Gokarna Mein Kaha Ghume (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Gokarna Mein Kaha Ghume: सर्दियों का मौसम शुरू होते ही अगर आप एक शानदार विंटर डेस्टिनेशन (Best Tourist Place For Winter) ट्रिप की प्लानिंग करना शुरू कर चुके हैं, तो आपके लिए गुनगुनी धूप से सजे सीबीच और आस्था का पुंज कहे जाने वाले पौराणिक मंदिरों का गढ़ गोकर्ण (Gokarna) परफेक्ट प्लेस साबित होने वाला है। कर्नाटक के इस शहर गोकर्ण में आकर आप एक यादगार विंटर हॉलिडे (Holiday) स्पेंड कर सकते हैं। यह शहर शानदार प्राकृतिक अनुभव प्रदान करने के साथ, प्रकृति से भरे सुंदर परिदृश्य और सुनहरी धूप और उसकी रेत से पटे समुद्र तट के अलावा स्थानीय पकवानों के शानदार लुत्फ के लिए भी जाना जाता है।
गोकर्ण शहर में परिवार या दोस्तों के साथ घूमने आना निश्चित ही आपको बार बार यहां आने के लिए बाध्य करेगा। गोकर्ण के प्राचीन मंदिरों (Gokarna Temple) का अपना ही एक अलग धार्मिक महत्व है। वहीं, यहां के बीच अपनी रोमांचक गतिविधियों के लिए हमेशा ही विदेशी पर्यटकों का आकर्षण का केंद्र रहे हैं। आइए सबसे पहले जानते हैं गोकर्ण नाम के पीछे छिपे रहस्य के बारे में…
इस तरह पड़ा गोकर्ण नाम (Gokarna Name History)
केरल स्थित इस खूबसूरत शहर का नाम गोकर्ण (Gokarna) कैसे पड़ा इसके पीछे कई किदवंतियां सुनने को मिलती हैं। फिलहाल श्रीमद्भागवत कथा में इस स्थान के नाम के पीछे एक रोचक प्रसंग का वर्णन किया गया है। जिसके अनुसार, “प्राचीन समय की बात है। दक्षिण भारत की तुंगभद्रा नदी के तट पर एक नगर में आत्मदेव नामक एक व्यक्ति रहता था, जो सभी वेदों में पारंगत था। आत्मदेव के प्रारब्ध में संतान सुख नहीं था, आत्मदेव ने सुना था कि धर्म मार्ग पर चलकर व्यक्ति अपने प्रारब्ध को भी ईश्वर कृपा से परिवर्तित कर सकता है। इसलिए आत्मदेव ने संतान की प्राप्ति के लिए तरह-तरह के पुण्य कार्य किए, दीन-दुखियों की सेवा की और अपनी सामर्थ्य अनुसार, खूब दान-पुण्य किया पर कोई फल न हुआ।
एक दिन चिंता से व्याकुल आत्मदेव वन में चले गए, जब आत्मदेव निराश होकर वन में भटक रहे थे, तो देवयोग से उन्हें एक तपस्वी संन्यासी महात्मा मिले। आत्मदेव ने श्रद्धापूर्वक उनकी सेवा कर उन्हें अपना दुःख बताया कि वह अपने पूर्व जन्म के पापों के संचित दुखों से पीड़ित है, इसलिए प्राण त्यागने वन में आया है क्योंकि संतान के बिना उसे उसका जीवन सूना लगता है। आत्मदेव ने अपने दुखों का वर्णन विस्तार से महात्मा से किया। महात्माजी ने अपनी योग विद्या के बल से उसकी ललाट की रेखा देखकर पूर्व जन्म के कर्म रहस्य को जान लिया और कहा-
