
Former Bihar chief minister Rabri Devi (Photo: Social Media)
Former Bihar chief minister Rabri Devi
1997 में बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने चारा घोटाले में अपनी संभावित गिरफ्तारी से बचने और बिहार में अपने परिवार की सत्ता को बनाए रखने के लिए एक बेहद सुनियोजित और नाटकीय रणनीति अपनाई। इस रणनीति के तहत, उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। यह कदम एक तरह से उनके द्वारा परिवार के हितों को प्राथमिकता देने के लिए उठाया गया था, जिसमें उनका मुख्य उद्देश्य सत्ता को अपने हाथों से जाने नहीं देना था। इस निर्णय ने बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ लिया और राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री बनने की प्रक्रिया पूरी राज्य के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को बदलने में मददगार साबित हुई।
लालू प्रसाद यादव, जो 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बने, ने गरीबों और पिछड़ों के बीच अपनी एक मजबूत पहचान बनाई। उनकी सरकार ने कई योजनाएं चलाईं, लेकिन साथ ही भ्रष्टाचार और घोटाले के आरोपों ने उनकी छवि को धूमिल करना शुरू कर दिया। 1993 में जब विपक्ष के नेता सुशील मोदी ने यह आरोप लगाया कि पशुपालन विभाग से लगातार और जरूरत से ज्यादा पैसे निकाले जा रहे हैं, तो मामला बढ़ने लगा। इस आरोप के साथ-साथ रांची के ट्रेजरी से सरकारी पैसे के बेहिसाब निकासी के मामले ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दीं। इन मामलों ने उन्हें राजनीतिक संकट में डाल दिया था। 1996 के आम चुनावों के बाद, लालू ने जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में अपनी नई पहचान बनाई और प्रधानमंत्री बनने का सपना देखा। लेकिन जनवरी 1997 में सीबीआई ने उन्हें चारा घोटाले के मामले में पूछताछ के लिए बुलाया, जिससे उनकी गिरफ्तारी का खतरा मंडराने लगा। इसके बाद, 17 जून 1997 को गवर्नर एआर किद्वई ने लालू समेत 55 लोगों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल करने की अनुमति दे दी।
सीबीआई द्वारा गिरफ्तारी का खतरा मंडरा रहा था, तो लालू ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया। राधा नंदन झा की सलाह के बाद, उन्होंने कांग्रेस से समर्थन सुनिश्चित किया और गिरफ्तारी टलवाने के लिए सीबीआई को संदेश भेजा। 25 जुलाई 1997 को इस्तीफा देने के बाद, उन्होंने राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री पद का उत्तराधिकारी घोषित किया। यह कदम लालू ने अपने परिवार को सत्ता में बनाए रखने के लिए लिया था, ताकि किसी भी विरोधी की आवाज़ दबाई जा सके।
इस्तीफा देने के तुरंत बाद, लालू ने विधायकों की एक बैठक बुलायी और केवल यह कहा, “हमने राबड़ी को चुन लिया है।” विधायकों ने एक स्वर में जवाब दिया, “जी सर ठीक किए हैं”। लालू यादव ने बड़ी चतुराई से राबड़ी देवी का नाम आगे किया, ताकि किसी भी विरोध को दबाया जा सके। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, लालू ने यह कदम इस तरह से उठाया कि इसमें विरोध करने की कोई गुंजाइश नहीं थी। अपने साले साधु यादव से भरी सभा में राबड़ी देवी का नाम आगे करवा कर लालू ने अपने परिवार के हाथों में सत्ता की चाबी सौंप दी।
राबड़ी देवी, जो खुद मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार नहीं थीं, अचानक मुख्यमंत्री पद पर बैठने के लिए मजबूर हो गईं। शपथ ग्रहण के दौरान उनका दृश्य बहुत ही भावुक और नाटकीय था। कहा जाता है कि राबड़ी देवी भावशून्य थीं और उन्होंने शायद ही कभी कल्पना की थी कि वह मुख्यमंत्री बनेंगी। उनके पांव की उंगलियों में लगी लाल नेल पॉलिश तक छिटक कर बदरंग हो गई थी। जब राबड़ी देवी ने गवर्नर से शपथ ली, तो कई लोग उन पर हंसी उड़ा रहे थे, और लालू ने मजाक में कहा कि “कल से टन टन बोलेंगी”।
राबड़ी देवी ने कभी यह नहीं छिपाया कि मुख्यमंत्री बनना उनकी इच्छा नहीं थी। वह हमेशा अपने पति की आज्ञा का पालन करती थीं। मुख्यमंत्री बनने के बावजूद, वह किचन के काम और लालू के लिए सुबह की चाय बनाना नहीं छोड़ती थीं। विपक्ष ने राबड़ी देवी के भोलेपन का मजाक उड़ाया, लेकिन यह बात स्पष्ट हो गई कि बिहार की सत्ता का असली केंद्र अब भी लालू यादव ही थे। उनकी सरकार को ‘जंगल राज’ के नाम से जाना गया, और राबड़ी देवी का कार्यकाल एक तरह से ‘रबर स्टैंप’ के रूप में देखा गया।
राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री बनने के बाद, उनकी सरकार को दो बार हटाने की कोशिशें की गई। 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने ‘जंगल राज’ की बात करते हुए बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की। केंद्रीय सरकार ने सुंदर सिंह भंडारी को राज्यपाल नियुक्त किया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की कोशिश की। हालांकि, लालू ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर राष्ट्रपति शासन को रोक लिया। 2000 में हुए चुनावों में कोई भी पार्टी स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं कर पाई। नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश की गई, लेकिन वह 7 दिनों में ही अपनी सरकार नहीं चला पाए और राबड़ी देवी फिर से मुख्यमंत्री बन गईं।
लालू यादव की चतुराई और राजनीतिक कुशलता ने राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया, और इसने बिहार की राजनीति में परिवार की सत्ता को बनाए रखा। राबड़ी देवी का कार्यकाल विवादों से घिरा रहा, लेकिन यह भी सच था कि इस दौरान भी असली शक्ति लालू के हाथों में रही। 2005 तक, राबड़ी देवी का कार्यकाल बिहार में तीसरे सबसे लंबे मुख्यमंत्री पद का कार्यकाल साबित हुआ। इस तरह, लालू यादव की यह चाल बिहार की राजनीति में एक ऐतिहासिक घटना बन गई।