
Last Village Of India (Image Credit-Social Media)
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Last Village Of India: भारत में ऐसी जगहें है जो अपनी भौगोलिक स्थिति और अनूठी पहचान के लिए जाना जाता है । भारत में कई स्थान अपनी अनूठी भौगोलिक स्थिति और विशिष्ट पहचान के लिए प्रसिद्ध हैं। इन्हीं में से एक है चितकुल (Chitkul)। भारत के उत्तरी छोर पर स्थित चितकुल (Chitkul) हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले का एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत गाँव है, जिसे “भारत का अंतिम गाँव” कहा जाता है। यह गाँव सतलुज नदी की सहायक बस्पा नदी के किनारे, समुद्र तल से लगभग 11,320 फीट की ऊँचाई पर स्थित है और भारत-तिब्बत सीमा के सबसे नज़दीकी बस्तियों में से एक है।
चितकुल सिर्फ अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण ही नहीं, बल्कि अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता, शांत वातावरण और सांस्कृतिक विरासत के लिए भी प्रसिद्ध है। चारों ओर बर्फ से ढके पहाड़, हरे-भरे घास के मैदान, और बस्पा नदी की कलकल धारा इस गाँव को किसी स्वर्ग से कम नहीं बनाती।

Last Village Of India (Image Credit-Social Media)
चितकुल कहाँ स्थित है – Where is Chitkul Located?
चितकुल (Chitkul) हिमाचल प्रदेश(Himachal Pradesh) के किन्नौर(Kinnaur) जिले में स्थित एक छोटा खूबसूरत गाँव है। यह गाँव भारत-तिब्बत सीमा के सबसे नज़दीकी बस्तियों में से एक है और इसे ‘भारत का अंतिम गाँव’ भी कहा जाता है। चितकुल, सतलुज नदी की सहायक बस्पा नदी के किनारे बसा हुआ है और समुद्र तल से लगभग 11,320 फीट (3,450 मीटर) की ऊँचाई पर स्थित है।
यह गाँव हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला(Shimla) से लगभग 250 किलोमीटर की दूरी पर है और किन्नौर जिले के प्रमुख कस्बे रिकांग पिओ(Reckong Peo) से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित है। चितकुल अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता, शांत वातावरण और हिमालय की शानदार वादियों के लिए प्रसिद्ध है।

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चितकुल का भूगोल और जलवायु – Geographical Significance
चितकुल गाँव अपने ठंडे मौसम और बर्फ से ढके पहाड़ों के कारण एक अनूठा पर्यटन स्थल है। यहाँ की जलवायु सालभर ठंडी रहती है। सर्दियों में यहाँ भारी बर्फबारी होती है, जिससे गाँव का तापमान -10 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है। गर्मियों में यहाँ का तापमान अधिकतम 15-20 डिग्री सेल्सियस तक ही पहुँचता है, जो इसे एक आदर्श पर्यटक स्थल बनाता है।
क्यों चितकुल को अंतिम गांव कहा जाता है – Last Village Of India
चितकुल को अक्सर “भारत का आखिरी गाँव” कहा जाता है क्योंकि यह भारत-तिब्बत सीमा के सबसे नज़दीकी भारतीय गाँवों में से एक है। इस गाँव के आगे नागरिकों की आवाजाही प्रतिबंधित है, और केवल भारतीय सेना और अर्धसैनिक बलों को ही आगे जाने की अनुमति होती है।
चितकुल (Chitkul) का सांस्कृतिक महत्व – Cultural Significance
किन्नौरी संस्कृति और परंपराएँ:- चितकुल में रहने वाले लोग किन्नौरी जनजाति से संबंध रखते हैं, जो अपनी विशिष्ट भाषा, पहनावे और परंपराओं के लिए जाने जाते हैं। यहाँ के लोग पारंपरिक किन्नौरी टोपी, ऊनी वस्त्र और हस्तशिल्प का उपयोग करते हैं।
देवी-देवताओं में गहरी आस्था:- चितकुल गाँव माता माथी देवी (Mathi Devi) के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। स्थानीय लोग माता माथी देवी को गाँव की संरक्षक देवी मानते हैं और उनकी पूजा बड़े श्रद्धा भाव से की जाती है। यह मंदिर 500 साल पुराना माना जाता है और इसकी वास्तुकला अद्भुत लकड़ी की नक्काशी से सजी हुई है।