’हे ब्राह्मण, पुत्र का मोह छोड़ दे, कर्म की गति बड़ी बलवती है, उसे कोई टाल नहीं सकता। विवेक का आश्रय लेकर संसार विषयों को त्याग दे। मैंने तुम्हारा प्रारब्ध देख लिया है, उसमें सात जन्मों तक पुत्र होने का योग नहीं है। संतान से तुम्हें सुख नहीं होगा, इसलिए पुत्र का आग्रह छोड़ दो।’ लेकिन आत्मदेव न माने और महात्मा से कहा कि, ’मुझे पुत्र प्राप्ति का वर दें, अन्यथा मैं आपके चरणों में ही प्राण त्याग दूंगा।’ जब महात्माजी ने देखा कि किसी भी प्रकार से वह पुत्र का मोह नहीं त्याग पा रहा है, तो उन्होंने अपने सारे पुण्यों को एकत्र कर एक फल के रूप में उसे दिया और कहा कि ’इसे अपनी पत्नी को खिला देना, इससे एक पुत्र अवश्य होगा।’
आत्मदेव वह फल लाकर अपनी पत्नी को दे देता है। लेकिन उसकी पत्नी वह मन ही मन सोचती है कि यदि मैंने यह फल खा लिया और गर्भ रह गया तो मुझसे खाना खाया नहीं जाएगा और मैं मर भी सकती हूं। यह सोचकर वह तय करती है कि मैं ये फल नहीं खाऊंगी इसीलिए वह आत्मदेव से कई तरह के तर्क और कुतर्क करती है। आत्मदेव के कहने पर वह फल तो रख लेती है। लेकिन खाती नहीं है।
एक दिन उसकी बहन उसके घर आती है जिसे वह सारा किस्सा सुनाती है। बहन उससे कहती है कि- मेरे पेट में बच्चा है, प्रसव होने पर वह बालक मैं तुम्हे दे दूंगी, तब तक तुम एक गर्भवती स्त्री के समान घर में रहो। मैं कह दूंगी, मेरा बच्चा मर गया और तू ये फल गाय को खिला दे। आत्मदेव की पत्नी अपनी बहन की बात मानकर ऐसा ही करती है। उस फल को वह गाय को खिला देती है।
आत्मदेव की पत्नी ने अपनी बहन के कहने पर वह फल स्वयं न खाकर गाय को खिला दिया। कुछ समय में गाय को एक मनुष्याकार बच्चा हुआ, जिसके कान गौ के समान होने के कारण उसका नाम गोकर्ण रखा गया। वहीं, बहन ने अपना बच्चा आत्मदेव की पत्नी को दे दिया जिसका नाम धुंधकारी पड़ा। अब उसके दो बालक हो जाते हैं। एक धुंधकारी और दूसरा गोकर्ण। गोकर्ण आगे चलकर बड़े ज्ञानी पंडित हुए तथा धुंधकारी महाक्रूर प्रवृत्ति का दुराचारी निकला। आत्मदेव ने धुंधकारी को सुधारने का काफी प्रयत्न किया। लेकिन प्रारब्ध को कुछ और ही मंजूर था। धुंधकारी ने बड़े होकर सभी को घोर कष्ट दिया और आत्मदेव की सारी संपति भी नष्ट कर दी, जिस पर आत्मदेव एक बार फिर फूट-फूट कर रोने लगे और बोले, ’महात्मा सही बोले थे, कि मेरे प्रारब्ध में पुत्र का सुख है ही नहीं। यहीं वजह है कि गोकर्ण गंगावली और अग्निशिनी के बीच पवित्र क्षेत्र में स्थित इस जगह को गोकर्ण नाम दिया गया।
अब यह शहर धार्मिक विश्वास के कारण महत्वपूर्ण अनुष्ठान करने के लिए जाना जाता है। अपने प्राचीन समुद्र तटों और लुभावने परिदृश्य के साथ, गोकर्ण कर्नाटक में एक हिंदू तीर्थ स्थल के तौर पर प्रसिद्ध है, वहीं खूबसूरत प्राकृतिक संपदाओं और समुद्र तटों के लिए भी ये एक खास जगह मानी जाती है। हालांकि, इसकी प्रतिष्ठा यहां के मंदिरों की वजह से ऊपर उठी है। लोककथाओं से पता चलता है कि गोकर्ण भगवान शिव और विष्णु का शहर है। रावण को आत्मालिंगम लेने और लंका को शक्तिशाली बनाने से रोकने के लिए, उसे गोकर्ण में ही चतुराई से धोखा दिया गया था। घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक (Gokarna Ghumne Ka Sabse Achcha Samay) है क्योंकि उस दौरान मौसम बहुत सुहावना होता है।
