पंजाब-हरियाणा के खनोरी बॉर्डर पर 15 दिनों से आमरण अनशन पर बैठे कैंसर से ग्रसित जगजीत सिंह डल्लेवाल के स्वास्थ्य की हालत चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई है। अन्य नेता किसानों की मांगों को लेकर शम्भू बॉर्डर, रतनपुरा बॉर्डर पर बैठे हुए हैं। किसान दिल्ली कूच करना चाहते हैं लेकिन हरियाणा प्रदेश की सरकार उनको आगे नहीं जाने देने का कठोर रवैया अपनाये हुए है। गतिरोध निरंतर बना हुआ है। उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने किसानों की रास्ता खोले जाने की अपील पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। हरियाणा सरकार की आपत्ति को स्वीकार करके किसान शांतिपूर्वक ढंग से पैदल दिल्ली जाने और केंद्र की सरकार से अपनी मांगों के समाधान के लिए प्रयास कर रहे हैं लेकिन कोई हल निकलता दिखाई नहीं दे रहा।
फ़सलों का पूरा उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण किसानों और उनके परिवारों का जीवन साल दर साल दूभर होते हुए वर्तमान में कर्ज के कुचक्र में फँस गया है। सरकार द्वारा घोषित मूल्य से किसान की लागत खर्च भी पूरा नहीं हो पाता जिससे किसान कर्ज में फँस रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एक कमेटी के हाल के अध्ययन में पाया गया है कि 2022 -23 में हरियाँ में किसानों पर 76630 करोड़ का कर्ज है जिसमें 32% निजी स्रोतों से लिया हुआ है। पंजाब के किसानों पर 73673 करोड़ रुपये कर्ज है जिसमें 21% निजी स्रोतों से लिया हुआ कर्ज है। प्राकृतिक आपदाओं की मार के साथ-साथ फ़सलों के उत्पादन के लिए बढ़ती लागत और कम दाम पर बेचने की मजबूरी से होने वाले नुक़सान की भरपाई का कोई ठोस समाधान किसानों के पास नहीं है। कृषि प्रधान देश में एक बड़ी आबादी खेती किसानी पर निर्भर है।
किसान कई दशकों से बार-बार सरकारों के द्वार पर नीतियों में सार्थक बदलाव की अपेक्षा लिए हुए जाते रहे हैं लेकिन समस्याओं के स्थाई समाधान नहीं निकल पाए। हाल ही में देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी किसानों की समस्याओं के निदान के लिए देश के कृषि मंत्री को आगाह किया और पीड़ा जताई है। पंजाब विधानसभा के सभापति कुलतार सिंह संधवा ने भी केंद्र सरकार को किसानों की मांगों का समाधान करने को कहा है। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने बार बार किसानों की मांगों के समर्थन में केंद्र सरकार को सदन में घेरा है। राजस्थान के नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल ने नियम 377 के तहत वर्तमान में चल रहे लोकसभा के शीत सत्र में किसानों का मुद्दा उठाया है। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने फिर से सरकार को किसानों की समस्या जल्द सुलझाने के लिए कहा है।
अखिल भारतीय किसान सभा हरियाणा राज्य की कमेटी ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के 23 फ़सलों पर एमएसपी देने के बयान को भ्रामक और तथ्यहीन बताया है। किसानों की मांग स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सी 2+ 50% के हिसाब से एमएसपी देने की है जबकि सरकार अभी तक इस फॉर्मूले के अनुसार दाम पर कुछ नहीं बोल रही। हाल में जो एमएसपी सरकार दे रही है वो किसानों की मांग के अनुरूप नहीं है। जो मूल्य सरकार ने निर्धारित किये हुए हैं उन पर अभी आई धान की फसल में हरियाणा, पंजाब के किसानों को 150 से 200 रुपये कम में बेचने पर मजबूर होना पड़ा है। फसल में नमी की मात्रा के आधी होने के नाम पर कटौती की गई। इसके चलते किसानों को हर साल घाटा सहने को विवश होना पड़ता है।
