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    Home » Bharat Ka Ajab-Gajab Gaon: एक ऐसा गांव जो भारत के संविधान को नहीं मानता है, यहां के लोगों का है अपना संविधान
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    Bharat Ka Ajab-Gajab Gaon: एक ऐसा गांव जो भारत के संविधान को नहीं मानता है, यहां के लोगों का है अपना संविधान

    By January 25, 2025No Comments8 Mins Read
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    Bharat Ka Ajab-Gajab Gaon Malana Village

    Ajab-Gajab Malana Gaon: भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ, जब देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने तिरंगा फहराकर भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में प्रस्तुत किया। संविधान के लागू होने के साथ ही पूरे देश में एक समान कानून प्रणाली अस्तित्व में आई। इसमें सभी धर्मों, जातियों, लिंगों और समुदायों के लिए समान अधिकार और कर्तव्यों की व्यवस्था की गई।

    हालाँकि, भारत में कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहाँ संविधान पूरी तरह लागू नहीं होता। इनमें मेघालय के कुछ क्षेत्र और हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध मलाणा गाँव (Malana Village) शामिल हैं। इन क्षेत्रों की अपनी स्वायत्त व्यवस्थाएँ हैं, जो उनकी प्राचीन परंपराओं और विशेष अधिकारों पर आधारित हैं।

    हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के कुल्लू जिले (Kullu) में स्थित मलाणा गाँव, अपनी अनोखी परंपराओं, रहस्यमयी इतिहास और आत्मनिर्भर संविधान के लिए प्रसिद्ध है। यह गाँव हिमालय की गोद में बसा हुआ है। चारों ओर से बर्फ से ढके पहाड़ों और घने जंगलों से घिरा हुआ है। मलाणा अपनी संस्कृति, सामाजिक संरचना और लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक अलग पहचान रखता है। इस गाँव का सबसे प्रमुख और दिलचस्प पहलू है इसका अपना संविधान, जो इसे भारतीय कानूनी व्यवस्था से अलग और अद्वितीय बनाता है।

    मलाणा गाँव का इतिहास (Malana Gaon Ka Itihas)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    मलाणा गाँव का इतिहास हजारों साल पुराना है। यह अलेक्जेंडर महान (Alexander the Great) के समय से जुड़ा हुआ माना जाता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस गाँव के लोग सिकंदर की सेना के सैनिकों के वंशज हैं।

    पौराणिक कथा और अलेक्जेंडर का संबंध

    मलाणा गाँव के निवासियों का दावा है कि वे सिकंदर की सेना के यूनानी सैनिकों के वंशज हैं, जो यहाँ बस गए थे। उनकी संस्कृति और भौतिक संरचना में कई विशेषताएँ यूनानी सभ्यता से मिलती हैं। हालाँकि इस दावे के ठोस ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं। लेकिन इसकी प्राचीनता और अनोखी परंपराएँ इसे एक अलग पहचान देती हैं।

    जमलू ऋषि का महत्व (Jamlu Rishi Ka Mahatva)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    मलाणा गाँव की परंपराएँ और कानून जमलू ऋषि के प्रति उनकी गहरी आस्था से प्रेरित हैं। जमलू ऋषि को गाँव का संरक्षक देवता माना जाता है। गाँव का संविधान भी इन्हीं के आदेशों पर आधारित है। ऐसा माना जाता है कि जमलू ऋषि ने गाँव को स्वायत्तता और विशेषाधिकार प्रदान किए, जिन्हें आज भी गाँववासी पूर्ण निष्ठा के साथ मानते हैं।

    मलाणा का संविधान और इसकी विशेषताएँ (Malana Ka Sanvidhan)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    मलाणा गाँव का संविधान इसे भारत के अन्य हिस्सों से अलग करता है। यह संविधान लिखित नहीं है, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से प्रचलित है। इसके प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