कुडले बीच गोकर्ण के सबसे लोकप्रिय बीच में से एक है, जो तीर्थ नगरी की हलचल से दूर है। रास्ते में, पहाड़ी की चोटी से गुज़रते समय आपको कुडले बीच पर सूर्यास्त का मनमोहक नज़ारा देखने को मिलता है।
गोकर्ण में घूमने की जगहें (Gokarna Mein Ghumne Ki Jagah)
यहां के ऐसे कई समुद्र तट हैं, जहां घूमकर आपको आनंद का अनुभव होगा। यहाँ आपको सभी अव्यवस्थाओं से दूर छुट्टी मनाने की योजना बनाते समय अवश्य जाना चाहिए। यह समुद्र तट स्वच्छ, अछूते और अनदेखे हैं, जो उन्हें एक आरामदायक छुट्टी मनाने के लिए एकदम सही विकल्प साबित हो सकते हैं।
चलिए आपको गोकर्ण में मौजूद मंदिरों के बारे में बताते हैं –
महागणपति मंदिर (Mahaganapathi Temple)
गोकर्ण घूमने आए सैलानियों के लिए यहां आस्था का केंद्र माना जाने वाला प्रथम पूज्य श्री भगवान गणेश को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। जहां वर्ष पर भक्तों का ताता लगा रहता है। ये मंदिर महाबलेश्वर मंदिर के पास स्थित है और गोकर्ण जाने वाले तीर्थयात्रियों के बीच इसकी काफी ज्यादा महत्ता है। भगवान शिव के आशीर्वाद की कथा के अनुसार, तीर्थयात्रियों को महाबलेश्वर मंदिर जाने से पहले भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त कर ही आगे बढ़ना चाहिए। इस मंदिर में तड़के सुबह 6 बजे से 13.30 दोपहर तक दर्शनार्थियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति रहती है, वही दोपहर 3 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहने वाला ये मंदिर घंटा और घड़ियाल की आवाज के बीच संध्या आरती के समय दिव्य अनुभूति प्रदान करता है।
महाबलेश्वर मंदिर (Mahabaleshwar Temple)
महाबलेश्वर मंदिर में 1500 साल पुरानी भगवान शिव की मूर्ति के दर्शन करने के लिए भक्तों का ताता लगा रहता है। सावन के अवसर पर यहां का आभामंडल देखते ही बनता है। इस प्राचीन मंदिर का उल्लेख महाभारत और रामायण के हिंदू पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। इस मंदिर को काशी स्थित मंदिर जितनी ही ऐतिहासिक महत्व से जुड़ी प्रसिद्धि हासिल है। इसलिए इसे दक्षिण काशी की उपाधि भी मिली हुई है। महाबलेश्वर मंदिर में 6 फीट लंबा शिव लिंग है, जिसे आत्मालिंग के रूप में जाना जाता है।
इस मंदिर में सफेद ग्रेनाइट का उपयोग किया गया है, जिसमें द्रविड़ वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण देखने को मिलता है। इस मंदिर का रिवाज है कि मंदिर में आने से पहले आपको कारवार बीच में डुबकी लगानी चाहिए, फिर मंदिर के सामने स्थित महा गणपति मंदिर के दर्शन करके ही महाबलेश्वर मंदिर के दर्शन करने होंगें। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए खास तरह के प्रतिबंध भी लगाए गए हैं जिनके अंतर्गत छोटे बच्चों को छोड़कर स्त्री और पुरुष जींस, ट्रॉउज़र या शॉट्स, स्कर्ट्स आदि आधुनिक पोषक में भीतर प्रांगण में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। महाबलेश्वर मंदिर सुबह 6 बजे से 12 बजे के बीच और वही शाम को 5 बजे से रात 8 बजे के बीच श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है।