क्या हैं किसानों की मांगें
किसान आंदोलन 2020 में तीन कृषि क़ानून को ख़त्म करने के साथ-साथ कई और मांगें रखी गई थीं। इनमें मुख्य रूप से एमएसपी की कानूनी गारंटी, कर्ज मुक्ति, बिजली आपूर्ति नियमों में सुधार व दरों में कटौती, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना, किसानों पर किये गए केस वापसी की मांगें शामिल थीं। इनको सरकार द्वारा लिखित आश्वासन दिए जाने के बावजूद पूरा नहीं किया गया है। मौजूदा किसान आंदोलन का आधार यही है। संयुक्त किसान मोर्चा से अलग हो कर जगजीत सिंह डल्लेवाल की अगुवाई वाले एसकेएम गैर राजनीतिक और स्वर्ण सिंह पंधेर के नेतृत्व में किसान मज़दूर मोर्चा यह आंदलोन चल रहा है।
देश के सभी प्रदेशों के विभिन्न संगठनों के पूरी तरह एकजुट नहीं होने के कारण यह आंदोलन फिलहाल पंजाब-हरियाणा की सीमाओं पर ही सक्रिय है।
इस साल 13 फरवरी को आंदोलन के दुबारा शुरू होने के समय पंजाब व हरियाणा के किसान संगठनों ने फिर से दिल्ली जाने का आह्वान किया था, लेकिन हरियाणा सरकार ने किसानों को हरियाणा की सीमाओं पर ही रोक दिया था। केंद्र की सरकार ने लोकसभा चुनाव को देखते हुए तब किसानों से बातचीत का रास्ता खोला था और कई दौर की बातचीत के बाद किसानों को कोई हल निकालने के लिए आश्वस्त भी किया था। तब से किसान बार-बार दिल्ली में कुछ करने की योजना बना रहे हैं।
अब 2 बार दिल्ली जाने के प्रयास करने पर किसानों को हरियाणा सरकार द्वारा फिर से रोक दिया गया है। सरकार से सीधे टकराव की स्थिति की बजाय शांतिपूर्वक बातचीत की योजना पर किसान संगठन चल रहे हैं। लेकिन सरकार की ओर से बातचीत की बजाय अभी तक दमन को ही प्राथमिकता दी गयी है। देश के अन्य क्षेत्रों में किसान के अलग-अलग छोटे-छोटे प्रदर्शन स्थानीय मांगों को लेकर हो रहे हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के किसान अपनी जमीन के अधिग्रहण के उचित मुआवजे की मांग को लेकर दिल्ली की ओर बढ़ रहे थे जिन्हें नोएडा की सीमाओं पर ही रोक दिया गया। राजस्थान में भी किसानों में पूर्वी नहर परियोजना को लेकर असंतोष बना हुआ है जिसके लिए हाल ही में किसानों ने प्रदर्शन किया था।
14 दिसंबर को किसानों का जत्था फिर से दिल्ली की ओर बढ़ने के लिए तैयार है। सरकार के उपेक्षापूर्ण और दमनकारी रवैये के प्रति किसानों में असंतोष धीरे-धीरे बढ़ने लगा है। अन्य किसान संगठन भी अब इनके साथ आने को तैयार होने लगे हैं। पहले किसान आंदोलन में देश के सभी प्रदेशों के 42 बड़े संगठन एकजुट हो गए थे और दिल्ली के चारों ओर सीमाओं पर अपनी ट्रैक्टर ट्रॉलियां लिए 13 महीने बैठे रहे थे। खेती किसानी वर्तमान दौर में कड़ी परीक्षा से गुजर रही है। सरकार किसान सम्मान निधि देकर इत्मीनान में है। एमएसपी पर ख़रीद जारी रहेगी, का प्रचार सरकार निरंतर कर रही है लेकिन एमएसपी की कानूनी गारंटी देने से कतरा रही है। मोर्चे पर मौजूद किसान नेता स्वर्ण सिंह पंधेर ने जगजीत सिंह डल्लेवाल की बिगड़ती हालत के कारण जीवन को होनेवाली क्षति के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा दिया है। केंद्र सरकार का क्या रुख रहता है ये किसानों के आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला सकता है।