
Story Of Bhakt Pundalik
Story Of Bhakt Pundalik
Story Of Bhakt Pundalik: भारतीय भक्ति परंपरा का इतिहास त्याग, श्रद्धा और सेवा की महान मिसालों से भरा पड़ा है। इसी परंपरा में महाराष्ट्र की पुण्यभूमि से उभरे एक अद्वितीय भक्त थे – पुंडलिक। उनका जीवन इस बात का जीवंत प्रमाण है कि सच्ची भक्ति केवल पूजा-पाठ में नहीं बल्कि निःस्वार्थ सेवा और माता-पिता के प्रति समर्पण में निहित होती है। भक्त पुंडलिक ने अपने कर्म और भक्ति से भगवान श्रीविठोबा (विट्ठल) को इस कदर प्रभावित किया कि स्वयं भगवान को पृथ्वी पर आकर उनके दर्शन देने पड़े। यह गाथा मात्र एक धार्मिक कथा नहीं बल्कि यह एक अमर प्रेरणा है । जो यह सिद्ध करती है कि जब सेवा में आत्मा रच-बस जाती है, तो ईश्वर भी भक्त के दर पर आ खड़े होते हैं।
आइये जानते है भक्त पुंडलिक की अद्भुत कहानी!
पुंडलिक का प्रारंभिक जीवन
पौराणिक कथाओं के अनुसार पुंडलिक (या पुंडरीक)( Pundalik or Pundarika) का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम जानुदेव और माता का नाम सबरी था। प्रारंभ में पुंडलिक(Pundalik) अपने माता-पिता के प्रति उदासीन, स्वार्थी और बुरी संगति में रहने वाला युवक था। वह अपने माता-पिता का अनादर करता, उनकी सेवा में रुचि नहीं लेता और अपने सुख के लिए ही जीता था। माता-पिता ने सोचा कि शायद विवाह के बाद उसमें बदलाव आए लेकिन विवाह के बाद भी उसकी प्रवृत्ति नहीं बदली। और वे पत्नी के मोह में फंसे हुए एक सामान्य गृहस्थ जीवन जी रहे थे।
जीवन में परिवर्तन
कहा जाता है कि एक बार पुंडलिक अपने माता-पिता को काशी ले जाने के लिए निकला। यात्रा के दौरान एक स्थान पर रुकने पर उसे तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का साक्षात्कार हुआ। इन नदियों ने उसे उसके पूर्वजन्म के पाप और माता-पिता के प्रति किए गए दुर्व्यवहार का स्मरण कराया। पुंडलिक को अपनी गलती का गहरा अहसास हुआ और उसने अपने माता-पिता से क्षमा मांगी। इसके बाद पुंडलिक में अद्भुत परिवर्तन आया। उसने निश्चय किया कि वह अपने माता-पिता की सेवा को ही अपना धर्म और साधना बनाएगा।
मातृ-पितृ भक्ति की मिसाल
पुंडलिक ने अपने माता-पिता की सेवा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। वह स्वयं पैदल चलता और अपने माता-पिता को बैलगाड़ी में बिठाकर यात्रा करता। उसने अपने जीवन का लक्ष्य ही माता-पिता की सेवा को बना लिया। उसकी सेवा भावना इतनी प्रबल थी कि वह अपने माता-पिता के पैर दबाते समय संसार के अन्य सभी कार्यों को गौण समझता था।
भगवान श्री विट्ठल का आगमन

पुंडलिक की मातृ-पितृ भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण (या विष्णु) स्वयं उसके घर पंढरपुर आए। उस समय पुंडलिक अपने माता-पिता के पैर दबा रहा था। भगवान ने पुंडलिक को पुकारा, लेकिन वह माता-पिता की सेवा में इतना लीन था कि उसने भगवान से क्षमा मांगते हुए कहा, “हे प्रभु! मैं अभी माता-पिता की सेवा में व्यस्त हूं, कृपया प्रतीक्षा करें।” उसने भगवान के लिए एक ईंट बाहर फेंकी और निवेदन किया कि वे उस पर खड़े होकर प्रतीक्षा करें। भगवान विट्ठल (पांडुरंग) उस ईंट पर खड़े हो गए। पुंडलिक की सेवा-भावना और निष्ठा से प्रसन्न होकर भगवान श्री विट्ठल ने कहा – “हे पुंडलिक! तुम सच्चे भक्त हो। तुम्हारी भक्ति और समर्पण से मैं अत्यंत प्रसन्न हूं। मैं सदा तुम्हारे पास इसी रूप में रहूंगा।” और तबसे लेकर आजतक भगवान श्रीकृष्ण पंढरपुर के मंदिर में इसी मुद्रा में पूजे जाते हैं।