महालासा मंदिर (Mahalasa Temple)
‘महालसा’ भगवान विष्णु के प्रसिद्ध अवतार मोहिनी का दूसरा नाम है। श्री महालसा नारायणी की पूजा के लिए समर्पित मंदिर महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और कई अन्य स्थानों पर मौजूद हैं। सर्वोच्च माता महालसा का सबसे लोकप्रिय मंदिर गोवा के मर्दोल में है, जो 450 साल से भी ज़्यादा पुराना है।
भद्रकाली मंदिर (Bhadrakali Mandir)
यह मंदिर गोकर्ण में श्री शंकर नारायण मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है, जहां सैकड़ों की संख्या में तीर्थयात्री रोजाना दर्शन करने के लिए आते हैं। इस मंदिर को लेकर पौराणिक मान्यता है कि देवताओं, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की पवित्र त्रिमूर्ति ने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने वाले सर्वशक्तिमान राक्षस वेत्रासुर को हराने के लिए दुर्ग नामक एक महिला योद्धा की रचना की। गोकर्ण शहर की रक्षा के लिए उस देवी को विभिन्न देवताओं द्वारा उपहार में दिए गए आशीर्वाद और शक्तियों के साथ भद्रकाली के रूप में फिर से स्थापित किया गया था। इस मंदिर में सुबह 5 बजे से 12 बजे के बीच और शाम 4 बजे रात 8 बजे के बीच दर्शनार्थी दर्शन के लिए एकत्र होते हैं।
मल्लिकार्जुन मंदिर (Mallikarjuna Temple)
गोकर्ण में स्थित पौराणिक श्री वेंकटरमण मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर की खासियत है कि यहां सिर्फ इस स्थान के मूल निवासी ही प्रवेश पा सकते हैं। बाहरी श्रद्धालु या सैलानी इस मंदिर की देहरी को पार नहीं कर सकते। मंदिर के बाहर से होने वाले धार्मिक समारोहों का हिस्सा कोई भी बन सकता हैं।
यह गोकर्ण के सबसे भव्य मंदिरों में से एक है जिसकी इतनी सुंदर और मजबूत संरचना है। यहां के खूबसूरत नक्काशी से अलंकृत अनगिनत स्तंभ तीर्थयात्रियों को इस मंदिर के पवित्र गर्भगृह तक जाने का रास्ता बताते हैं, जहां भगवान विष्णु की भव्य पूजा और आरती लोगों को मन की शांति प्रदान करती है। अपनी मान्यताओं के चलते यह मंदिर गोकर्ण के लोकप्रिय स्थानों में से एक माना जाता है। ये मंदिर सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे के बीच श्रद्धालुओं किए खुला रहता है।
मुरुदेश्वर मंदिर (Murdeshwar Temple)
केरल की कंडुका पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर अरब सागर से तीन जगह से घिरा है। प्राकृतिक छटाओं से ओतप्रोत मुरुदेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूरे विश्व में व्याप्त दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा देखने को मिलती है। यहां आकर आपको आध्यात्मिक वातावरण और गहरी शान्ति की भी अनुभूति होती है।
श्री उमा महेश्वर मंदिर (Shri Uma Maheshwar Mandir)
