Beehad Vaale Baaba Ka Mazaar (Photos – Social Media)
Etawah Famous Beehad Wale Baba Ka Mazar: उत्तर प्रदेश भारत का एक खूबसूरत और प्रसिद्ध राज्य है। इस राज्य में कई सारे शहर मौजूद है जो अपने अलग-अलग पर्यटक स्थलों की वजह से पहचाने जाते हैं। इलाहाबाद, प्रयागराज, मथुरा, वृंदावन जैसी धार्मिक नगरियां भी इसी राज्य में आती है। आज हम आपको उत्तर प्रदेश की एक अद्भुत मजार के बारे में बताते हैं। हम 850 साल पुरानी बीहड़ वाले बाबा की मजार की बात कर रहे हैं। इस मजार पर हर धर्म के लोग अपनी श्रद्धा अर्पित करने के लिए पहुंचते हैं। इस जगह को काफी चमत्कारी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां पर दो शेर अपनी पूंछ से सफाई करते हैं और फिर रहस्यमय तरीके से बिहार में गायब हो जाते हैं। यह मजार उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के गाने बीहड़ों के बीच मौजूद है जहां हर साल उर्स का आयोजन भी होता है।
चमत्कारी है बीहड़ वाले बाबा की मजार की शक्ति�
यह मजार काफी चमत्कारी मानी जाती है और यहां के चमत्कार पर विश्वास करते हुए जंगल की कठिनाइयों का सामना करते हुए बच्चे, महिलाएं, बुजुर्गों, युवा बिना किसी डर से यहां अपने श्रद्धा अर्पित करने के लिए पहुंचते हैं। सालों से यहां पर जाने की परंपरा चली आ रही है जिसका इतिहास लगभग 850 साल पुराना बताया जाता है।
गुरुवार के दिन रहती है श्रद्धालुओं की भीड़
गुरुवार के दिन इस मजार का दृश्य ऐसा होता है कि आप किसी घने जंगल में नहीं बल्कि शहर के बीचो-बीच किसी बाजार में मौजूद हैं। सुबह से लेकर शाम तक यहां श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। मजाक तक पहुंचाने के लिए कोई स्पष्ट और सुगम रास्ता नहीं है फिर भी लोग अपनी आस्था के बल पर यहां पहुंच जाते हैं।
बाबा के मजार की�सफाई करने के जंगल से आते हैं शेर�
इस मजार के बारे में बताया जाता है कि यहां की सफाई करने के लिए जंगल से दो शेर आते हैं और अपनी पूंछ से मजार की सफाई कर वापस बीहड़ों में लौट जाते हैं। जो भी श्रद्धालु इस मजार पर आता है उसे कुछ ही तरह का खतरा महसूस नहीं होता। लोगों का कहना है कि यहां कोई भी व्यक्ति बिना भय के आ सकता है और जो भी यहां आकर मुराद मांगता है उसकी मुराद पूरी हो जाती है।
ऐसी है बाबा के मजार की कहानी�
इस मजार के बारे में कहा जाता है कि मोहम्मद गौरी और राजा सुमेर शाह के युद्ध के दौरान मोहम्मद गौरी के सेनापति शमसुद्दीन इस बीहड़ पर नजर रखते थे। उनके निधन के बाद यहां पर उनकी मजार बनाई गई। जब शमसुद्दीन सेनापति थे तब शेर उनके पास आते थे और उनके निधन के बाद से यह उनकी मजार के आसपास घूमते हुए देखे गए। श्रद्धालुओं ने कई बार शेर को देखा तो वह डर गए लेकिन उन्होंने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। धीरे-धीरे लोगों के मन में इस जगह के प्रति आस्था बढ़ती चली गई और अभी यहां कई लोग पहुंचते हैं।