    स्वायत्त शासन प्रणाली

    मलाणा गाँव के लोग अपने गाँव की हर समस्या और विवाद को अपने संविधान और परंपराओं के आधार पर हल करते हैं। उनकी न्याय प्रणाली भारतीय न्यायालयों और कानूनी व्यवस्था से स्वतंत्र है।

    ग्राम पंचायत और न्याय व्यवस्था

    मलाणा गाँव में दो स्तर की पंचायत प्रणाली है:

    ऊपरी पंचायत (कुलंत): यह पंचायत उच्चतम न्यायिक और प्रशासनिक इकाई है।

    निचली पंचायत (जूनियर परिषद): यह पंचायत छोटे-मोटे मामलों का निपटारा करती है।

    ज्येष्ठांग में कुल 11 सदस्य हैं, इनमें से तीन कारदार, गुरु व पुजारी होते हैं, जो कि स्थाई सदस्य हैं। बाकि के आठ सदस्यों को ग्रामीण मतदान करके चयनित करते हैं। कनिष्ठांग सदन में गांव के हर घर से एक सदस्य प्रतिनिधि होता है। संसद भवन के तौर पर यहां एक ऐतिहासिक चौपाल है, जहां सारे विवादों के फैसले होते हैं।

    देवता का महत्व

    गाँव में हर निर्णय देवता जमलू ऋषि की अनुमति से लिया जाता है। निर्णय लेने के लिए देवता के मंदिर में पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि देवता के आदेश के बिना कोई भी निर्णय मान्य नहीं होता।

    संपत्ति और भूमि व्यवस्था

    मलाणा में भूमि और संपत्ति का बँटवारा भी संविधान के अनुसार होता है। बाहरी व्यक्तियों को गाँव की जमीन खरीदने या यहाँ बसने की अनुमति नहीं है।

    मलाणा की संस्कृति और परंपराएँ (Culture and Traditions of Malana In Hindi)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    मलाणा गाँव की संस्कृति और परंपराएँ इसे भारत के अन्य हिस्सों से अलग बनाती हैं। यहाँ के लोग अपनी परंपराओं का सख्ती से पालन करते हैं।मलाणा में बोली जाने वाली भाषा ‘कनाशी’ है, जो भारत की किसी भी अन्य भाषा से बिल्कुल अलग है। ऐसा माना जाता है कि यह भाषा संस्कृत और तिब्बती भाषाओं का मिश्रण है। यह भाषा गाँव के लोगों की सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

    मलाणा के लोग अपने पारंपरिक त्योहारों को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। इनमें ‘फागली उत्सव’ सबसे प्रमुख है, जो सर्दियों के अंत में मनाया जाता है। इस दौरान विशेष पूजा-अर्चना और नृत्य का आयोजन किया जाता है।

    मलाणा गाँव के लोगों का बाहरी लोगों से संपर्क सीमित है। बाहरी लोगों को गाँव के मंदिर और अन्य पवित्र स्थलों को छूने की अनुमति नहीं है। अगर कोई बाहरी व्यक्ति गलती से इन्हें छू लेता है, तो इसे अपवित्र माना जाता है। उसे शुद्ध करने के लिए अनुष्ठान किया जाता है।

    मलाणा और आधुनिकता का प्रभाव

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    हालाँकि मलाणा अपनी परंपराओं और संविधान के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन आधुनिकता और बाहरी दुनिया के प्रभाव से यह गाँव पूरी तरह अछूता नहीं है। मलाणा गाँव हाल के वर्षों में पर्यटकों के लिए आकर्षण बन गया है। इसके प्राकृतिक सौंदर्य, रहस्यमयी इतिहास और अनोखी परंपराएँ पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। हालाँकि पर्यटन ने गाँव की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है। लेकिन इससे पारंपरिक जीवनशैली और पर्यावरण को नुकसान भी हुआ है।

