
Chirag Paswan on Bihar law and order: बिहार में इन दिनों न तो कानून दिख रहा है, न व्यवस्था। जो दिख रहा है, वो है अपराध, डर, और नेताओं का बयानवीर अवतार। केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने बिहार सरकार की कानून व्यवस्था को लेकर ऐसी प्रकाशमान टिप्पणी की है, जो मुख्यमंत्री कार्यालय की दीवारों से टकराकर अब सोशल मीडिया की गलियों में गूंज रही है। उन्होंने कहा कि मुझे दुख है कि मैं ऐसी सरकार का समर्थन कर रहा हूं… यानी समर्थन भी किया और दुख भी जताया। एकदम राजनीतिक रूप से संतुलित वज्रपात।
हर दिन नई घटना, हर रात नया अंदेशा
बिहार में पिछले कुछ महीनों से जो चल रहा है, उसे ‘अपराध शतक’ कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा। कभी दिन-दहाड़े गोली चलती है, तो कभी शादी समारोह से दुल्हन गायब। पटना में व्यापारी की हत्या, भागलपुर में बच्ची से दुष्कर्म, समस्तीपुर में बैंक लूट एक राज्य, अनेक क्राइम स्पेशल।
इन घटनाओं को देखते हुए चिराग पासवान का गुस्सा फूटा और उन्होंने इसे न सिर्फ प्रशासनिक विफलता कहा बल्कि यह भी जोड़ा कि या तो प्रशासन निकम्मा हो गया है या मिलीभगत में है। यानी या तो नौकरशाही स्वतंत्र हो चुकी है या फिर स्वार्थी।
साजिश की स्याही, सिस्टम की स्याही से गाढ़ी है
चिराग पासवान का कहना है कि यह सब बिहार सरकार को बदनाम करने की साजिश है। अब यह बयान अपने-आप में विरोधाभास की मिसाल है सरकार को बदनाम करने की साजिश कौन कर रहा है? विपक्ष? माफिया? या खुद सत्ता के गलियारों में बैठे लोग? अगर साजिश है तो प्रशासन क्यों नहीं पकड़ रहा? और अगर प्रशासन पकड़ नहीं पा रहा, तो फिर वो किसलिए है केवल सरकारी बैठकों में ग्रीन टी पीने के लिए?
प्रशासन का हाल, ना सांप मरा – ना लाठी टूटी
अगर आप सोचते हैं कि पुलिस हर अपराध पर त्वरित कार्रवाई कर रही है, तो आप शायद बिहार नहीं किसी काल्पनिक राज्य में हैं। यहां घटनाएं होती हैं एफआईआर दर्ज होती है, बयान दिए जाते हैं और फिर मामला ठंडे बस्ते में। जैसे ही कोई घटना घटती है पुलिस अधिकारी कहते हैं हम जांच कर रहे हैं… जांच कब पूरी होगी? जांच जारी है… कब तक जारी रहेगी? जैसे ही कोई सुराग मिलेगा… और सुराग? अभी तक कुछ नहीं मिला…। यह जांच पद्धति अब बिहार पुलिस की पहचान बन चुकी है।
बयानबाज़ी का मौसम साफ, कार्रवाई का आकाश धुंधला
राज्य सरकार अब दो पटरियों पर चल रही है एक ‘आक्रोश प्रबंधन’ और दूसरी ‘छवि बचाव’। नेताओं के बयान आते हैं लेकिन ज़मीन पर हालात जस के तस। चिराग पासवान का यह बयान भी उसी ट्रेन का एक डिब्बा है, जिसमें कई और नेता सवार हो चुके हैं। पिछले महीने गया में व्यापारी की हत्या के बाद केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने भी कहा था कि बिहार में कानून व्यवस्था चिंताजनक है। लेकिन चिंता को कार्य में बदला नहीं गया। अपराधी अपनी जगह अडिग हैं, और नेता बयान देने में प्रतिबद्ध।
सहयोगी सरकार पर एलईडी तीव्रता वाला तंज?
गौरतलब है कि चिराग पासवान एनडीए के केंद्रीय मंत्री हैं और बिहार सरकार उन्हीं की गठबंधन सहयोगी है। यह वैसे ही है जैसे कोई बैंड वाला बारात में खुद बाजा बजा रहा हो और कहे कि साउंड बहुत खराब है। अगर इतनी दिक्कत है तो समर्थन क्यों? और अगर समर्थन है तो आलोचना किस मुंह से? राजनीति में इसे सुविधाजनक विरोध कहते हैं जहां नैतिकता और सत्ता, दोनों में सामंजस्य बैठाने की कला दिखाई जाती है।
अब क्या बिहार बयान से चलेगा या व्यवस्था से?
बिहार की जनता को अब आदत हो चुकी है घटना, विरोध, बयान, मौन… फिर अगली घटना। चिराग पासवान की आलोचना जितनी तीखी थी, कार्रवाई उतनी ही मंद है। यदि यही हाल रहा तो कानून-व्यवस्था शब्द बिहार के शब्दकोश से जल्द ही गायब हो सकता है और उसकी जगह केवल घटना क्रम रह जाएगा।
जब मंत्री खुद कहें कि मैं जिस सरकार का समर्थन कर रहा हूं, वही विफल है, तो फिर जनता किससे उम्मीद करे प्रशासन से, विपक्ष से या फिर चिराग की अगली प्रेस कॉन्फ्रेंस से?