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    Home » मराठा आरक्षण विवाद – जानिए महाराष्ट्र में कब-कब बदला आरक्षण और 2025 की नई स्थिति
    राजनीति

    मराठा आरक्षण विवाद – जानिए महाराष्ट्र में कब-कब बदला आरक्षण और 2025 की नई स्थिति

    Janta YojanaBy Janta YojanaSeptember 9, 2025No Comments8 Mins Read
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    Reservation History In Maharashtra: महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मुद्दा कई सालों से लगातार चर्चा में है। 2023-24 में यह आंदोलन एक नई ताकत के साथ सामने आया, जब मनोज जरांगे पाटिल के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर रैलियां, भूख हड़ताल और प्रदर्शन हुए। लाखों लोग इसमें शामिल हुए और सरकार पर दबाव बढ़ा। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने मराठवाड़ा क्षेत्र के मराठाओं को ‘कुनबी’ प्रमाणपत्र देकर ओबीसी आरक्षण का रास्ता खोला। सितंबर 2025 में राज्य सरकार ने ‘हैदराबाद गजट’ को मान्यता दी और गांव स्तर पर समितियां बनाकर प्रमाणपत्र वितरण की प्रक्रिया शुरू की, ताकि पात्र लोगों को जल्दी आरक्षण का लाभ मिल सके। मराठा समुदाय जो राज्य की कुल आबादी का लगभग एक-तिहाई हिस्सा है, लंबे समय से आर्थिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण की मांग कर रहा है।

    मराठा समुदाय का इतिहास

    मराठा समुदाय को पारंपरिक रूप से योद्धा और किसान जाति के रूप में जाना जाता है। शिवाजी महाराज और पेशवा काल में मराठाओं ने पूरे भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आज़ादी के बाद भी मराठा समाज ने राजनीति, सहकारी बैंकों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर मजबूत पकड़ बनाए रखी। लेकिन 1990 के बाद हालात बदलने लगे। कृषि संकट, सहकारी संस्थाओं की गिरावट और उद्योगों के बढ़ने से मराठा समाज का एक बड़ा हिस्सा आर्थिक रूप से कमजोर हो गया। शहरों की ओर पलायन, खेती में घाटा, युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों की कमी और पढ़ाई में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण बेरोजगारी और असुरक्षा बढ़ी। इन्हीं कारणों से मराठा समाज ने खुद को आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ा मानते हुए नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग शुरू की और इसके लिए आंदोलन, न्यायालय और सरकार तक अपनी बात पहुंचाई।

    आरक्षण का संवैधानिक ढांचा

    भारत में आरक्षण व्यवस्था का उद्देश्य समाज के उन वर्गों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में अवसर देना है जो सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हैं। संविधान के अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) इसके लिए विशेष प्रावधान करते हैं। महाराष्ट्र में पहले से ही ओबीसी, एससी और एसटी वर्गों के लिए आरक्षण लागू है। राज्य में कुल आरक्षण सीमा 52% है जिसमें सभी वर्गों का आरक्षण शामिल है। सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य रूप से आरक्षण की सीमा 50% तय की है, लेकिन महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में यह थोड़ी ज्यादा यानी 52% तक रही है।

    महाराष्ट्र में आरक्षण का इतिहास और स्वरूप

    महाराष्ट्र में आरक्षण की शुरुआत संविधान लागू होने के तुरंत बाद हुई थी। इसका मकसद समाज के उन वर्गों को शिक्षा और नौकरियों में मौका देना था जो सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े थे। 1950 से 1990 के बीच ज्यादातर आरक्षण अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए था। बाद में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC – Other Backward Classes) को भी 1980 के दशक से आरक्षण का लाभ दिया गया। इन सबके साथ महाराष्ट्र में कुल आरक्षण बढ़कर लगभग 52% हो गया।

    मंडल आयोग के बाद बदलाव

    1990 के दशक में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद महाराष्ट्र में आरक्षण व्यवस्था और व्यापक हो गई। पहले जहां केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) को ही आरक्षण मिलता था, वहीं अब अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को भी सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 27% आरक्षण मिलने लगा। इसके बाद महाराष्ट्र में अनुसूचित जाति को करीब 13%, अनुसूचित जनजाति को 7%, विमुक्त जाति/भटक्या जमाती (VJNT) को लगभग 3%, अन्य पिछड़ा वर्ग को 19% और विशेष पिछड़ा वर्ग (SBC) को 2% आरक्षण दिया जाने लगा। जिससे राज्य में कुल आरक्षण लगभग 44% तक पहुंच गया। मंडल आयोग की रिपोर्ट 1980 में तैयार हुई थी और 1990 में इसे लागू किया गया। इस रिपोर्ट ने सामाजिक और आर्थिक पिछड़ापन मापकर करीब 52% जनसंख्या को पिछड़ी जातियों में शामिल किया। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस आरक्षण को 50% की सीमा में रखते हुए सही ठहराया।

    पहली बार मराठा आरक्षण की मांग

    मराठा आरक्षण की मांग का इतिहास लंबे समय से चला आ रहा है। इसकी शुरुआत मार्च 1981 में हुई जब पहली बार मराठा आरक्षण की मांग उठाई गई और उसी वर्ष अनंतसाहेब पाटिल ने इस मांग के समर्थन में आत्महत्या कर ली। इसके बाद 1995 में पहली बार राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया। वर्ष 2000 में कुणबी प्रवर्ग वालों को ओबीसी में शामिल करने का सुझाव टेव्हर रिपोर्ट में दिया गया। वर्ष 2008 में मराठा आरक्षण की मांग को जोर-शोर से उठाया गया और इसे वापस लाने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन हुए। 2013 में आरक्षण के लिए नारायण राणे समिति का गठन किया गया।

