
Bhagalpuri Silk Saree
भागलपुरी सिल्क: भारतीय संस्कृति से जुड़ी हर पारंपरिक वेशभूषा अपनी मिट्टी की कहानी कहती है, जिसमें महिलाओं के पसंदीदा परिधान साड़ी की बात हो तो इसमें अनगिनत विविधताएं और खूबियां देखने को मिलती हैं। वहीं बात बिहार की भागलपुरी सिल्क साड़ी की हो तो रेशम नगरी की पहचान दिलाने वाला यह परिधान न सिर्फ देश में, बल्कि विदेशों में भी अपनी चमक बिखेर रहा है। यह साड़ी सिर्फ रेशम की बुनाई नहीं, बल्कि परंपरा, कला और मेहनतकश बुनकरों से बेहद भावुक जुड़ाव रखती है। आइए जानते हैं भागलपुरी सिल्क की खासियत, इसका इतिहास, लोकप्रियता और अंतरराष्ट्रीय पहचान के बारे में –
भागलपुर की साड़ी, जिसकी दुनिया है दीवानी
भागलपुर का नाम सुनते ही सबसे पहले दिमाग में आता है रेशम। यही कारण है कि इस शहर को भारत का सिल्क सिटी कहा जाता है। यहां बनने वाली भागलपुरी सिल्क साड़ी की दीवानगी सिर्फ बिहार या भारत तक सीमित नहीं, बल्कि इसकी खनक लंदन, पेरिस और टोक्यो तक गूंजती है।
बुनाई की यह परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है। यहां के बुनकर रेशम के धागों से ऐसी कलात्मक और करीने से सधी हुई कलाकारी रचते हैं कि देखने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है।
कब मनाया जाता है साड़ी दिवस?
भारतीय साड़ी के महत्व को सम्मान देने के लिए हर साल 21 दिसंबर को विश्व साड़ी दिवस (World Saree Day) मनाया जाता है। इस दिन दुनियाभर में भारतीय महिलाएं साड़ी पहनकर अपनी संस्कृति का गौरव मनाती हैं। इस खास अवसर पर भागलपुरी सिल्क साड़ी की लोकप्रियता सबसे ज्यादा देखने को मिलती है।
क्या है भागलपुरी सिल्क की खासियत?
भागलपुरी रेशम का नाम बिहार के शहर भागलपुर से लिया गया है। यहां एन्थेरिया पफिया नामक विशेष रेशमकीट से कोकून तैयार किया जाता है, जिससे तसर रेशम (Tussar Silk) बनता है। यही कारण है कि इस साड़ी को तसर साड़ी भी कहा जाता है।
इस साड़ी की सबसे खास बात यह है कि इसे अहिंसक तरीके से तैयार किया जाता है। यानी इसमें किसी कीट या जीव को नुकसान नहीं पहुंचाया जाता। इसीलिए इसे पीस सिल्क (Peace Silk) के नाम से भी जाना जाता है। यह रेशम न सिर्फ मुलायम होता है बल्कि इसका हल्का सुनहरा रंग इसे और भी खास बनाता है।
बेहद अनोखी है तसर रेशम की नाजुक बुनाई
भागलपुरी तसर साड़ियों की बुनाई बेहद बारीक और मेहनत भरी होती है। कोकून से रेशम का धागा तैयार करने में तीन दिन तक का समय लगता है और एक साड़ी पूरी तरह बनने में कई दिन लग जाते हैं।
इन रंग-बिरंगे धागों से बुनकर विभिन्न डिजाइन, प्रिंट और कटवर्क तैयार करते हैं। यही वजह है कि आज तसर साड़ी पर कटवर्क डिज़ाइन और जेकार्ड प्रिंट सबसे ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं।
कारीगरों के मुताबिक, तीन दिनों की मेहनत में करीब 10 मीटर रेशम बुना जाता है, जिससे एक साड़ी तैयार होती है। महीने में औसतन 10 साड़ियां तैयार होती हैं। इनकी कीमत 3000 से 35000 रुपये तक होती है।