हिमालयी बौद्ध और हिंदू संस्कृति का संगम:- चितकुल में हिंदू और बौद्ध संस्कृति का अनूठा मेल देखने को मिलता है। किन्नौर क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से दोनों संस्कृतियों से प्रभावित रहा है, और यहाँ के लोग दोनों परंपराओं का सम्मान करते हैं। कई लोग बौद्ध धर्म से भी जुड़े हुए हैं और तिब्बती रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।

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पारंपरिक त्योहार और नृत्य – Festivals & Folk Dance
चितकुल, हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में स्थित एक सांस्कृतिक रूप से समृद्ध गाँव है, जहाँ कई पारंपरिक त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। ये त्योहार यहाँ की किन्नौरी संस्कृति, धार्मिक आस्था और सामाजिक एकता को दर्शाते हैं। इन अवसरों पर विशेष लोकनृत्य और पारंपरिक संगीत भी प्रस्तुत किए जाते हैं, जो इस क्षेत्र की अनूठी विरासत को जीवंत बनाए रखते हैं।
चितकुल में साल भर कई पारंपरिक त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें लोग पारंपरिक किन्नौरी नृत्य और संगीत का प्रदर्शन करते हैं। चितकुल में मनाए जानेवाले उत्सव निम्नलिखित है
किन्नौर का पारंपरिक पर्व फागली (Fagli) – यह त्योहार माघ महीने (फरवरी-मार्च) में महाशिवरात्रि के आसपास मनाया जाता है। इसे नए साल की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है।
किन्नौरी दशहरा, दशैं (Dasein) – यह त्योहार दशहरे के समय (अक्टूबर) में मनाया जाता है।यह त्योहार राम-रावण युद्ध का प्रतीक नहीं, बल्कि स्थानीय देवी-देवताओं को समर्पित होता है।
ऐतिहासिक व्यापार मेला, लवी मेला (Lavi Fair) – यह मेला नवंबर महीने में मनाया जाता है।यह किन्नौर और तिब्बत के पुराने व्यापारिक संबंधों की याद में आयोजित किया जाता है।
चितकुल में देवी-देवताओं को समर्पित गाँव के प्रमुख उत्सवों के दौरान पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं, जो यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत बनाए रखते हैं। बुशैहरी नृत्य (Bushuahri Dance) मुख्य रूप से फागली और दशैं त्योहारों के दौरान किया जाता है। इसके अलवा कीकरी नृत्य (Kikri Dance) मुख्य रूप से त्योहारों और विवाह समारोहों में किया जाता है। वहीं, शांड नृत्य (Shand Dance) मठों में बौद्ध परंपराओं से जुड़ा एक विशेष नृत्य है, जिसे धार्मिक आयोजनों के दौरान किया जाता है।
स्थानीय व्यंजन और खानपान – Food Habbits

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चितकुल के लोग पारंपरिक पहाड़ी भोजन बनाते हैं, जिसमें सिड्डू, थुकपा, चिलड़ा और राजमा-चावल प्रमुख व्यंजन हैं। यहाँ के खेतों में उगाई जाने वाली किन्नौरी राजमा और स्थानीय सेब देशभर में प्रसिद्ध हैं।
चितकुल की अर्थव्यवस्था – Economy Of Chitkul
कृषि और बागवानी:- चितकुल की अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ कृषि और बागवानी है। यहाँ की जलवायु और उपजाऊ मिट्टी उच्च गुणवत्ता की किन्नौरी राजमा, आलू और जौ जैसी फसलों के लिए उपयुक्त है। खासकर चितकुल की राजमा देशभर में अपनी बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जानी जाती है और इसकी काफी माँग होती है। इसके अलावा, यहाँ सेब, अखरोट और अन्य फलों की बागवानी भी की जाती है, जिससे स्थानीय किसानों को अच्छी आय होती है।