गोकर्ण के पास लोकप्रिय आकर्षणों में से एक श्री उमा महेश्वर मंदिर शतश्रृंग पर्वत की चोटी पर स्थित है और दोनों ओर से गोकर्ण में कुडले समुद्र तट और ओम समुद्र तटों द्वारा संरक्षित है। मंदिर हिंद महासागर का एक रोमांचक नज़ारा भी प्रस्तुत करता है जो गोकर्ण मंदिरों के मुख्य आकर्षण में से एक है। यह भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती को समर्पित है। मंदिर तक पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका पहाड़ की चोटी पर 15 मिनट की पैदल यात्रा या गोकर्ण शहर से ट्रैकिंग करना ठीक।रहता है।
ये हैं प्रसिद्ध सीबीच (Gokarna Beaches)
ओम बीच (Om Beach)
गोकर्ण में शिव की असीम महिमा का बखान करता ओम समुद्र तट सैलानियों के लिए एक आध्यात्मिक शांति का आदर्श स्थल साबित होता है। यहां न केवल स्वच्छ और शीतल वातावरण है बल्कि असीम शांति का भी एहसास होता है। इस समुद्र तट का आकार बिल्कुल ॐ जैसा नजर आता है। इसी कारण समुद्र तट का नाम ओम रखा गया है।
इस समुद्र तट का खास आकर्षण यहां का सूर्यास्त का नजारा है। जिसे देखने के लिए देश भर से लोग यात्रा करते हैं। सैलानियों के मनोरंजन के लिए समुद्र तट पर वाटर स्पोर्ट्स की भी सुविधा दी है। शहर से मात्र 7.1 किमी दूरी पर स्थित इस बीच पर फोर व्हीलर से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
पैराडाइज बीच (Paradise beach)
पैराडाइज बीच पर बिछी सफेद रेत इसके नाम को सार्थक करती हुई नजर आती है। इसे देखने के लिए सैलानियों के बीच खास उत्साह रहता है। वहीं इस समुद्र तट के ठंडे पानी में लोग तैराकी का भी लुत्फ उठाते हैं। साथ ही यहां धूप सेंकने और बीच पर मज़े करने का भी अलग ही आनंद है। मुख्य शहर से सिर्फ 7.6 किमी दूर स्थित यह समुद्र तट अद्भुत पानी के खेल और एक शांत वातावरण प्रदान करता है।
कुडले बीच (Kudle Beach)
यह बीच यहां आने वाले पर्यटकों को सुखद और शांतिपूर्ण वातावरण प्रदान करता है। इस तट पर आकर लोगों को एक अजीब सी सुखद शांति का एहसास होता है। आप समुद्र तट पर अकेले कुछ समय शांति की तलाश में हैं तो मेडिटेशन के लिए ये बेहतर स्थान है। यहां आप ओम बीच से पैदल यात्रा करके आ सकते हैं। समुद्र तट सिर्फ 3 किमी दूर स्थित है।
गोकर्ण बीच (Gokarna Beach)
गोकर्ण बीच मौज मस्ती और वाटर स्पोर्ट्स के रोमांच के साथ यहां खाने पीने के लिए भी बहुत कुछ मिलता है। यह तट हर यात्री को कैफे की एक विशाल श्रृंखला प्रदान करता है। साथ ही यहां गोकर्ण की हिप्पी संस्कृति भी देखने को मिलती है। फैमिली और अपने दोस्तों के साथ इस स्थान को देखना कतई नहीं भूलना चाहिए। गोकर्ण समुद्र शहर से 1.5 किमी दूर पर स्थित है।
याना गुफाएं (Yana Caves)
दुनिया भर के कई ट्रेकर्स और यात्रियों द्वारा जो एडवेंचर की तलाश में हैं उनके लिए याना गुफाएं बेहद पसंदीदा जगहों में से एक है। शहर से 53 कि.मी. दूर याना रॉक्स घूमने के लिए अच्छी जगह है। पहुँचने में लगभग डेढ़ घंटे का समय लगेगा। एस्ट्रॉइड की बनी ये चट्टानें देखने से ही आपको इस पूरी जगह के एडवेंचर का अंदाज़ा लग जाएगा। शिवरात्रि के दिनों में यहाँ एक उत्सव भी मनाया जाता है। सह्याद्री पहाड़ियाँ हर यात्री को मनोरम प्राकृतिक अनुभव प्रदान करती हैं। ये गुफाएं मुख्य शहर से 48 किमी दूर स्थित हैं।
