
India Plateau Region History
India Plateau Region History
Importance Of Plateau region Of India: भारत एक विविध भू-आकृतिक संरचना वाला देश है, जहाँ हिमालय की ऊँचाइयों से लेकर समुद्री तटों की विशालता तक, हर प्रकार की प्राकृतिक विविधता देखने को मिलती है। इसी विविधता में पठारी क्षेत्र एक विशेष स्थान रखते हैं। ये क्षेत्र केवल भूगोल की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि खनिज संसाधनों की भरमार, वन्य विविधता, कृषि उत्पादन और जल स्रोतों की दृष्टि से भी अत्यंत उपयोगी हैं। भारत के पठारी क्षेत्र न केवल देश की अर्थव्यवस्था को गति देते हैं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर और पारिस्थितिकी तंत्र के सशक्त स्तंभ भी हैं। यही कारण है कि इन क्षेत्रों का अध्ययन और संरक्षण, राष्ट्र के समग्र विकास के लिए अनिवार्य है।
पठार क्या होता है?

पठार एक विस्तृत और समतल या थोड़ा ऊँचा भू-भाग होता है जो चारों ओर से ढलान लिए होता है। यह समुद्र तल से काफी ऊँचाई पर स्थित होता है। पर्वतों की तुलना में यह अपेक्षाकृत कम ऊँचाई वाला होता है, लेकिन मैदानी क्षेत्रों की तुलना में ऊँचा होता है। पठारों का निर्माण भूगर्भीय हलचलों, ज्वालामुखीय गतिविधियों या अपरदन की प्रक्रिया से होता है।
भारत के प्रमुख पठारी क्षेत्र
भारत के प्रमुख पठारी क्षेत्रों को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा जा सकता है:
दक्कन पठार (Deccan Plateau)
मालवा पठार (Malwa Plateau)
छोटा नागपुर पठार (Chotanagpur Plateau)
इसके अतिरिक्त बुंदेलखंड पठार, बघेलखंड पठार, कर्नाटक पठार और मैसूर पठार भी महत्त्वपूर्ण हैं।
1. दक्कन पठार (Deccan Plateau)

दक्कन पठार भारत का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पठारी क्षेत्र है, जो देश के दक्षिणी भाग में फैला हुआ है। यह त्रिभुजाकार पठार महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल सहित लगभग आठ राज्यों में विस्तृत है। इसकी भौगोलिक सीमाएँ उत्तर में सतपुड़ा और विंध्याचल पर्वत, पूर्व में पूर्वी घाट तथा पश्चिम में पश्चिमी घाट से घिरी हुई हैं। यह पठार प्राचीन कठोर आग्नेय, कायांतरित और अवसादी चट्टानों से बना है और गोंडवाना भूखंड का हिस्सा रहा है, जो इसके भूगर्भीय महत्व को दर्शाता है। यहाँ की काली मिट्टी, जिसे ‘रेगुर’ मिट्टी कहा जाता है, कपास की खेती के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है। नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी जैसी प्रमुख नदियाँ इसी क्षेत्र से बहती हैं। दक्कन पठार न केवल कृषि के लिए उपजाऊ है, बल्कि खनिज संसाधनों से भी भरपूर है, जहाँ लौह अयस्क, बॉक्साइट और मैंगनीज जैसे खनिज पाए जाते हैं। साथ ही, यह क्षेत्र औद्योगिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि पुणे, हैदराबाद और बेंगलुरु जैसे प्रमुख औद्योगिक शहर यहीं स्थित हैं।
2. मालवा पठार (Malwa Plateau)

