Kailash Gahlot : दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी को कद्दावर नेता कैलाश गहलोत के अचानक दिए गए इस्तीफे से करारा झटका लगा है। मंत्री पद छोड़ने और पार्टी से इस्तीफा देने के एक दिन बाद ही उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। आम आदमी पार्टी के मुखिया केजरीवाल को लिखे गए पत्र में गहलोत ने यमुना की सफाई और उनके शीशमहल समेत कई मुद्दे उठाए थे।
भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के मौके पर गहलोत ने कहा है कि उन्होंने किसी दबाव में भाजपा में शामिल होने का फैसला नहीं किया है। वैसे गहलोत के इस्तीफे के पीछे कई और कारण माने जा रहे हैं। वे पिछले काफी समय से भीतर ही भीतर नाराज चल रहे थे। हालांकि चतुर नेता होने के कारण उन्होंने अपनी नाराजगी की भनक पार्टी को नहीं लगने दी थी। उन्होंने अचानक इस्तीफा देकर पार्टी को करारा झटका दिया है।
गहलोत में घट गया था केजरीवाल का भरोसा
गहलोत का इस्तीफा आप के लिए इसलिए भी बड़ा झटका माना जा रहा है क्योंकि पार्टी इन दिनों दिल्ली विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी हुई है। अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए केजरीवाल लगातार बैठकें करने में जुटे हुए हैं। मंडल, जिला और बूथ स्तर पर कार्यकर्ता सम्मेलनों के आयोजन की शुरुआत हो गई है।
भाजपा में शामिल होने के समय कैलाश गहलोत ने कहा कि उन्होंने रातों-रात आप छोड़ने का फैसला नहीं लिया है। आप को करीब से देखने वालों का कहना है कि गहलोत का यह बयान काफी हद तक सही है क्योंकि हाल के महीनों में पार्टी में उनकी स्थिति पहले जैसी नहीं रह गई थी। वे लंबे समय तक केजरीवाल के विश्वासपात्र बने रहे मगर हाल के महीनों में वे पार्टी में खुद को सहज महसूस नहीं कर रहे थे। केजरीवाल का भी उन पर पहले जैसा भरोसा नहीं रह गया था।
पहले मंत्रालय छीने और फिर सीएम बनने का मौका भी नहीं
दिल्ली के शराब घोटाले में गिरफ्तारी के समय अरविंद केजरीवाल का गहलोत पर काफी भरोसा था। मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के इस्तीफे के बाद केजरीवाल ने गहलोत पर भरोसा जताते हुए उन्हें वित्त और कई अन्य अहम मंत्रालय सौंप दिए थे। वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने दिल्ली सरकार का बजट भी पेश किया था। उन्हें दिल्ली सरकार का सबसे ताकतवर मंत्री माना जाने लगा था मगर जून में स्थितियां पूरी तरह बदल गईं। केजरीवाल ने गहलोत से वित्त और राजस्व समेत कई प्रमुख मंत्रालय वापस लेकर आतिशी को सौंप दिए।
केजरीवाल के इस कदम से गहलोत भीतर ही भीतर काफी नाराज हुए। हालांकि उन्होंने इसकी भनक नहीं लगने दी। दोनों के रिश्तों में यहां से भारी खटास पैदा हो गई। इसके बाद केजरीवाल ने ऐसा कदम उठाया, जो गहलोत के लिए किसी झटके से कम नहीं था। केजरीवाल के इस्तीफा देने के बाद गहलोत को भी मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था मगर केजरीवाल ने आतिशी को मुख्यमंत्री बनाकर रही सही कसर भी पूरी कर दी।
एलजी के साथ ट्यूनिंग आप को नहीं आई रास
दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के साथ गहलोत का अच्छा रिश्ता भी आप नेताओं को खटकता था। 15 अगस्त के बाद केजरीवाल का भरोसा गहलोत पर और भी कम हो गया था। दरअसल केजरीवाल ने जेल से एलजी को लेटर लिखकर अनुरोध किया था कि 15 अगस्त को आतिशी को तिरंगा फहराने का मौका दिया जाए। एलजी ने केजरीवाल की यह मांग खारिज कर दी थी और गहलोत को तिरंगा फहराने के लिए कहा था।
दिल्ली के उपराज्यपाल के साथ आप नेताओं का हमेशा टकराव दिखता रहा है मगर गहलोत के साथ उनकी अच्छी ट्यूनिंग रही। यह बात भी आप के बड़े नेताओं को हमेशा खटकती रही। जानकारों का कहना है कि गहलोत के प्रति आप नेताओं का भरोसा इस कारण भी घट गया था जिसकी परिणति गहलोत के इस्तीफे के रूप में सामने आई।