महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान के दौरान भाजपा के शीर्ष नेता, पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने अपनी पार्टी के नज़रिए को साफ़ कर दिया। द टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक साक्षात्कार में और कई भाषणों में उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के बुरे प्रदर्शन का ठीकरा भारत जोड़ो यात्रा पर फोड़ा। उनके मुताबिक़ भाजपा, यात्रा द्वारा स्थापित किए गए नैरेटिव का कारगर प्रत्युत्तर देने में विफल रही। इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा राज्य में 2019 की 23 के मुक़ाबले 2024 में मात्र 9 लोकसभा सीटों पर विजय हासिल कर सकी। इसी पृष्ठभूमि में वैकल्पिक नैरेटिव की स्थापना हेतु उन्होंने आरएसएस से जुड़े लगभग 30 संगठनों से संपर्क किया। उन्होंने इस खुले राज का खुलासा भी किया कि जब हालात मुश्किल हो जाते हैं तब वे अपनी पितृ संस्था आरएसएस से विचार-विमर्श करते हैं ताकि भाजपा की चुनावी संभावनों को बेहतर बनाया जा सके।
यदि हम पहली यात्रा की बात करें तो उसे ‘भारत जोड़ो यात्रा‘ नाम दिया गया था और वह 7 सितंबर 2022 को दक्षिण भारत से, तमिलनाडु के कन्याकुमारी से प्रारंभ हुई थी। इसका समापन जनवरी 2023 में उत्तर भारत में यानी जम्मू कश्मीर के श्रीनगर में हुआ था। इस यात्रा ने 12 राज्यों में 4080 किलोमीटर की दूरी तय की थी। दूसरी यात्रा को ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा‘ नाम दिया गया था और यह पूर्व से पश्चिम की ओर हुई थी। यह यात्रा मणिपुर के थोबल से 14 जनवरी 2024 को प्रारंभ हुई थी और 15 राज्यों में 6713 किलोमीटर चलकर 16 मार्च को मुंबई में समाप्त हुई थी।
फडणवीस के मुताबिक़ अब राहुल गांधी अर्बन नक्सलों और अति वामपंथी तत्वों से घिरे हुए हैं और वे कांग्रेसी कम और अति वामपंथी विचारक ज़्यादा बन गए हैं! दक्षिणपंथी अपने गुरु एम. एस. गोलवलकर के नज़रिए के मुताबिक़ (बंच ऑफ़ थॉट्स, पृष्ठ 133) मुसलमानों, ईसाइयों और कम्युनिस्टों को हिन्दू राष्ट्र का आंतरिक शत्रु मानते हैं, और इसलिए फडणवीस और उनके जैसे लोग हिंदू राष्ट्र के एजेंडे के खिलाफ जो कुछ भी होगा उसे या तो मुसलमानों या ईसाइयों का तुष्टिकरण बताएंगे या अर्बन नक्सलियों या अति वामपंथियों की करतूत। अर्बन नक्सल शब्द का प्रयोग सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए किया जाता है। अति वामपंथी शब्द का इस्तेमाल समाज के सभी वंचित वर्गों के लिए काम करने वाले लोगों के लिए किया जाता है।
भारत जोड़ो यात्रा (बीजेवाय) की परिकल्पना और उसे निकाले जाने का उद्देश्य क्या था स्पष्टतः उस समय तक 8-9 साल पूरे कर चुकी मोदी सरकार के सत्ता में रहने के दौरान भारतीय संविधान में निहित मूल्यों के संरक्षण के पक्ष में उठने वाली आवाज़ों को दबाया गया था। यह सरकार की नीतियों के कारण समाज में व्याप्त बेचैनी की परिणति थी, वे नीतियां जिनके अंतर्गत मुसलमानों के नागरिक अधिकारों पर प्रहार किया जा रहा था और सामान्य नागरिकों की स्थिति खराब होती जा रही थी। इस यात्रा के ज़रिए भारत को उसी तरह एक करने का लक्ष्य था जैसा महात्मा गांधी उपनिवेश-विरोधी आंदोलन के ज़रिए किया था।
बीजेवाय का एजेंडा क्या था जैसा नाम से ही स्पष्ट है, इसका लक्ष्य जाति, रंग, पंथ एवं लिंग की सीमाओं के परे भारतवासियों में एकता की भावना पैदा करना था। साथ ही जातिगत जनगणना सहित समाज के सबसे वंचित वर्गों के अधिकारों की मांगों को उठाना भी था। इस यात्रा का जादुई असर हुआ। समाज के प्रायः सभी वर्गों के लोग या तो इसमें शामिल हुए या उन्होंने इसमें दिलचस्पी ली। उन्होंने यह महसूस किया कि कई वर्षों की बांटने वाली राजनीति और धनी व समृद्ध लोगों की पक्षधर नीतियों से देश की एकता को धक्का पहुंच रहा है और सामान्य लोगों के कष्ट बढ़ रहे हैं। उन्हें ऐसा लगा कि इस यात्रा से हालात कुछ बेहतर होंगे।