मालवा पठार मध्य भारत का एक महत्वपूर्ण भौगोलिक क्षेत्र है, जो मुख्यतः मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग और राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में फैला हुआ है। यह पठार उपजाऊ काली मिट्टी, जिसे ‘रेगुर’ भी कहा जाता है, के लिए प्रसिद्ध है, जो कृषि के लिए अत्यंत अनुकूल मानी जाती है। कुछ क्षेत्रों में लाल मिट्टी भी देखने को मिलती है। यहाँ की जलवायु शुष्क से अर्ध-शुष्क है, जिससे सिंचाई की आवश्यकता बढ़ जाती है। चंबल, कालीसिंध, बेटवा और माही जैसी नदियाँ इस पठारी क्षेत्र को जीवनदायिनी जल उपलब्ध कराती हैं। मालवा पठार में गेहूँ, चना, सोयाबीन और सरसों जैसी फसलें प्रमुख रूप से उगाई जाती हैं। यह क्षेत्र न केवल कृषि में समृद्ध है, बल्कि सांस्कृतिक और स्थापत्य धरोहरों के लिए भी प्रसिद्ध है। उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर और साँची का प्राचीन स्तूप इसकी सांस्कृतिक विरासत के अद्भुत उदाहरण हैं। उज्जैन, इंदौर, रतलाम, धार, मंदसौर, देवास और शाजापुर जैसे महत्त्वपूर्ण शहर मालवा पठार की पहचान को और भी सुदृढ़ बनाते हैं।
3. छोटा नागपुर पठार (Chotanagpur Plateau)

नागपुर पठार भारत के पूर्वी हिस्से में स्थित एक खनिज समृद्ध क्षेत्र है, जो मुख्यतः झारखंड राज्य में फैला हुआ है और इसके कुछ भाग ओडिशा, छत्तीसगढ़ तथा पश्चिम बंगाल तक विस्तृत हैं। यह पठार गोंडवाना युग की क्रिस्टलीय और अवसादी चट्टानों से बना है, जो इसे भूवैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है। छोटा नागपुर पठार को भारत की ‘खनिज राजधानी’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट, तांबा, यूरेनियम आदि खनिज अत्यधिक मात्रा में पाए जाते हैं, विशेषकर दामोदर घाटी क्षेत्र में। दामोदर, सुवर्णरेखा और दक्षिण कोयल जैसी नदियाँ इस पठार से प्रवाहित होती हैं, जो क्षेत्र की सिंचाई और जल आपूर्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह पठार न केवल खनिज संसाधनों के लिए, बल्कि औद्योगिक विकास के लिए भी जाना जाता है। रांची, बोकारो और जमशेदपुर जैसे प्रमुख औद्योगिक नगर इसी क्षेत्र में स्थित हैं। साथ ही, यह क्षेत्र भारत की समृद्ध आदिवासी संस्कृति और परंपराओं का भी प्रमुख केंद्र है, जो इसे सांस्कृतिक दृष्टि से भी विशिष्ट बनाता है।
4. बुंदेलखंड पठार
बुंदेलखंड पठार उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच फैला हुआ एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र है, जिसमें उत्तर प्रदेश के जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, बांदा, महोबा, चित्रकूट और मध्य प्रदेश के सागर, दमोह, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़, दतिया जैसे जिले शामिल हैं। यह पठार मुख्यतः शुष्क और पथरीला है, जहाँ ग्रेनाइट और नीस जैसी कठोर चट्टानों की प्रधानता पाई जाती है। यहाँ की जलवायु कठोर होती है और वर्षा पूरी तरह से मानसून पर निर्भर करती है, जिससे यह क्षेत्र जल संकट से बार-बार जूझता है। इसके बावजूद स्थानीय लोगों ने पारंपरिक जल संरक्षण के उपाय, जैसे ‘जौहर’ और ‘तालाब’, विकसित किए हैं, जो इस क्षेत्र की जल प्रबंधन की बुद्धिमत्ता को दर्शाते हैं। बुंदेलखंड पठार खनिज संसाधनों, विशेषकर चूना पत्थर, ग्रेनाइट और डोलोमाइट जैसे खनिजों के लिए भी जाना जाता है। हालांकि, यह क्षेत्र जल संकट, गरीबी और सामाजिक संघर्ष जैसी समस्याओं से भी प्रभावित रहा है, जिससे यह विकास और जीविका के संदर्भ में एक संवेदनशील क्षेत्र बन गया है।
5. कर्नाटक और मैसूर पठार
मैसूर पठार दक्षिण भारत का एक समृद्ध और बहुविध विशेषताओं वाला क्षेत्र है, जो मुख्यतः कर्नाटक राज्य में फैला हुआ है, हालांकि इसका विस्तार तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों तक भी होता है। यह पठार पश्चिमी घाट के निकट स्थित है, जहाँ से कावेरी, तुंगभद्रा और हेमावती जैसी प्रमुख नदियाँ निकलती हैं। यहाँ की लाल और लैटराइट मिट्टी कृषि के लिए उपयुक्त मानी जाती है, जिससे इस क्षेत्र में चाय, कॉफी, मसाले (जैसे काली मिर्च और इलायची) तथा तंबाकू की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। मैसूर पठार केवल कृषि ही नहीं, बल्कि पर्यटन के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। कुर्ग (कोडगु), चिकमंगलूर और ऊटी जैसे हिल स्टेशन इसकी प्राकृतिक सुंदरता को दर्शाते हैं। साथ ही, यह क्षेत्र आधुनिक भारत के सूचना प्रौद्योगिकी और शिक्षा के केंद्र के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि बेंगलुरु भारत की ‘आईटी कैपिटल’ इसी पठारी क्षेत्र में स्थित है।
पठारी क्षेत्रों की सामान्य विशेषताएँ