पर्यटन उद्योग:- चितकुल की अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता, बर्फीले पहाड़, हरी-भरी घाटियाँ और पारंपरिक किन्नौरी संस्कृति इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल बनाते हैं। गर्मियों में बड़ी संख्या में पर्यटक यहाँ घूमने आते हैं, जिससे स्थानीय होमस्टे, गेस्ट हाउस, होटल, रेस्टोरेंट और गाइड सेवाओं से जुड़े लोग अच्छी कमाई करते हैं। ट्रेकिंग और एडवेंचर स्पोर्ट्स के बढ़ते रुझान के कारण भी यहाँ का पर्यटन उद्योग फल-फूल रहा है।
स्थानीय व्यापार और हस्तशिल्प:- चितकुल में स्थानीय व्यापार भी एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि है। गाँव के लोग ऊनी कपड़े, किन्नौरी शॉल, दस्तकारी से बनी टोपी, और लकड़ी की नक्काशीदार वस्तुएँ बनाते और बेचते हैं। पहले यह गाँव भारत-तिब्बत व्यापार मार्ग का हिस्सा था, लेकिन अब तिब्बत से सीधा व्यापार बंद हो चुका है। फिर भी, स्थानीय बाजार में हस्तशिल्प और कृषि उत्पादों की अच्छी बिक्री होती है।
पशुपालन और दुग्ध उत्पादन:- कई स्थानीय परिवार भेड़-बकरी और याक पालन से जुड़े हैं, जिससे उन्हें ऊन और दुग्ध उत्पादों से आय होती है। यहाँ की किन्नौरी भेड़ अपनी उच्च गुणवत्ता वाली ऊन के लिए प्रसिद्ध है, जिसका उपयोग गर्म कपड़े और शॉल बनाने में किया जाता है।
सरकारी नौकरियाँ और अन्य स्रोत:- हालाँकि चितकुल एक छोटा गाँव है, लेकिन कई लोग भारतीय सेना, सीमा सुरक्षा बल (ITBP), शिक्षा और अन्य सरकारी सेवाओं में कार्यरत हैं। इसके अलावा, कुछ लोग आसपास के शहरों में नौकरी करने जाते हैं और वहाँ से गाँव में आर्थिक सहयोग भेजते हैं।
ऐतिहासिक और व्यापारिक महत्व – Historical Importance
चितकुल पुराने तिब्बती व्यापार मार्ग पर स्थित था, जहाँ से व्यापारी तिब्बत और भारत के बीच ऊन, नमक और अन्य वस्तुओं का लेन-देन करते थे। हालाँकि अब यह मार्ग बंद हो चुका है, लेकिन इसकी ऐतिहासिक भूमिका को आज भी याद किया जाता है।
चितकुल के प्रमुख पर्यटन स्थल – Attractive Destinations
बसपा नदी: यह नदी गाँव के सौंदर्य को और भी बढ़ा देती है। इसकी ठंडी और निर्मल धारा पर्यटकों को आकर्षित करती है।
माथी देवी मंदिर: यह एक प्राचीन मंदिर है जो स्थानीय लोगों की धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है।
भारत-तिब्बत सीमा: चितकुल के आगे पर्यटकों को जाने की अनुमति नहीं होती, लेकिन यहाँ से तिब्बत की पर्वत श्रंखलाओं को देखा जा सकता है।
हिमालयी ट्रेकिंग मार्ग: यहाँ से कई ट्रेकिंग मार्ग शुरू होते हैं, जिनमें लम्खागा पास ट्रेक बहुत प्रसिद्ध है।
चितकुल तक कैसे पहुँचें – How to reach Chitkul?
हवाई मार्ग – शिमला हवाई अड्डा (Shimla Airport) लगभग 240 किमी पर स्थित है वही भुंतर हवाई अड्डा (Kullu-Manali Airport) लगभग 300 किमी की दूरी पर तो वही चंडीगढ़ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा लगभग 350 किमी की दूरी पर स्थित है
रेल मार्ग (By Train) – चितकुल के सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन हैं
- कालका रेलवे स्टेशन (Kalka Railway Station) – लगभग 320 किमी
- शिमला रेलवे स्टेशन (Shimla Railway Station) – लगभग 240 किमी
सड़क मार्ग (By Road) – चितकुल तक पहुँचने के लिए सबसे सुविधाजनक तरीका सड़क मार्ग है। हिमाचल प्रदेश और पड़ोसी राज्यों से चितकुल के लिए अच्छी सड़कें बनी हुई हैं।शिमला और रिकांग पियो से चितकुल के लिए नियमित सरकारी और प्राइवेट बसें उपलब्ध हैं। सांगला से चितकुल के लिए लोकल बस और टैक्सी सेवाएँ आसानी से मिल जाती हैं। शिमला या चंडीगढ़ से प्राइवेट टैक्सी बुकिंग करके भी चितकुल तक पहुँचा जा सकता है।
चितकुल घूमने का सही समय – Right time to visit
अगर आप चितकुल की यात्रा करना चाहते हैं, तो अप्रैल से अक्टूबर के बीच का समय सबसे अच्छा है। इस दौरान मौसम सुहावना रहता है और रास्ते खुले होते हैं। सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण रास्ते बंद हो सकते हैं।