
Tilkut Lai and Anarsa
Gaya’s sweets: भगवान बौद्ध की धरती बिहार अपने ऐतिहासिक और आध्यात्मिक पहचान के साथ ही साथ पूरी दुनिया में अपनी परंपरा, संस्कृति और खानपान की समृद्ध विरासत के लिए भी मशहूर है। खासतौर से गया में मौजूद विष्णुपद मंदिर और बोधगया जैसे पवित्र स्थलों के साथ-साथ यह जगह पारंपरिक मिठाइयों के लिए भी उतनी ही ज्यादा प्रसिद्ध है। यहां की पारंपरिक मिठाइयां सिर्फ स्वाद ही नहीं, बल्कि पुरातन संस्कृति की पहचान बन चुकी हैं। जो पीढ़ियों से चली आ रही है जिनका अनोखा स्वाद आज विदेशों तक अपनी मिठास फैला रहा है। गया की मिठाइयां अनोखे स्वाद के साथ यह सामाजिक जुड़ाव और सांस्कृतिक पहचान का भी प्रतीक हैं। विवाह, पूजा या कोई पारिवारिक आयोजन बिना इन मिठाइयों के अधूरा माना जाता है।
आइए जानते हैं (बिहार) गया, की इन मशहूर मिठाइयों से जुड़े महत्व के बारे में –
गयाजी की मिठाईयों का इतिहास और पहचान
गया की मिठाइयों का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। माना जाता है कि यहां के कारीगरों ने पारंपरिक भारतीय व्यंजनों को एक अनोखा स्थानीय रूप दिया। समय के साथ ये मिठाइयां केवल स्थानीय उत्सवों तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि अब यह देश-विदेश के बाजारों में भी अपनी जगह बना चुकी हैं। खास बात यह है कि आज भी गया के मिठाई कारोबारी इन्हें तैयार करने में वही पुराने तरीकों का ही इस्तेमाल करते आ रहें हैं। इन मिठाइयों को तैयार करने में शुद्ध देसी घी, गुड़, तिल और खोया जैसी प्राकृतिक सामग्री का ही प्रयोग होता है।
तिलकुट मिठाई बन चुकी है गया की पहचान
बिहार के गयाजी का तिलकुट देशभर में अपनी खास मिठास और पारंपरिक स्वाद के लिए प्रसिद्ध है। तिल और गुड़ या चीनी से बनी यह मिठाई विशेष रूप से मकर संक्रांति के समय अधिक पसंद की जाती है। लेकिन अब यह सालभर उपलब्ध रहती है और भारत के लगभग हर राज्य में इसकी सप्लाई होती है।
यहां के कारीगर कड़ाही में तिल को सुनहरा भूनकर और हाथों से दबाकर तिलकुट तैयार करते हैं। इसका स्वाद कुरकुरा और लंबे समय तक टिकने वाला होता है। गया के प्रमोद तिलकुट और हरिहर तिलकुट जैसे ब्रांड आज विदेशों तक अपने उत्पाद भेज रहे हैं।
स्वाद का खजाना है अनरसा – चावल और गुड़ की लाजवाब जोड़ी
गया का अनरसा त्योहारों की शुभ मिठाई मानी जाती है। चावल के आटे, गुड़ और घी से बनी यह मिठाई बाहर से कुरकुरी और अंदर से मुलायम होती है। इसे धीमी आंच पर तलने से इसका स्वाद लंबे समय तक ताजा बना रहता है।
खासतौर से बरसाती मौसम और दीपावली या छठ पूजा के अवसर पर यह मिठाई हर घर की थाली में जरूर दिखाई देती है। गया के लोग मानते हैं कि अनरसा सिर्फ मिठाई नहीं, घर की सौभाग्य का प्रतीक है।
गर्मी की मिठाई नाम से मशहूर है लाई
गया की लाई एक ऐसी पारंपरिक मिठाई है जो पीढ़ियों से बनती आ रही है। इसे रामदाना (राजगिरा) और खोया से बनाया जाता है। गर्मी के मौसम में इसका सेवन शरीर को ठंडक देता है, इसलिए इसे गर्मी की मिठाई भी कहा जाता है।
स्थानीय लोग इसे खोबी की लाई” के नाम से जानते हैं। शादी-ब्याह और तिलक जैसे अवसरों पर यह मिठाई शुभ मानी जाती है। आज भी गया के हर मोहल्ले में कोई न कोई परिवार इस पारंपरिक विधि से लाई तैयार करता है।
खास मिठास और शुद्धता के लिए दूर-दूर तक मशहूर है गया का लड्डू
गया का लड्डू अपनी खास मिठास और शुद्धता के लिए दूर-दूर तक मशहूर है। यहां बूंदी लड्डू खास पहचान रखता है। स्थानीय दुकानदारों में प्रमोद लड्डू का नाम सबसे प्रमुख है, जिनकी लड्डू की डिमांड न केवल गया और पटना में, बल्कि दिल्ली, मुंबई और कोलकाता तक है। शुद्ध घी, महीन बूंदी और पारंपरिक मिश्रण से बना गया का लड्डू हर त्योहार की शान बन चुका है।
विष्णुपद मंदिर में प्रतिदिन भोग के रूप में अर्पित होता है केसरिया पेड़ा
गया का केसरिया पेड़ा स्वाद और भक्ति का अनोखा मिश्रण है। खोया, दालचीनी, केसर, गुलाब और बड़ी इलायची से तैयार यह पेड़ा न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत पवित्र माना जाता है।
विष्णुपद मंदिर में प्रतिदिन यह पेड़ा भगवान विष्णु को भोग के रूप में अर्पित किया जाता है। यही कारण है कि दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालु इसे प्रसाद के रूप में अपने साथ ले जाते हैं। पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से आने वाले श्रद्धालु इस पेड़े को खास तौर पर खरीदते हैं।
विदेशों तक पहुंची गया की मिठास
आज के समय में गया की मिठाइयों का बाजार केवल बिहार तक सीमित नहीं है। इनका निर्यात नेपाल, भूटान, अमेरिका, ब्रिटेन और खाड़ी देशों तक किया जाता है। खासकर मकर संक्रांति के समय तिलकुट की भारी डिमांड रहती है।
गया के कई पारंपरिक कारोबारी अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से मिठाई विदेशों तक भेज रहे हैं। एयर-टाइट पैकिंग और वैक्यूम सीलिंग जैसी आधुनिक तकनीकों ने इन पारंपरिक स्वादों को और भी लंबा जीवन दिया है।
सरकार और स्थानीय प्रयास
बिहार सरकार ने गया के तिलकुट और अन्य मिठाइयों को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग दिलाने की दिशा में पहल की है, ताकि इन उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल सके। इसके अलावा, स्थानीय उद्योग विभाग द्वारा ‘गया मिठाई क्लस्टर योजना’ के तहत कारीगरों को प्रशिक्षण और आधुनिक उपकरण मुहैया कराए जा रहे हैं।