    चरस की खेती और विवाद

    मलाणा गाँव चरस की उच्च गुणवत्ता वाली खेती के लिए भी जाना जाता है। यहाँ उगाई जाने वाली ‘मलाणा क्रीम’ दुनिया भर में प्रसिद्ध है। हालाँकि यह अवैध है।,लेकिन यह गाँव की आय का एक बड़ा स्रोत है। इस कारण से गाँव में कई कानूनी विवाद भी उत्पन्न हुए हैं।

    मलाणा के सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दे

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    मलाणा गाँव की अनोखी संस्कृति और परंपराओं के साथ कई चुनौतियाँ भी जुड़ी हुई हैं। बढ़ता पर्यटन और अनियंत्रित गतिविधियाँ गाँव के पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रही हैं।प्लास्टिक कचरा और बाहरी लोगों द्वारा फैलाया गया प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन गई है। आधुनिकता और बाहरी संपर्क ने गाँव की पारंपरिक व्यवस्था को प्रभावित किया है।युवाओं के बीच पारंपरिक मूल्यों के प्रति उदासीनता बढ़ रही है।

    मलाणा गाँव का भविष्य

    मलाणा गाँव की अनोखी परंपराएँ और संविधान इसे एक विशेष पहचान प्रदान करते हैं। हालाँकि आधुनिकता और बाहरी प्रभावों के चलते इसकी संस्कृति को संरक्षित रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।

    संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    मलाणा गाँव की परंपराओं और संविधान को संरक्षित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रमों की आवश्यकता है। पर्यटकों को गाँव की संस्कृति और परंपराओं का सम्मान करना चाहिए। गाँव में स्थायी पर्यटन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिससे पर्यावरण और पारंपरिक जीवनशैली को नुकसान न पहुँचे। सरकार और स्थानीय प्रशासन को पर्यावरण संरक्षण के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए।

    इस गांव से जुड़े कई अजीब नियम हैं, जिसमें से गांव में दीवार न छूने का नियम है। कोई भी बाहरी व्यक्ति गांव की दीवार को नहीं छू सकता है। अगर कोई नियम तोड़ता है तो जुर्माना देना पड़ सकता है। यहां आने वाले पर्यटक गांव के बाहर ही रहते हैं, ताकि वह गांव की दीवार तक न छू पाएं।

    2012 के चुनाव में यहां पर कुल 520 मत पड़े थे। अपनी अलग व्यवस्था के लिए जाने जाना वाला यह गांव आज भी अपनी प्राचीन संस्कृति के अनुसार ही चलता है। हालांकि समय के साथ जरूरी आधुनिकता के चलते यहां कुछ बदलाव आए हैं।लेकिन आज भी सरकार के नियमों से पहले यहां पर अपने नियम मान्य हैं। देवता जमलू का आदेश मानते हैं। ग्रामीण देवता जमलू के आदेश के बिना मलाणा गांव में कोई काम नहीं किया जाता है। मलाणा गांव के प्रधान भागी राम बताते हैं कि पंचायत में चुनाव के दौरान लोग कांग्रेस व भाजपा या अन्य पार्टियों को अपनी मर्जी के अनुसार मतदान करते हैं। लेकिन गांव में होने वाले किसी भी कार्य के लिए 14 सदस्यों और देवता के आदेश का ही पालन किया जाता है।

    मलाणा गाँव भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता का एक अनोखा उदाहरण है। इसका अपना संविधान, न्याय व्यवस्था और परंपराएँ इसे विशेष बनाते हैं। हालाँकि आधुनिकता और बाहरी प्रभावों ने इसे प्रभावित किया है, लेकिन इसकी संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित रखना न केवल गाँव के लिए बल्कि पूरे भारत के सांस्कृतिक धरोहर के लिए आवश्यक है। मलाणा गाँव न केवल अपनी स्वायत्तता के लिए जाना जाता है, बल्कि यह दिखाता है कि प्राचीन परंपराएँ और आधुनिकता साथ-साथ कैसे चल सकती हैं।

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