
UP BJP President Dalit Leader
UP BJP President Dalit Leader
UP BJP President Dalit Leader: भाजपीय जनता पार्टी इस समय यूपी बीजेपी अध्यक्ष की तलाश में जुटी है। इसके लिए छह नामों की लिस्ट भी केंद्रीय नेतृत्व को भेजी जा चुकी है, जिसमें दो हफ्तों में ही फैसला लिया जाएगा। इस लिस्ट में दो नाम ब्राह्मण समुदाय, दो नाम ओबीसी और दो दलित समुदाय से हैं। पिछले यूपी बीजेपी अध्यक्षों की लिस्ट देखें तो अब तक बीजेपी ने सबसे ज्यादा ब्राह्मण समुदाय से अध्यक्ष बनाएं हैं, फिर ओबीसी से। ऐसे में अगर इस बार बीजेपी दलित समुदाय से अध्यक्ष का नाम चुनती है तो इससे यूपी की राजनीति और 2027 की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव पर बड़ा असर देखने को मिल सकता है।
सबसे पहले यूपी बीजेपी अध्यक्ष के लिए 6 नामों की लिस्ट देखें
बीजेपी ने ब्राह्मण समुदाय से दिनेश शर्मा और हरीश द्विवेदी का नाम शामिल है। दिनेश शर्मा पूर्व उपमुख्यमंत्री और शिक्षाविद और स्वच्छ छवि के नेता हैं, जबकि हरीश द्विवेदी बस्ती से पूर्व सांसद और पार्टी के राष्ट्रीय सचिव रह चुके हैं।
ओबीसी वर्ग से बीजेपी ने धर्मपाल सिंह, और बीएल वर्मा का नाम शामिल किया। धर्मपाल सिंह उत्तर प्रदेश सरकार में वरिष्ठ मंत्री और अनुभवी नेता हैं, वहीं बीएल वर्मा केंद्रीय राज्य मंत्री और संघ के भरोसेमंद नेता हैं।
बीजेपी ने आगे दलित समुदाय से रामशंकर कठेरिया और विद्या सागर सोनकर का नाम जोड़ा। रामशंकर कठेरिया पूर्व केंद्रीय मंत्री और हिंदुत्ववादी छवि के नेता हैं, जबकि विद्या सागर सोनकर एमएलसी और पूर्वी यूपी में मजबूत पकड़ रखने वाले नेता हैं।
दलित समुदाय से अध्यक्ष बनाने का फायदा
यूपी में दलित समुदाय की आबादी लगभग 21-22% है। यह एक बड़ा वोट बैंक है, जिसे परंपरागत रूप से बसपा (बहुजन समाज पार्टी) अपना मानती रही है। ऐसे में अगर बीजेपी दलित समुदाय से पहली बार अध्यक्ष बनाती है, तो वह एक स्पष्ट संदेश देना चाहती है कि पार्टी दलित हितों की भी उतनी ही परवाह करती है। इससे बसपा का वोट बैंक खिसक सकता है और दलित युवाओं और मध्यवर्ग में बीजेपी की स्वीकार्यता बढ़ सकती है।
क्या विपक्ष की रणनीति पड़ जाएगी कमजोर?
यूपी में विपक्ष खासतौर पर समाजवादी पार्टी और बसपा ने पहले दलित और ओबीसी गठजोड़ की रणनीति अपनाई थी। लेकिन अगर इस बार बीजेपी ब्राह्मण और ओबीसी वर्ग के अलावा दलित को अध्यक्ष बनाती है, तो यह सामाजिक संतुलन की रणनीति मानी जाएगी। इससे विपक्ष के जातिवादी राजनीति के आरोपों को बीजेपी खारिज भी कर सकती है। साथ ही दलित समुदाय में बीजेपी के प्रति विश्वास बढ़ेगा, जिससे गठबंधन कमजोर हो सकता है।
दलित चेहरा, लेकिन मजबूत नेतृत्व जरूरी
दलित समुदाय से बीजेपी डॉ रामशंकर कठेरिया और विद्या सागर सोनकर को चुना है। कठेरिया ने उच्च स्तरीय राष्ट्रीय पदों पर काम किया है और वो ज्यादा मुखर राजनीति शैली का प्रदर्शन करते हैं, जिससे उनका प्रभाव ज्यादा माना जाता है। साथ ही वह यूपी बीजेपी के बड़े दलित चेहरे हैं। वहीं विद्या सागर सोनकर का जमीती स्तर पर, खासतौर पर पूर्व यूपी में, प्रभाव गहरा है। आगामी चुनाव के मद्देनजर बीजेपी अगर दलित नेता चुनती है तो वह संगठन में मजबूत पकड़, जनता के बीच लोकप्रियता और RSS संग करीबी… जैसे पहलुओं को देखते हुए करेगी।