
5000 Year Old Attahas Temple
अट्टहास मंदिर: सर्दियों का मौसम शुरू होते ही अगर आप ऐसी जगह घूमने का मन बना रहे हैं जहां धार्मिक आस्था, रहस्यमयी कहानियां और लोकसंस्कृति का अनोखा संगम हो तो पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित अट्टहास मंदिर आपके लिए एक परफेक्ट डेस्टिनेशन है। यह वही स्थान है जहां मां सती का अधर गिरा था और यहीं हर साल दिसंबर में ‘अट्टहास मेला’ का आयोजन होता है। इस मेले में भक्ति, लोककला, संगीत और रहस्य का ऐसा रंग घुलता है, जो हर पर्यटक को अपनी ओर खींच लेता है। सैकड़ों वर्षों पुराने इस मंदिर की वास्तु कला इतनी सुदृढ़ है कि समय के थपेड़े और पीढ़ियों का बदलता दौर भी इस स्थल के स्वरूप और आध्यात्मिक ऊर्जा को कम नहीं कर सका है। आइए जानते हैं इस रहस्यमई अट्टहास मंदिर और दिसंबर महीने में यहां लगने वाले भव्य मेले से जुड़े इतिहास के बारे में –
भारत में कहां स्थित है अट्टहास मंदिर
अट्टहास मंदिर भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के बीरभूम ज़िले के लाबपुर ब्लॉक में स्थित है। यह स्थान प्राकृतिक हरियाली और शांत वातावरण से घिरा हुआ है। मंदिर के पास से ईशानी नदी बहती है, जो इस स्थल की पवित्रता को और बढ़ा देती है। बीरभूम का यह इलाका अपने लोकगीतों, बाउल परंपरा और धार्मिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध है। दूर- दूर से यहां आने वाले श्रद्धालु व पर्यटक न केवल मां सती के दर्शन करते हैं, बल्कि आस्था, पवित्रता और सुकून के साथ बंगाल की सांस्कृतिक खुशबू से भी जुड़ाव महसूस करते हैं।
51 शक्तिपीठों में से एक सती की कथा से जुड़ा है इसका पौराणिक इतिहास
अट्टहास मंदिर का संबंध देवी सती की उस अमर कथा से जुड़ा है, जिसने पूरे भारत को शक्तिपीठों के रूप में जोड़ दिया है। इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया, तो सती ने यज्ञकुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। दुख और क्रोध में शिव ने उनका निर्जीव शरीर उठाकर तांडव किया। ब्रह्मांड को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े किए, जो पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में गिरे। इन्हीं स्थानों को आज शक्तिपीठ कहा जाता है। बीरभूम स्थित अट्टहास शक्तिपीठ वही स्थान है जहां मां सती का अधर गिरा था। यहां देवी को ‘अट्टहासा देवी’ और भगवान शिव को ‘भैरव विशेश्वर’ के रूप में पूजा जाता है।
स्वयंभू है यह 5,000 वर्ष पुराना मंदिर
मान्यता है कि यह मंदिर लगभग 5,000 वर्ष पुराना है। ईशानी नदी के किनारे बसे इस मंदिर के चारों ओर घना हरियाली भरा जंगल है, जो वातावरण को रहस्यमयी बनाता है। मंदिर परिसर में एक विशाल प्राकृतिक तालाब है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका जल उपचारात्मक गुणों से भरा हुआ है। श्रद्धालु यहां स्नान कर शारीरिक और मानसिक शुद्धि का अनुभव करते हैं।
स्थानीय लोग बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना किसी राजा ने नहीं, बल्कि स्वयं प्रकृति ने की थी। कहा जाता है कि जब मां सती का अधर यहां गिरा, तो पृथ्वी के भीतर से देवी की हंसी की तेज ध्वनि गूंजी और तभी इस स्थान का नाम अट्टहास पड़ा।
मंदिर से जुड़े हैं रहस्यमयी किस्से – जहां आधी रात को सुनाई देती हैं आवाजें
अट्टहास मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि रहस्यों का घर भी माना जाता है। स्थानीय निवासियों और यात्रियों के बीच इस मंदिर को लेकर कई भूतिया किस्से प्रचलित हैं। कहा जाता है कि रात के समय मंदिर परिसर में अजीब सी आवाजें सुनाई देती हैं। कभी किसी के मंत्रोच्चारण की ध्वनि, तो कभी किसी स्त्री की तेजी से हंसने की ध्वनि। कुछ लोगों ने यह भी बताया कि मंदिर के पीछे के जंगलों में रहस्यमयी परछाइयां चलती दिखाई देती हैं।