हाफ मून बीच (Half Moon Beach)
हाफ मून बीच और ओम समुद्र तट के बीच की दूरी सिर्फ एक चट्टान भर की है। अरब सागर की ओर से इस तट पर आने वाली लहरों को देखने के लिए बहुत से लोग खास तौर से रात में इस समुद्र तट पर घूमने आते हैं। यहां आकर गुफाओं की सुंदरता का भी आनंद ले सकते हैं जो इस समुद्र तट से साफ दिखाई देती हैं। यह तट मुख्य शहर से लगभग 3.6 किमी दूर है।
मिरजान फोर्ट (Mirjan Fort)
पुराने समय में यह स्थान डच और पुर्तगालियों के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक स्थान के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा होगा। यह स्थान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित एक स्मारक है।किले का निर्माण स्थानीय रूप से उपलब्ध लैटेराइट पत्थर से भी किया गया है और इसमें अद्भुत वास्तुकला भी देखने को मिलती है। यह किला एक बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है और इसे समय और ज्वार दोनों के दबावों को झेलने की शक्ति के साथ निर्मित किया गया है। कई खूबियों को समेटे इस किले को सभी के लिए देखना बेहद जरूरी है। किले में कलाकृतियों का एक विशाल संग्रह भी है जो अतीत की कहानियों को बयां करता है। यह किला बस गोकर्ण से 21 किमी दूर पर स्थित है।
सिरसी झरना (Shirsi Waterfall)
गोकर्ण ने सीबीच के बीच सिरसी स्थान भी अपने प्राकृतिक झरनों और मनोरम वातावरण के लिए चर्चित है। यहां सैलानी अक्सर वीकेंड की छुट्टी बिताने के लिए आते हैं। सिरसी गोकर्ण से 80 किमी दूर है।
कोटि तीर्थ (KotiTirth)
कर्नाटक के गोकर्ण में स्थित कोटि तीर्थ, प्राचीन मंदिरों और तीर्थस्थलों से घिरा एक पवित्र मानव निर्मित तालाब है। गोकर्ण आने वाले हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए यह महत्वपूर्ण धार्मिक महत्व रखता है। ‘कोटि तीर्थ’ नाम का अर्थ है ‘एक हज़ार झरने’, जो पवित्र जल निकाय के रूप में इसके आध्यात्मिक महत्व पर जोर देता है। भक्तों का मानना है कि इसके पानी में डुबकी लगाने से पापों से मुक्ति मिलती है और आध्यात्मिक पुण्य मिलता है। तालाब आयताकार आकार का है और इसमें पानी तक जाने के लिए घाट (सीढ़ियाँ) हैं, जिन्हें अक्सर अनुष्ठानों और त्योहारों के दौरान तैरते हुए फूलों और जलते हुए तेल के दीयों से सजाया जाता है।
कोटि तीर्थ के आसपास का शांत वातावरण ध्यान और चिंतन के लिए आदर्श है। यह क्षेत्र विभिन्न धार्मिक समारोहों का केंद्र भी है, जिसमें मृत पूर्वजों के लिए अनुष्ठान शामिल हैं। गोकर्ण के अन्य महत्वपूर्ण मंदिरों, जैसे महाबलेश्वर मंदिर से इसकी निकटता इसे शहर के आध्यात्मिक परिदृश्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाती है। यहां देश भर से लोग आते हैं और अपने पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं, अपने प्रभु का आशीर्वाद लेने की उम्मीद करते हैं। कुछ लोग यहां मूर्तियों का विसर्जन भी करते हैं। यह गोकर्ण से सिर्फ 2.3 किमी दूर स्थित है।