तसर सिल्क साड़ी – हैंडलूम बनाम पावरलूम
भागलपुर में रेशमी साड़ियां दो तरह के करघों पर तैयार होती हैं। हैंडलूम और पावरलूम। हैंडलूम की साड़ियों की खासियत यह है कि इन्हें पारंपरिक तरीके से हाथों से बुना जाता है, जिससे हर साड़ी में एक अनोखी पहचान होती है।
वहीं पावरलूम से साड़ियां तेज़ी से तैयार होती हैं, लेकिन उनमें हैंडलूम की आत्मा नहीं होती। यही कारण है कि अब फिर से लोग हैंडलूम की ओर लौट रहे हैं और इन साड़ियों की मांग बढ़ रही है।
भागलपुरी रेशम का व्यवसाय और रोजगार
भागलपुर में हर साल 100 करोड़ रुपए से अधिक का रेशमी कारोबार होता है। इसमें आधा हिस्सा स्थानीय बाजारों से और आधा निर्यात से आता है। करीब 10 लाख से ज्यादा लोग कोकून निकालने, धागा तैयार करने और बुनाई से जुड़े हैं। यह उद्योग न सिर्फ संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि हजारों परिवारों की आजीविका का साधन भी बना हुआ है।
साड़ियों की किस्में और कीमतें
भागलपुरी रेशम कई शैलियों में तैयार होती हैं। तसर, एरी, शहतूत, मलवरी, मूंगा, इरण्डी, कटिया, तसर घिच्चा, खेवा, केला रेशम आदि।
किए सबसे ज्यादा मांग तसर सिल्क और मलवरी सिल्क की होती है। इन साड़ियों की कीमतों की बात करें तो
तसर सिल्क साड़ी की कीमत ₹3,000 से ₹7,000,
एरी सिल्क साड़ी की कीमत ₹8,000 तक, मलवरी सिल्क (जेकार्ड प्रिंट) की कीमत ₹15,000 से ₹25,000 तक,
वहीं हैंडलूम पर बनी प्रीमियम साड़ी की कीमत ₹35,000 से ₹40,000 तक जाती है। जिनमें मलवरी सिल्क की सबसे महंगी साड़ियां कांजीवरम डिजाइन में आती हैं। जिनका कपड़ा इतना मुलायम होता है कि आप उसे मोड़कर जेब में रख सकते हैं।
विदेशों में भागलपुरी साड़ी की लोकप्रियता
भागलपुर की साड़ियां अब न सिर्फ भारत में बल्कि अमेरिका, बांग्लादेश, चीन, कोरिया, थाईलैंड, सिंगापुर, जापान, श्रीलंका जैसे देशों में भी निर्यात की जाती हैं।
इन साड़ियों को पेरिस और लंदन के फैशन शो तक में प्रदर्शित किया गया है, जहां अंतरराष्ट्रीय डिजाइनरों ने इसे ‘Luxury Indian Weave’ का दर्जा दिया है।
पुरातन परंपरा की संवाहक है भागलपुरी सिल्क
भागलपुरी सिल्क सिर्फ एक कपड़ा नहीं, बल्कि भारतीय परंपरा और बुनकरों की मेहनत का जीवंत उदाहरण बन चुकी है। सबसे खास बात है कि यह साड़ी जितनी खूबसूरत दिखती है, उतनी ही पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ भी है।
धीरे-धीरे दुनिया अब फास्ट फैशन से सस्टेनेबल फैशन की ओर बढ़ रही है और ऐसे में भागलपुरी रेशम जैसे अहिंसक, हस्तनिर्मित परिधान वैश्विक मंच पर भारत की पारंपरिक पहचान के संवाहक बन रहे हैं।
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी पारंपरिक स्रोतों, स्थानीय बुनकरों और कारोबारी विशेषज्ञों के बयानों पर आधारित है। इसमें उल्लेखित साड़ियों की कीमतें और बाज़ार संबंधी आंकड़े समय, स्थान और मांग के अनुसार बदल सकते हैं। लेख का उद्देश्य भागलपुर की पारंपरिक सिल्क कला और उससे जुड़ी सांस्कृतिक विरासत के प्रति जागरूकता बढ़ाना भर है।


