फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी का कहना है कि भारत सरकार के पास इनकम टैक्स को लेकर एक ही रास्ता है कि वो अरबपतियों से ज्यादा टैक्स वसूले और देश में शिक्षा, स्वास्थ्य पर खर्च करे । उन्होंने कहा कि भारत के उच्च मध्यम वर्ग (अपर मिडिल क्लास) और मध्यम भारतीय उद्यमियों (इंडियन मिडिल क्लास इंडस्ट्रलिस्ट) पर तभी टैक्स बढ़ाया जाना चाहिए, जब तक कि यह साबित या प्रदर्शित न हो जाए कि शीर्ष पर बैठे लोग यानी अरबपति अमीर उच्च कर (हायर टैक्स) दर का भुगतान करते हैं। पिकेटी भारत और दुनियाभर में असमानताओं को कम करने के लिए अरबपतियों की संपत्ति पर ज्यादा टैक्स लगाने का मुद्दा उठाने के लिए जाने जाते हैं। उनका कहना है कि 1957 में संपत्ति कर लगाने का भारत का फैसला उस समय “बहुत ज्यादा और बहुत तेजी से” की गई कोशिश थी। उसका सही मौका अब आया है।
पिकेटी शनिवार को दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में भाषण देने आये थे। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि “आय और धन पर टैक्स लगाने की एक साफसुथरा सिस्टम बनाना काफी मुश्किल है। अमीर देशों के लिए भी ये मुश्किल है। लेकिन आप इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी (आईटी) के जरिये इसे बेहतर कर सकते हैं। बेहतर टैक्स सिस्टम के लिए बहुत सारे नए तरीके हैं, और आप बहुत अधिक टैक्स राजस्व के रूप में प्राप्त कर सकते हैं। आपको सिर्फ सबसे ऊपर टारगेट करके वेल्थ के सिस्टम को ठीक करना है।”
यह पूछे जाने पर कि भारत तो एक विकासशील अर्थव्यवस्था है तो यहां संपत्ति पर टैक्स लगाने का कोई मतलब होगा पिकेटी ने फौरन चीन से यहां की तुलना की। उनका कहना है कि जब चीन इसी हालत में था, तब उसने 25 फीसदी टैक्स लगाया था। उन्होंने कहा कि “मैं कई बार यह सुनता हूं… हमें असमानता के बारे में चिंतित होने से पहले अमीर बनने का इंतजार करना चाहिए, और यह असमानता एक प्रकार का अमीर देश का विशेषाधिकार या अमीर देश की चिंता है। लेकिन यह वह नहीं है जो इतिहास आपको बताता है। यदि आप असमानता को जल्दी कम नहीं करते हैं, तो आप एक जाल में फंस गए हैं, जहां आबादी के एक बड़े हिस्से के पास बुनियादी वस्तुओं और अवसरों और संपत्तियों तक पहुंच नहीं होगी।” यहां पर उनका इशारा भारत की तरफ ही था। क्योंकि भारत में बुनियादी सुविधाओं (स्वास्थ्य और शिक्षा) पर सबसे कम खर्च किया जाता है। भारत के अरबपति अमीर ज्यादा तो छोड़िये पूरा इनकम टैक्स भी नहीं देते हैं। भारत में अमीरों का कर्ज भारत के बैंक माफ कर देते हैं। किसानों को पूरा कर्ज चुकाना पड़ता है और न देने पर जेल भी जाना पड़ता है या खुदकुशी करना पड़ती है।
पिकेटी ने चीन का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि चीन में शिक्षा पर खर्च, स्वास्थ्य पर खर्च, सार्वजनिक बुनियादी ढांचे पर खर्च और समान खर्च किया गया और उसका लाभ आम लोगों तक पहुंचाया गया। वहां के उच्च आय वर्ग पर ज्यादा टैक्स लगाकर उसे बुनियादी चीजों पर खर्च किया गया। पिकेटी ने कहा, “और यह तभी मुमकिन हुआ जब वहां 15 साल पहले निम्न स्तर से इसकी शुरुआत हुई थी। आज स्थितियां बदल चुकी हैं।”
पिकेटी भारत को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। उन्होंने कहा- “अगर भारत में कुल कर राजस्व सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 80% होता, तो हाँ, उस तर्क में बहुत दम होता। लेकिन13% जीडीपी के साथ, मुझे लगता है कि भारत के विकास के लिए सार्वजनिक बुनियादी ढांचे, सार्वजनिक पूंजी, मानव पूंजी की कमी है। अगर बहुत अधिक विकास के लिए जीडीपी का 80% निजी हाथों में रखते, तो आप पहले से ही एक बहुत ही उत्पादक अर्थव्यवस्था होते क्योंकि आपके पास पहले से ही बहुत कम टैक्स है। मेरा मतलब है, यदि आप अन्य देशों से तुलना करें, तो आपके पास दुनिया में सबसे कम टैक्स राजस्व है।” यानी निजी क्षेत्र के अरबपतियों पर बहुत कम टैक्स है और वसूली भी पारदर्शी तरीके से नहीं होती तो भारत का टैक्स राजस्व इसीलिए कम भी है।