चुनाव आयोग (ईसीआई) ने बिहार में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के “विशेष गहन संशोधन” (एसआईआर) की घोषणा की है। इसके तहत, 2003 की मतदाता सूची में शामिल न होने वाले सभी मौजूदा मतदाताओं को अपनी पात्रता साबित करने के लिए जन्म तिथि और/या जन्म स्थान का दस्तावेजी प्रमाण फिर से जमा करना होगा। यह कदम देशव्यापी अभियान की शुरुआत है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करना और अवैध प्रवासियों के नाम हटाना है। हालांकि ईसीआई मतदाता सूची के मुद्दे पर विश्वसनीयता के संकट का सामना कर रहा है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस और अन्य ने चुनाव आयोग पर पारदर्शिता न बरतने और सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में हेरफेर का आरोप लगाया है। इस संबंध में महाराष्ट्र की मतदाता सूचियों का मुद्दा अभी तक गरमाया हुआ है।
चुनाव आयोग का निर्देश
ईसीआई ने मंगलवार को बिहार के अधिकारियों को निर्देश जारी किए, जिसमें कहा गया कि 1 जुलाई, 2025 को मान्य तिथि (क्वालिफाइंग डेट) के साथ विशेष गहन संशोधन शुरू होगा। इस प्रक्रिया का उद्देश्य सभी पात्र नागरिकों का नाम मतदाता सूची में शामिल करना, कोई अपात्र व्यक्ति शामिल न हो, और नाम जोड़ने या हटाने की प्रक्रिया में पूर्ण पारदर्शिता सुनिश्चित करना है। आयोग ने कहा कि बिहार में आखिरी बार 2003 में इस तरह का गहन संशोधन किया गया था।
आयोग की ईमानदारी दांव पर
चुनाव आयोग की ईमानदारी इस प्रक्रिया में दांव पर लग जाती है। क्योंकि इसी प्रक्रिया के दौरान सत्तारूढ़ पार्टी के दबाव पर आयोग वोटर लिस्ट में उस पार्टी के विरोधी मतदाताओं के नाम हटा देते हैं। जिसकी जानकारी सत्तारूढ़ पार्टी ही देती है कि किस इलाके में कहां के मतदाताओं के नाम हटाने हैं। आमतौर पर मुस्लिम मतदाता इसके ज्यादा शिकार बन जाते हैं। जब वो बूथ पर जाते हैं तो सूची में उनका नाम नहीं मिलता हैं। या फिर बूथ विशेष में फर्जी मतदाताओं के नाम जोड़ दिए जाते हैं। जो मतदान वाले दिन आते हैं और वोट डालकर गायब हो जाते हैं। पिछले दिनों टीएमसी ने ऐसे मामलों को पकड़ा और चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा किया था। टीएमसी ने सबूतों के साथ आरोप लगाया था कि दूसरे राज्यों के मतदाताओं के नाम बंगाल के कई विधानसभा क्षेत्रों में जोड़े गए थे। हालांकि चुनाव आयोग ने आरोपों का खंडन किया लेकिन वो सफाई किसी को संतुष्ट नहीं कर सकी।
बिहार के लिए आयोग की शर्तें
बहरहाल, आयोग के निर्देशों के अनुसार, बिहार की 2003 की मतदाता सूची में शामिल मतदाताओं को छोड़कर, अन्य सभी मतदाताओं को नाम दर्ज कराने के लिए इन दस्तावेजों को जमा करना होगा:
- 1 जुलाई, 1987 से पहले जन्मे व्यक्ति: जन्म तिथि और/या जन्म स्थान का प्रमाण।
- 1 जुलाई, 1987 से 2 दिसंबर, 2004 के बीच जन्मे व्यक्ति: माता या पिता की जन्म तिथि और/या जन्म स्थान का प्रमाण।
- 2 दिसंबर, 2004 के बाद जन्मे व्यक्ति: माता और पिता दोनों की जन्म तिथि और/या जन्म स्थान का प्रमाण।
इन दस्तावेजों को जमा कराना होगा
ये श्रेणियां नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुरूप बनाई गई हैं। स्वीकार्य दस्तावेजों में जन्म प्रमाणपत्र, आधार, पैन, ड्राइविंग लाइसेंस, सीबीएसई/आईसीएसई द्वारा जारी 10वीं या 12वीं का प्रमाणपत्र, या भारतीय पासपोर्ट शामिल हैं।
प्रक्रिया और समयसीमा
बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) घर-घर जाकर प्री-फिल्ड गणना फॉर्म (एन्यूमरेशन फॉर्म) वितरित करेंगे, जिसमें मतदाता का नाम, जन्म तिथि, आधार (वैकल्पिक), मोबाइल नंबर, और माता-पिता/पति या पत्नी का नाम और मतदाता पहचान पत्र (ईपीआईसी) नंबर जैसी जानकारी होगी। मतदाता इन फॉर्म को भरकर बीएलओ को सौंप सकते हैं या ईसीआई की वेबसाइट या ईसीआईएनईटी ऐप के माध्यम से ऑनलाइन जमा कर सकते हैं। बीएलओ को फॉर्म और दस्तावेज जमा करने के लिए कम से कम तीन बार घरों का दौरा करना होगा। यदि तय समय में फॉर्म जमा नहीं किए गए, तो संबंधित मतदाता का नाम ड्राफ्ट सूची से हटाया जा सकता है।
आयोग ने कहा कि तेजी से शहरीकरण, बार-बार प्रवास, युवा मतदाताओं की पात्रता, मृत्यु की गैर-रिपोर्टिंग, और विदेशी अवैध प्रवासियों के नाम शामिल होने जैसे कारणों से मतदाता सूची में गलतियां हो सकती हैं। बिहार में 2024 के लोकसभा चुनावों के अनुसार 7.72 करोड़ पंजीकृत मतदाता हैं। इस अभियान का मकसद इन गलतियों को दूर करना और मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करना है।
विपक्ष की चिंताएं
यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, ने कुछ राज्यों में मतदाता सूची की शुद्धता पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस, आप, और तृणमूल कांग्रेस ने क्रमशः महाराष्ट्र, दिल्ली, और बंगाल में मतदाता सूची के अपडेशन को लेकर चिंता जताई है। निर्वाचन आयोग ने सभी राजनीतिक दलों से अपने बूथ लेवल एजेंट्स (बीएलए) नियुक्त करने को कहा है ताकि संशोधन प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे और त्रुटियां कम हो सकें।
देशव्यापी योजना
बिहार में शुरू होने वाला यह अभियान देश के बाकी हिस्सों में भी लागू किया जाएगा, जिसका शेड्यूल बाद में घोषित होगा। आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत उसकी शक्तियों के अनुरूप है। इससे पहले 1952 से 2004 तक 13 बार इस तरह का विशेष गहन संशोधन किया जा चुका है।