श्री विठोबा और रुक्मिणी देवी की मूर्ति स्थापना

कहा जाता है कि भगवान श्रीविठोबा ने पुंडलिक से कहा कि वे उनकी भक्ति से इतने प्रसन्न हैं कि वे इसी पवित्र स्थान पर सदा निवास करेंगे। तब से भगवान श्रीविठोबा (विट्ठल) और बाद में उनकी पत्नी रुक्मिणी (रुक्मिणी देवी) की मूर्ति स्थापित की गई। यह स्थान आज पंढरपुर के नाम से विख्यात है और महाराष्ट्र का प्रमुख तीर्थ बन चुका है।
पुंडलिक का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
पुंडलिक केवल एक पौराणिक पात्र नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति में मातृ-पितृ भक्ति का प्रतीक बन गए हैं। उनकी कथा यह सिखाती है कि ईश्वर की सच्ची पूजा सेवा, समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा में है। पुंडलिक ने यह सिद्ध कर दिया कि माता-पिता की सेवा ही सर्वोच्च धर्म है और भगवान भी ऐसे भक्त की परीक्षा लेने स्वयं पृथ्वी पर आते हैं।
पंढरपुर मंदिर और वारकरी संप्रदाय
पुंडलिक के कारण ही भगवान विट्ठल पंढरपुर में विराजमान हुए। पंढरपुर का विट्ठल मंदिर आज भी महाराष्ट्र के सबसे बड़े तीर्थ स्थानों में से एक है। यहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु ‘वारी’ यात्रा के रूप में पैदल यात्रा करते हैं। पुंडलिक को वारकरी संप्रदाय का संस्थापक भी माना जाता है, जो भगवान विट्ठल की भक्ति को जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य मानते हैं।
पुंडलिक की कथा का संदेश
भक्त पुंडलिक की कथा केवल एक धार्मिक प्रसंग नहीं बल्कि जीवन के गहरे संदेशों से भरपूर एक प्रेरणादायक गाथा है। इस कथा का मूल संदेश मातृ-पितृ सेवा को सर्वोच्च धर्म के रूप में स्थापित करता है । यह बताता है कि माता-पिता की सेवा कोई साधारण कर्तव्य नहीं बल्कि जीवन का सार है। पुंडलिक का जीवन यह भी सिखाता है कि ईश्वर केवल बाहरी पूजा-पाठ या दिखावे से प्रसन्न नहीं होते बल्कि सच्ची भक्ति, सेवा और समर्पण में ही उनकी सच्ची प्रसन्नता निहित है। इस कथा से यह भी स्पष्ट होता है कि जीवन में कभी भी परिवर्तन संभव है। पश्चाताप, आत्मचिंतन और सुधार की भावना से एक साधारण व्यक्ति भी महान बन सकता है। इसके साथ ही पंढरपुर की विट्ठल भक्ति और वारकरी परंपरा ने सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक एकता को सशक्त आधार दिया है जो आज भी महाराष्ट्र और भारत के अन्य हिस्सों को जोड़ती है।
पुंडलिक की विरासत और लोक श्रद्धा
आज भी महाराष्ट्र में पुंडलिक के नाम से अनेक भजन, अभंग और लोकगीत गाए जाते हैं। बच्चों को उनकी कथा सुनाई जाती है ताकि उनमें सेवा भाव और भक्ति के बीज बचपन से बोए जा सकें। पंढरपुर में श्रीविठोबा मंदिर के दर्शन से पहले श्रद्धालु पुंडलिक मंदिर में जाकर उनका आभार व्यक्त करते हैं।