यहां के मशहूर रेस्तरां (Famous Restaurants In Gokarna)
नमस्ते कैफे
गौकर्ण का नमस्ते कैफे अपनी खूबियों के चलते काफी चर्चित है। यहां दुनिया भर के यात्री बढ़िया भोजन और आरामदायक शांत बैठने की जगह जैसी खासियत की वजह से आना पसंद करते हैं। यह ओम समुद्र तट के ठीक किनारे पर स्थित है इस कैफे में बहुत ही रियायती कीमत पर खाना सुलभ होता है।
प्रेमा रेस्तराँ
अगर आप अपनी यात्रा के दौरान बाहर का खाना खाते खाते ऊब चुके हैं तो प्रेमा रेस्तराँ आपको घर जैसे देसी खाने का स्वाद देने के लिए उपलब्ध मिलेगा। गोकर्ण का प्रेमा रेस्तराँ का नाम विदेशी ज़ायके के लिए भी जाना जाता है। यहां कस्टमर की डिमांड के अनुसार मनमुताबिक स्वाद मिलेगा।
लिटिल पैराडाइज इन
लिटिल पैराडाइज भी शुद्ध देसी नॉनवेज खाने के लिए प्रचलित है। खास तौर से यदि आप सी फूड के शौकीन हैं तो आपको यहां कई लजीज वैरायटी मिलेंगी।
गंगा कैफ़े
गंगा कैफ़े शान्त जगह है। यहाँ का नाश्ता भी बेहतर है, सुबह के लिए परफ़ेक्ट। इस जगह की ख़ासियत है कि यहां से बेहतरीन प्राकृतिक नजारे देखने को मिलते हैं। यहां बियर और पकौड़े के लुत्फ के साथ लोग घंटों समय बिताना पसंद करते हैं।
चेक क्रिस्टोफ
अगर आप संगीत के शौकीन हैं तो रात के वक़्त मधुर धुनों का आनंद लेने के लिए आप चेक क्रिस्टोफ आ सकते हैं। गोकर्ण के रात्रि के खाने का आनंद उठाने के बाद सैलानियों के लिए यहां आना उनके मनोरंजन का एक अहम हिस्सा होता है। यहां पर धुवां और शराब से भरपूर हिप्पी कल्चर का प्रभाव देखने को मिलता है। यहाँ लोग अलग अलग म्यूज़िक इंस्ट्रूमेंट्स बजाते हुए दिखाई देते हैं।
यहां ठहरने के लिए जगहें
ट्रिपर गोकर्ण बैकपैकर हॉस्टल में आपको ₹1000 में हॉस्टल मिल सकता है। साथ एवरग्रीन फॉर्म हाउस का प्लान भी बना सकते हैं। जिसका किराया भी लगभग एक हजार के आस पास है। इसके अतिरिक्त यहां स्थित होटल पांडुरंग इंटरनेशनल, कुमटा में एक अच्छे होटल की हर सुविधा मेहमानों को बेहतरीन अनुभव देने के लिए बनाई गई है। यह गोकर्ण के पास के होटलों के लिए एक बढ़िया विकल्प है। चूँकि यह होटल हाईवे से दूर है, इसलिए यह सड़क यात्रा पर वापस जाने और अधिक स्थानों पर जाने के लिए आसान पहुँच प्रदान करता है।
कैसे पहुंचे (How To Reach Gokarna)
हवाई मार्ग से: गोवा में डाबोलिम हवाई अड्डा गोकर्ण का निकटतम हवाई अड्डा है। हवाई अड्डा शहर से 140 किमी दूर स्थित है, इसलिए आपको उड़ान के बाद टैक्सी या बस लेना पड़ सकता है।
सड़क मार्ग सेः बेंगलुरु, मैंगलोर, हुबली और कर्नाटक के अन्य शहरों से यात्री बस के माध्यम से आसानी से पहुंच सकते हैं। गोकर्ण भी NH-17 से सिर्फ 10 किमी दूर है जो मुंबई को कोच्चि से जोड़ता है।
ट्रेन से: निकटतम रेलवे स्टेशन अंकोला में है, जो गोकर्ण से 20 किमी दूर है। देश भर से ट्रेनें यहाँ के लिए चलती हैं जिससे शहर में पहुंच काफी आसान हो जाती है।