हालांकि वैज्ञानिक रूप से इसका कोई प्रमाण नहीं है, पर स्थानीय लोग इसे मां की दैवीय लीला मानते हैं। उनके अनुसार, यह आवाजें और आहटें मां सती की उपस्थिति का संकेत हैं। इसलिए, रात में कोई भी व्यक्ति बिना दीपक या पूजा किए मंदिर के आसपास जाने की हिम्मत नहीं करता।
खूबसूरती और दिव्यता का प्रतीक है मंदिर की वास्तुकला
अट्टहास मंदिर भव्य शिल्पकला का उदाहरण है। इसका निर्माण पारंपरिक बंगाल शैली में हुआ है। जहां लाल ईंटों से बना गर्भगृह देवी की मूर्ति को सहेजे हुए है। मंदिर के प्रवेशद्वार पर उकेरे गए देवी-देवताओं के चित्र इसकी प्राचीनता और अमूल्य शिल्पकला का बखान करते हैं।
मुख्य गर्भगृह में देवी की मूर्ति काले पत्थर से बनी है। देवी का चेहरा प्रसन्न मुद्रा में है, मानो वे भक्तों को आशीर्वाद दे रही हों। मंदिर के चारों ओर पत्थर की दीवारों पर संस्कृत श्लोक खुदे हुए हैं, जो शक्ति और भक्ति के महत्व को दर्शाते हैं।
यहां दिसंबर में लगता है प्रसिद्ध अट्टहास मेला
हर साल दिसंबर महीने में यहां ‘अट्टहास मेला’ जिसे स्थानीय लोग देवी मेला भी कहते हैं, आयोजित होता है।
यह मेला धार्मिक आस्था और लोकसंस्कृति दोनों का उत्सव है। इस दौरान मंदिर परिसर और आस-पास के क्षेत्र में हजारों श्रद्धालु एकत्र होते हैं। इस दौरान लोग मेले में लोकगीत, नृत्य और पारंपरिक कला संस्कृति से जुड़े कार्यक्रम में शरीक होने के साथ ही यहां की पारंपरिक वस्तुओं की खरीदारी और खानपान का लुत्फ जरूर उठाते हैं।
यह मेला केवल आस्था का अवसर नहीं बल्कि बंगाल की ग्रामीण जीवन की जीवंत झलक भी दिखाता है। जहां श्रद्धा, संगीत और परंपरा तीनों को एक साथ महसूस किया जा सकता है।
यात्रा का सर्वोत्तम समय
अट्टहास मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी तक माना जाता है, जब मौसम सुहावना और यात्रा के अनुकूल रहता है।
दिसंबर में आयोजित दुर्गा पूजा और मेला के समय यहां भक्तों की भारी भीड़ होती है, जो मंदिर के माहौल को और भी जीवंत बना देती है।
अट्टहास मंदिर स्थल – पर्यटन और प्राकृतिक सौंदर्य का मिश्रण
अट्टहास मंदिर के आसपास घूमने लायक कई स्थान भी हैं, जहां आप यात्रा के दौरान जा सकते हैं। शांतिनिकेतन (गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का आश्रम) जो कि मंदिर से लगभग 45 किमी दूरी पर स्थित है। वहीं कंकारेश्वर मंदिर, नलहाटी शक्तिपीठ,
दुब्रजपुर का कंकालेश्वरी मंदिर, बोलपुर का बाउल संगीत ग्राम जैसे धार्मिक महत्व के स्थलों के साथ-साथ अट्टहास मंदिर एक खूबसूरत पर्यटन स्थल भी है। यहां आने वाले यात्रियों के लिए पास में छोटे-छोटे घाट, तालाब और वन क्षेत्र आकर्षण का केंद्र हैं।
कई परिवार यहां पिकनिक मनाने आते हैं, वहीं कई पर्यटक इसके भूतिया किस्सों की सच्चाई जानने की कोशिश करते हैं।
यहां तक रेल और सड़क दोनों मार्गों से पहुंचा जा सकता है।
अट्टहास मंदिर कैसे पहुंचे
रेल मार्ग – निकटतम रेलवे स्टेशन लाबपुर और नलहाटी हैं, जो लगभग 10 से 15 किमी दूर हैं।
सड़क मार्ग – कोलकाता से लगभग 210 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां बर्दवान से बोलपुर – लाबपुर – अट्टहास मार्ग से पहुंचा जा सकता है।
हवाई मार्ग – निकटतम हवाई अड्डा नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (कोलकाता) है।
अट्टहास मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह भारत की शक्ति परंपरा का जीवंत प्रतीक है। यहाँ हर पत्थर, हर हवा का झोंका मां की उपस्थिति का एहसास कराती है।
डिस्क्लेमर – इस लेख में वर्णित भूतिया घटनाएं और मान्यताएं स्थानीय लोककथाओं पर आधारित हैं। इनका उद्देश्य केवल सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जानकारी प्रदान करना है, न कि किसी प्रकार की अंधविश्वासी धारणा को बढ़ावा देना।


