
Ramayana Story Uttarakhand Drongiri Village Ka Rahasya
Dronagiri Village Mystery : महाकाव्य रामायण में दर्ज कहानियों को प्रमाणित करती भारत की धरती पर शायद ही कोई ऐसी जगह होगी जहां हनुमान जी की पूजा न की जाती हो। चाहे मंदिर हो, पीपल के वृक्ष का चबूतरा हो या घर का छोटा-सा कोना बजरंगबली की उपस्थिति हर जगह दिखाई देती है। लेकिन इसी धरती पर एक ऐसा गांव भी है जहां लोग हनुमान जी की पूजा करना अपराध मानते हैं, बल्कि उनके नाम का जिक्र भी बहुत सोच-समझकर कर ही करते हैं। इस गांव का नाम है द्रोणगिरी। जो उत्तराखंड के चमोली जिले में करीब 11,000 फीट की ऊंचाई पर बसा है। चारों ओर बर्फ से ढकी पहाड़ियां, घने देवदार के जंगल और हवा में जड़ी-बूटियों की महक यह इलाका जितना खूबसूरत है, उतना ही रहस्यमयी भी।
यहां के लोग सदियों से एक अनोखी मान्यता पर विश्वास करते हैं। उनका कहना है कि हनुमान जी ने रामायण काल में जब संजीवनी बूटी लेने आए थे, तब उन्होंने उनके पवित्र पर्वत को तोड़ दिया था। यही कारण है कि आज तक इस गांव में हनुमान जी की पूजा नहीं होती।
समय के साथ भले ही दुनिया बदल गई हो, लेकिन इस गांव की परंपरा आज भी जीवित है। आइए जानते हैं द्रोणगिरी गांव से जुड़े इस रहस्य के बारे में –
रामायण काल से जुड़ी है पुरानी मान्यता
द्रोणगिरी गांव की मान्यता रामायण काल से जुड़ी है। कथा के अनुसार, जब लंका युद्ध के दौरान लक्ष्मण घायल हुए थे, तब राम ने हनुमान जी को हिमालय से संजीवनी बूटी लाने भेजा। कहा जाता है कि यह बूटी द्रोणगिरी पर्वत की ही एक चोटी पर मौजूद थी। हनुमान जी जब वहां पहुंचे तो उन्हें सही पौधा पहचान में नहीं आया। इसलिए उन्होंने पूरा पर्वत ही उठा लिया और उड़कर उसे लंका चले गए। हालांकि भारत में इस घटना को हनुमान जी की शक्ति और भक्ति का प्रतीक माना जाता है, लेकिन द्रोणगिरी के लोग इसे कुछ अलग नज़र से देखते हैं।
हनुमान जी को लेकर गांववालों की मान्यता क्यों अलग है
द्रोणगिरी के लोगों का विश्वास है कि जिस पर्वत को हनुमान जी उठा ले गए, वह उनकी दैवीय शक्ति का प्रतीक था। उनके लिए यह पर्वत सिर्फ मिट्टी-पत्थर नहीं, बल्कि उनका जीवंत देवता था। इसलिए जब हनुमान जी ने पर्वत का हिस्सा तोड़ा, तो उन्हें लगा कि उनकी देवी को ठेस पहुंची। इसी कारण से उन्होंने तय किया कि वे हनुमान जी की पूजा नहीं करेंगे।
कैसी है यहां की धार्मिक परंपरा
द्रोणगिरी में आज भी न तो हनुमान जी का कोई मंदिर है, न उनके चित्र घरों में लगाए जाते हैं। कई साल पहले तक यह भी परंपरा थी कि जो कोई हनुमान जी की पूजा करता, उसे समाज से अलग कर दिया जाता था।
यह नाराज़गी दुश्मनी नहीं, बल्कि अपने पर्वत-देवता के प्रति आस्था का प्रतीक मानी जाती है। यहां के लोग मानते हैं कि उनका असली देवता सामने खड़ा द्रोणगिरी पर्वत ही है। जो उनकी हर तरह से रक्षा करता है।
द्रोणगिरी की खासियत है यहां मौजूद औषधीय पौधों का खजाना