    मराठा आरक्षण की शुरुआत

    मराठा आरक्षण की मांग 1990 के दशक से चल रही थी लेकिन इसे असली गति 2014 के बाद मिली। वर्ष 2014 में मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की सरकार(कांग्रेस-एनसीपी सरकार) ने एक विशेष समिति की सिफारिश पर मराठा समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16% आरक्षण देने का फैसला किया। हालांकि इस फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और नवंबर 2014 में कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी।

    फडणवीस सरकार का प्रयास

    इसके बाद 2018 में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने मराठाओं को ‘सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग’ (SEBC) मानकर 16% आरक्षण देने का कानून पास किया। लेकिन यह कानून भी बाद में उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में कानूनी चुनौती का सामना करता रहा।

    हाईकोर्ट का फैसला

    जून 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण को मंजूरी दी, लेकिन आरक्षण की मात्रा घटाकर शिक्षा में 12% और सरकारी नौकरियों में 13% कर दी। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।

    सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

    मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया। अदालत का कहना था कि मराठा समुदाय को पिछड़ा साबित करने के लिए पर्याप्त ठोस सबूत नहीं हैं। साथ ही, कोर्ट ने 1992 के इंद्रा साहनी (मंडल) केस का हवाला देते हुए दोहराया कि आरक्षण की सीमा सामान्यतः 50% से अधिक नहीं हो सकती, जब तक कोई बहुत खास परिस्थिति न हो। चूंकि महाराष्ट्र में पहले से ही 50% से ज्यादा आरक्षण था इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया।

    मनोज जरांगे पाटिल का आंदोलन

    2023 से 2025 के बीच मराठा आरक्षण आंदोलन ने जोर पकड़ लिया। मनोज जरांगे पाटिल के नेतृत्व में लाखों लोग भूख हड़ताल, रैलियों और बड़े प्रदर्शनों में शामिल हुए। इस दबाव के चलते महाराष्ट्र सरकार ने मराठवाड़ा क्षेत्र के मराठाओं को ‘कुनबी’ प्रमाणपत्र देकर उन्हें ओबीसी आरक्षण का लाभ देने का रास्ता खोला। सितंबर 2025 में सरकार ने ‘हैदराबाद गजट’ को मान्यता दी और प्रमाणपत्र वितरण की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू की। इसके अंतर्गत गांव स्तर पर समितियां गठित की गई हैं, जो दस्तावेजों की जांच कर पात्रता तय करेंगी और प्रमाणपत्र जारी करेंगी। इस प्रक्रिया का उद्देश्य मराठा समाज को प्रमाणपत्र देने की प्रक्रिया को सरल, पारदर्शी और त्वरित बनाना है। प्रमाणपत्र पाने के लिए आवेदकों को यह साबित करना होगा कि उनके पूर्वजों के पास 21 नवंबर 1961 से पहले कृषि भूमि थी या वे उस क्षेत्र में पहले से रहते थे, जिसके लिए पुराने राजस्व अभिलेख, सरकारी दस्तावेज या हलफनामा मान्य होगा। इस निर्णय से मराठा समाज के एक बड़े हिस्से को ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण का लाभ मिलने का रास्ता खुल गया है ।

    वर्तमान स्थिति

    महाराष्ट्र में पहले से ही 62% आरक्षण था और नए आरक्षण के साथ इस समय महाराष्ट्र में आरक्षण की कुल सीमा लगभग 72% तक पहुंच चुकी है। इसमें अनुसूचित जाति (SC) को 13%, अनुसूचित जनजाति (ST) को 7%, विमुक्त जाति और भटक्या जमाती (VJNT) को 3%, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 19%, विशेष पिछड़ा वर्ग (SBC) को 2%, मराठा समाज को 10% और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को 10% आरक्षण दिया जा रहा है। 2019 में केंद्र सरकार द्वारा लागू 103वें संविधान संशोधन के बाद EWS के लिए 10% आरक्षण लागू हुआ जिससे कुल आरक्षण की सीमा और बढ़ गई।

    कब और कितनी बार बदला आरक्षण 

    • महाराष्ट्र में 1950 में संविधान लागू होने के बाद सबसे पहले अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई।

    • 1961 में विमुक्त जाति और भटक्या जमाती (VJNT) को आरक्षण में शामिल किया गया।

    • मंडल कमीशन की 1992 की सिफारिशों के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 19% आरक्षण मिला जिससे कुल आरक्षण प्रतिशत लगभग 44% हुआ।

    • 2014 में कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने मराठा समाज को 16% आरक्षण देने का प्रयास किया लेकिन यह न्यायालय में रद्द हो गया।

    • इसके बाद 2018 में देवेंद्र फडणवीस सरकार ने मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (SEBC) घोषित कर 16% आरक्षण का कानून पास किया जिसे हाईकोर्ट ने घटाकर 12 – 13% कर दिया।

    • 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया।

    • फिर 2025 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समाज को ओबीसी के तहत कुंभी प्रमाणपत्र देकर आरक्षण का लाभ देने की प्रक्रिया शुरू की।

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