यह यात्रा उद्देश्य एवं प्रभाव की दृष्टि से फडणवीस की ही पार्टी के लालकृष्ण आडवानी की यात्रा के ठीक विपरीत थी। आडवानी की यात्रा एक भावनात्मक मुद्दे पर थी, जो इस धारणा पर आधारित थी कि एक हिंदू मंदिर को एक मुस्लिम राजा ने सदियों पहले नष्ट कर दिया था।
आडवानी की यात्रा के पूरे मार्ग पर हिंसा हुई और खून बहा। और बाद में जब इसके नतीजे में बाबरी मस्जिद ढहाई गई तब और हिंसा हुई और समाज में मुस्लिमों के प्रति नफरत बढ़ी। उस यात्रा की वजह से, जिसका फडणवीस ने उल्लासपूर्वक स्वागत किया था, इस साम्प्रदायिक पार्टी की शक्ति में इजाफा हुआ।
यह यात्रा (बीजेवाय) इसके ठीक विपरीत थी। इसमें कोई भावनात्मक मुद्दा नहीं था। इसमें भारतीय संविधान को केन्द्र में रखा गया और भारतीयों को भारतीयता की उनकी पहचान के आधार पर एकताबद्ध किया गया। फडणवीस को संविधान की पुस्तक के लाल रंग के कवर की अधिक चिंता है क्योंकि उसमें लिखित शब्दों का उनके लिए कोई महत्व नहीं है। और वे यह भी भूल गए कि संविधान का यही लाल कवर वाला संस्करण उनके सर्वोच्च नेता नरेन्द्र मोदी ने राम नाथ कोविंद को भेंट किया था।
बीजेवाय के दौरान यह आशंका व्यक्त की गई थी कि यात्रा के प्रति नजर आ रहा समर्थन किस हद तक चुनावी नतीजों पर असर डालेगा। पूरी तरह तो नहीं, मगर आंशिक रूप से यात्रा ने साम्प्रदायिक पार्टियों के चुनावी प्रभुत्व को कमजोर किया। फडणवीस द्वारा स्वयं यह स्वीकार करने से कि बीजेवाय का महाराष्ट्र के चुनावों पर असर पड़ रहा है, इस बात के सत्य होने में शंका की कोई गुंजाइश नहीं बचती।
इसके पहले तक हिंदू दक्षिणपंथियों का राष्ट्रवाद का नज़रिया ही चर्चाओं के केन्द्र में रहता था। बीजेवाय ने इस बांटने वाले साम्प्रदायिक नज़रिये को एक हद तक कमजोर किया है, लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। इस विभाजक साम्प्रदायिक नज़रिए के चलते घृणा, भय और अल्पसंख्यकों के हाशिए पर चले जाने के जो हालात बन गए थे, उसे एक हद तक तो चुनौती मिली है परंतु इस दिशा में अभी और बहुत कुछ किया जाना ज़रूरी है। महात्मा गांधी ने सभी धर्मों के लोगों को एकता का संदेश देने का जो कार्य बहुत सशक्त तरीके से प्रारंभ किया था, बीजेवाय भी वही करने का प्रयास था और इस काम को और आगे ले जाने की जरूरत है।
यात्रा का एक अन्य महत्वपूर्ण नतीजा था सामाजिक आंदोलनों जैसे भारत जोड़ो अभियान और इडुलू कर्नाटा जैसे के लिए आधार तैयार करना। इनमें भारतीय संविधान के मूल्यों को मज़बूत करने की क्षमता है। ये आंदोलन, जो समाज के विभिन्न वंचित और असमानता से पीड़ित वर्गों को उनके अधिकार दिलवाने के लिए जुटे हुए हैं, एक-दूसरे से जुड़ रहे हैं और भारतीय संविधान के मूल्यों के संरक्षण हेतु एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं। विविध प्रकार के ये समूह सभी के समान अधिकारों के लिए समर्पित और दृढ़ संकल्पित हैं। सभी के समान अधिकारों का यह विचार दक्षिणपंथियों को अत्यंत नागवार लगता है। उनका ‘अधिकारों और कर्तव्यों‘ का एजेंडा अलग-अलग वर्गों के लिए अलग-अलग है। उनकी दृष्टि में दौलतमन्दों के सिर्फ अधिकार हैं और वंचित वर्गों के सिर्फ कर्तव्य।
यह बहुत कुछ सामंती साम्राज्यों जैसा ही है जहां राजाओं, जमींदारों और पुरोहित वर्गों को सारे अधिकार हासिल रहते हैं और सारे कर्तव्य महिलाओं सहित समाज के निचले वर्गों के होते थे। यही स्थिति धन-संपदा के वितरण के संबंध में भी थी।
फडणवीस के ज़रिए अब हमें पक्के तौर पर यह पता लग गया है कि बीजेवाय के कारण बीजेपी के चुनावी प्रदर्शन में गिरावट आई। और फडणवीस के माध्यम से ही भाजपा, जो खुलकर राजनीति करती है और उसकी जननी आरएसएस (जो चुनावी राजनीति से दूर रहती है) के गहरे रिश्तों की हमारी समझ बेहतर हुई है। यह बात सबको पता थी लेकिन स्वयं भाजपा नेता के अपने मुंह से ये बातें सुनने के बाद अब शंका की कोई गुंजाइश नहीं बचती!
(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया। लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)