अरुणाचलेश्वर मंदिर
Arunachalesvara Temple History: भगवान शिव जिसे भूतनाथ के नाम से भी जाना जाता है। भूतनाथ यानि ब्रह्मांड के पांच तत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के स्वामी। इन्हीं पंचतत्वों के स्वामी भगवान शिव को दक्षिण भारत के पांच शहरों में अलग अलग रूप में स्थापित किया गया है। भारत देश में स्थापित द्वादश ज्योतिर्लिंगों के समान ही ये पांच तत्वों वाले शिव के मंदिर भी पूजनीय हैं जिसे पंच महाभूत स्थल के नाम से जाना जाता है।
भारत देश में तमिलनाडु राज्य के तिरुवन्नामलाई शहर का अरुणाचलेश्वर मंदिर शैव धर्म के हिंदू संप्रदाय का एक विशेष महत्व रखता है। इस मंदिर को अन्नामलाईयार मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। अरुणाचला पहाड़ी के तल पर स्थित भगवान शिव का यह मंदिर पांच तत्वों में से विशेष रूप से अग्नि से जुड़ा है। भगवान शिव की मूर्ति को अग्नि लिंगम कहा जाता है और उनकी पत्नी पार्वती को उन्नामलाई अम्मन या अपिथकुचा अम्बल के रूप में जाना जाता है।
इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में चोल राजवंश के दौरान किया गया था, बाद के विस्तार का श्रेय विजयनगर शासन काल के संगमा राजवंश, सलुवा राजवंश और तुलुवा राजवंश शासकों को दिया जाता है। वर्तमान में मंदिर का रखरखाव और प्रशासन तमिलनाडु सरकार के द्वारा किया जाता है ।इस मंदिर का उल्लेख कई प्राचीन तमिल ग्रंथों में मिलता है। कहा जाता है कि 9वीं शताब्दी के प्रसिद्ध शैव संत कवि मणिक्कवसागर ने इसी स्थान पर तिरुवेमपावी ग्रंथ की रचना की थी। मंदिर का इतिहास तमिल ग्रंथों थेवरम और थिरुवसागम में भी उपलब्ध है।
करीब 10 हेक्टेयर यानि 24 एकड़ क्षेत्रफल की दूरी में फैला यह मंदिर परिसर देश के सबसे बड़े मंदिर परिसरों में से एक है। इस मंदिर परिसर में चार प्रवेश द्वार है जिसे गोपुरम के नाम से जाना जाता है। इसमें सबसे ऊंची नायकर वंश द्वारा निर्मित पूर्वी टॉवर है जो 11 मंजिला है और इसकी ऊंचाई 66 मीटर यानि 217 फीट है। मंदिर परिसर में विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेव राय के शासन काल में बनाया गया हज़ार-स्तंभों वाला हॉल है जिसकी वास्तुकला देखते ही बनती है।
मंदिर के मार्ग में कुल 8 शिवलिंग हैं। ऐसा माना जाता है कि इंद्र, अग्नि, यम, निरुति, वरुण, वायु, कुबेर और ईशान देव की पूजा करते हुई इन आठ शिवलिंगों का दर्शन करना अत्यंत फलदायक होता है। मंदिर के गर्भगृह में गोलाई लिए हुए चौकोर आकार में 3 फुट ऊंचा शिवलिंग स्थापित है जिसे लिंगोंत्भव कहा जाता है। इसी शिवलिंग में भगवान शिव अग्नि के रूप में विराजमान हैं। इस शिवलिंग के चरणों में भगवान विष्णु वाराह और ब्रह्मा जी हंस के रूप में विराजमान हैं।
मंदिर का पौराणिक इतिहास (Arulmigu Arunachalesvara Mandir Ka Itihas)
श्री अरुणाचलेश्वर मंदिर का अपना पौराणिक इतिहास है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती ने हंसी मजाक में भगवान शिव से अपने नेत्र बंद करने के लिए कहा। तब भगवान शिव ने अपने नेत्र बंद कर लिए जिससे पूरे ब्रह्मांड में कई हजारों वर्षों के लिए अंधेरा छा गया। इस अंधकार को दूर करने के लिए भगवान शिव के भक्तों ने कड़ी तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर महादेव अन्नामलाई की पहाड़ी पर एक अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हुए। इसी कारण इस जगह भगवान शिव की पूजा अर्चना अरुणाचलेश्वर के रूप में की जाती है और यहां स्थापित शिवलिंग का नाम अग्नि लिंगम पड़ा।
प्रमुख त्यौहार:
महाशिवरात्रि यहां का खास पर्व है। इसके अतिरिक्त यहां का एक प्रमुख त्योहार कार्तिगई दीपम है जो नवंबर और दिसंबर के बीच पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन मंदिर में विशाल दीपदान के अलावा हजारों की संख्या में दीपक जलाए जाते हैं । इस दौरान पहाड़ी की चोटी पर एक विशाल प्रकाश स्तंभ जलाया जाता है जिसे मीलों दूर से देखा जा सकता है। यह दीप आकाश में मिलती आग के शिवलिंग का प्रतीक है। इसे देखने लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। प्रत्येक पूर्णिमा से एक दिन पहले श्रद्धालु गिरिवलम नामक पूजा में मंदिर के आधार और अरुणाचल पहाड़ी की करीब 14 किमी लंबी नंगे पैर परिक्रमा करते हैं। इसके अलावा मंदिर में ब्रह्मोत्सवम और तिरुवूडल नामक त्यौहार के दौरान मंदिर में कई तरह के अनुष्ठान किए जाते हैं।प्रतिदिन मंदिर में सुबह 5:30 बजे से रात्रि 10 बजे तक अलग अलग समय पर छह दैनिक अनुष्ठान होते हैं।
कैसे पहुंचें (Arulmigu Arunachalesvara Mandir Travel Guide)�
हवाई मार्ग से तिरुवन्नामलाई पहुंचने का निकटतम हवाईअड्डा चेन्नई में है। यहां से मंदिर लगभग 175 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां पहुंच कर बस, टैक्सी या अन्य साधन से मंदिर पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग द्वारा यहां पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन तिरुवन्नामलाई रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से लगभग 2 किमी दूर है। स्थानीय परिवहन के माध्यम से मंदिर पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग से तिरुवन्नामलाई तमिलनाडु के कई शहरों जैसे चेन्नई और विलुप्पुरम के अलावा बेंगलुरु, पुडुचेरी और मैंगलोर जैसे शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
अरुणाचलेश्वर मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय नवंबर से मार्च के बीच का है इस समय यहां का मौसम सुहावना होता है और इस दौरान मंदिर में कई प्रमुख त्योहारों का दौर भी रहता है। वैसे यह मंदिर साल भर खुला रहता है और हर मौसम का अपना अलग मजा रहता है। मॉनसून के मौसम में मंदिर के चारों ओर हरियाली का खूबसूरत नज़ारा देखने को मिलता है।