्र की घोषणा शुरू होने की तारीख से लगभग 19 दिन पहले की जाती है। इस बार, उन्होंने 47 दिन पहले ही इसकी घोषणा कर दी। बहुत डर लग रहा है! अगर वे मानसून सत्र की घोषणा कर सकते हैं, तो जून में विशेष सत्र की घोषणा क्यों नहीं कर सकते।

    अब सबकी निगाहें 21 जुलाई से शुरू होने वाले मानसून सत्र पर होंगी — क्या सरकार इन मसलों पर चर्चा को तैयार होगी, या विपक्ष को फिर से हंगामे का सहारा लेना पड़ेगा?

    उन्होंने इस मांग के समर्थन में एक पत्र भी साझा किया, जिस पर राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और तृणमूल कांग्रेस सांसद अभिषेक बनर्जी समेत कई नेताओं के हस्ताक्षर थे।

    विपक्ष का आरोप है कि सरकार ऑपरेशन सिंदूर और राष्ट्रीय सुरक्षा के मसलों पर खुली बहस से बच रही है। उनका कहना है कि पहलगाम जैसे बड़े आतंकी हमले और उसके बाद की सैन्य कार्रवाई को लेकर संसद में पारदर्शिता और जवाबदेही जरूरी है।

    खड़गे ने मंगलवार को एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा था, “हम, INDIA गठबंधन के नेता, संसद का विशेष सत्र बुलाने की सामूहिक और तात्कालिक मांग दोहराते हैं, ताकि पहलगाम हमले के बाद की घटनाओं पर चर्चा की जा सके।”

    बहरहाल, सरकार ने विशेष सत्र बुलाने से इनकार करते हुए कहा कि सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर मानसून सत्र में चर्चा संभव है। रिजिजू ने कहा, “हमारे लिए हर सत्र विशेष होता है। संसदीय नियमों के तहत सभी महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की जा सकती है।”

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