भू-गठन – पठारी क्षेत्रों का भू-गठन प्राचीन कठोर चट्टानों (आग्नेय, कायांतरित, अवसादी) से हुआ है, जिससे इन्हें स्थायित्व और विशिष्ट संरचना मिलती है।
मिट्टी – यहाँ मुख्यतः काली, लाल और लैटराइट मिट्टी पाई जाती है, जो कृषि के लिए उपयुक्त मानी जाती है, भले ही ये क्षेत्र अपेक्षाकृत सूखा-प्रधान हों।
खनिज संपदा – पठारी क्षेत्र कोयला, लौह अयस्क, मैंगनीज़, बॉक्साइट आदि खनिजों से समृद्ध हैं।
नदी तंत्र – अधिकांश नदियाँ इन्हीं क्षेत्रों से निकलती हैं और मैदानों की ओर बहती हैं। जैसे नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा, दामोदर, कावेरी, सुवर्णरेखा आदि।
सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू – पठारी क्षेत्रों में आदिवासी जनसंख्या की अधिकता है, जैसे संथाल, मुंडा, गोंड आदि, जिनकी सांस्कृतिक परंपराएँ भारत की विविधता को दर्शाती हैं।
पठारी क्षेत्रों का आर्थिक महत्त्व

खनिज संसाधन – भारत के अधिकांश खनिज पठारी क्षेत्रों से प्राप्त होते हैं।
कृषि उत्पादन – काली मिट्टी वाले क्षेत्रों में कपास जैसे नकदी फसलें उगाई जाती हैं।
जलविद्युत उत्पादन – कई नदियाँ यहाँ से निकलती हैं, जिनपर बाँध बनाकर विद्युत उत्पादन किया जाता है।
औद्योगिक विकास – खनिज और जल संसाधनों के कारण औद्योगिक नगरों का विकास हुआ है।
पर्यटन – अनेक पठारी क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विरासत से भरपूर हैं।
चुनौतियाँ और संरक्षण
हालाँकि पठारी क्षेत्र आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन इन्हें अनेक चुनौतियाँ भी झेलनी पड़ती हैं:
वनों की कटाई और खनन के कारण पर्यावरणीय असंतुलन।
जल संकट, विशेषकर बुंदेलखंड जैसे क्षेत्रों में।
आदिवासी जनजीवन पर संकट, विस्थापन और संसाधनों की लूट के कारण।
भूस्खलन और कटाव, अनियंत्रित निर्माण और खनन से।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक है कि पर्यावरण अनुकूल विकास मॉडल अपनाए जाएँ, खनन पर नियंत्रण हो, और आदिवासी समुदायों को अधिकार और संरक्षण मिले।