द्रोणगिरी पर्वत का इलाका औषधीय पौधों से भरपूर है। यहां मिलने वाली कई जड़ी-बूटियां, जैसे कटुकी, का इस्तेमाल लोग आज भी घरेलू इलाज में करते हैं।
वैज्ञानिक भी इस क्षेत्र में कई बार शोध कर चुके हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि असली संजीवनी बूटी कौन-सी थी, लेकिन आज तक कोई निश्चित जवाब नहीं मिला। इस वजह से द्रोणगिरी की पहाड़ियां आज भी रहस्य से भरी मानी जाती हैं।
द्रोणगिरी गांव आस्था और पर्यावरण का अनोखा मेल
द्रोणगिरी गांव के लोग प्रकृति से गहराई से जुड़े हैं। उनके त्योहार, रीति-रिवाज और पूजा-पद्धति सब पर्वत और पेड़ों से जुड़ी हैं। उनके लिए धर्म का मतलब है प्रकृति की रक्षा और सम्मान करना है। इसलिए जब हनुमान जी द्वारा पर्वत उठाने की कथा सुनाई जाती है, तो उन्हें लगता है जैसे किसी ने उनके देवता को नुकसान पहुंचाया है। हालांकि अब समय बदल रहा है। नई पीढ़ी पढ़-लिखकर बाहर जा रही है और आधुनिक विचारों को अपना रही है।
फिर भी, इस गांव के बुजुर्ग आज भी अपनी मान्यता पर कायम हैं। उनका देवता आज भी सिर्फ वही द्रोणगिरी पर्वत है, जिसे वे हर सुबह सबसे पहले श्रद्धा से प्रणाम करते हैं। इस गांव से जुड़ी यह मान्यता यहां की अनोखी पहचान के साथ संस्कृति और प्रकृति के जुड़ाव की मिसाल बन गई है।
द्रोणगिरी गांव कैसे पहुंचें –
द्रोणगिरी गांव उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है और यह ज्योतिर्मठ (जोशीमठ) से करीब 35–40 किलोमीटर की दूरी पर है। यह इलाका ऊंचाई पर बसा होने के कारण यहां पहुंचना थोड़ा चुनौतीपूर्ण जरूर है, लेकिन सफर बेहद खूबसूरत और रोमांच से भरा है।
1. सड़क मार्ग से:
सबसे पहले आपको जोशीमठ तक पहुंचना होगा।
जोशीमठ सड़क मार्ग से ऋषिकेश (290 किमी) या देहरादून (320 किमी) से जुड़ा हुआ है।
ऋषिकेश या हरिद्वार से नियमित बसें और टैक्सियां जोशीमठ के लिए मिल जाती हैं।
जोशीमठ से आगे तपोवन- सेमी- द्रोणगिरी तक स्थानीय जीप या ट्रेकिंग मार्ग से पहुंचा जा सकता है।
2. रेल मार्ग से-
सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है, जो लगभग 280 किलोमीटर दूर है। स्टेशन से आप टैक्सी या बस लेकर जोशीमठ तक पहुंच सकते हैं।
3. हवाई मार्ग से-
द्रोणगिरी के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जॉली ग्रांट एयरपोर्ट (देहरादून) है, जो लगभग 310 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
एयरपोर्ट से जोशीमठ तक टैक्सी या बस द्वारा यात्रा की जा सकती है।
4. ट्रेकिंग अनुभव
जोशीमठ से द्रोणगिरी तक का रास्ता घने जंगलों, झरनों और पहाड़ी मोड़ों से होकर गुजरता है। कई जगह सड़क संकरी और पथरीली है, इसलिए बेहतर है कि यह सफर स्थानीय गाइड या अनुभवी ट्रैवलर के साथ किया जाए।
डिस्क्लेमर: इस लेख में प्रस्तुत जानकारी धार्मिक मान्यताओं, लोककथाओं और ऐतिहासिक संदर्भों पर आधारित है। इसका उद्देश्य किसी आस्था, देवी-देवता या समुदाय की भावना को ठेस पहुंचना नहीं है।


