Bharat Ke Kile (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Indian Forts Built By Brave Women: राजाओं द्वारा निर्मित किलों व इमारतों के बारे में तो आप सब ने बहुत देखा व सुना होगा। पर भारत में तमाम ऐसे क़िले और इमारतें हैं, जिनका निर्माण या तो भारतीय वीरांगनाओं ने कराया। या फिर अपने शौर्य व बलिदान की किसी न किसी कथा से जुड़कर ये क़िले ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत के वाहक बन गये। इनका निर्माण महिलाओं की शक्ति, दूरदर्शिता और प्रशासनिक कौशल का प्रतीक है। ये किले भारतीय इतिहास (Indian History) में उन महिलाओं की भूमिका को दर्शाते हैं, जिन्होंने न केवल युद्ध लड़े, बल्कि अपने शासन और संस्कृति को भी संरक्षित किया।
झांसी का किला (Jhansi Ka Kila)
उत्तर प्रदेश में स्थित झांसी का किला (Jhansi Fort) ओरछा के राजा वीर सिंह जूदेव (Raja Vir Singh Ju Deo) ने 1613 में बनवाया था। यह बुंदेलखंड शैली की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। हालांकि, इस किले को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख केंद्र रानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmibai) ने बनाया। 1857 के विद्रोह के दौरान रानी लक्ष्मीबाई ने इसी किले से अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। यह किला झांसी की रणनीतिक स्थिति को मजबूत करने और शत्रुओं पर निगरानी रखने के लिए बनाया गया था।
झांसी का किला उस समय की राजनीतिक और सैन्य शक्ति का केंद्र था। रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और त्याग इसे भारत के सबसे ऐतिहासिक स्थलों (India’s Most Historical Place) में से एक बनाता है। आज यह किला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संग्रहालय के रूप में कार्य करता है। यहां रानी लक्ष्मीबाई की तलवार और अन्य ऐतिहासिक वस्तुएं प्रदर्शित हैं।
अडालज की वाव (Adalaj Stepwell)
गुजरात में स्थित अडालज की वाव 15वीं शताब्दी में रानी रुदाबाई (Rani Rudabai) ने बनवाई थी। यह बावड़ी जल प्रबंधन के लिए प्रसिद्ध है। इसका निर्माण इस प्रकार किया गया था कि गर्मी में भी पानी ठंडा रहता था। बावड़ी की पांच मंजिलों में नक्काशी और जालीदार खिड़कियां इसके स्थापत्य कौशल को दर्शाती हैं। अडालज की वाव न केवल जल आपूर्ति का स्रोत थी, बल्कि इसे धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में भी विकसित किया गया। आज यह बावड़ी पर्यटकों के लिए खुली है और एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है।
कांगड़ा का किला (Kangra Fort)
हिमाचल प्रदेश में स्थित कांगड़ा का किला भारत के सबसे पुराने किलों (Bharat Ke Sabse Purane Kile) में से एक है। इसका निर्माण प्राचीन त्रिगर्ता राजवंश ने करवाया था। लेकिन इसे संरक्षित और सुदृढ़ करने का कार्य मीरांदेवी (Meerandevi) जैसी रानियों ने किया। यह किला अपनी भौगोलिक स्थिति और सामरिक महत्व के लिए प्रसिद्ध था। यह किला लगातार हमलों के बावजूद अडिग रहा और कई युद्धों का गवाह बना। इसकी सुरक्षा व्यवस्था इसे अपराजेय बनाती थी। वर्तमान में यह किला खंडहर में तब्दील हो चुका है। लेकिन इसके अवशेष इसकी भव्यता की कहानी सुनाते हैं।
ग्वालियर का किला (Gwalior Ka Kila)
मध्य प्रदेश के ग्वालियर किले का निर्माण सूरज सेन (Suraj Sen) ने करवाया था। रानी मृगनयनी (Mrignayani) ने इसे और सुदृढ़ किया। यह किला ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। इसे ‘भारत का जिब्राल्टर’ भी कहा जाता है। इस किले का उपयोग एक सैन्य और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में किया गया। यहां की गुजरी महल और सास-बहू मंदिर जैसे स्मारक इसकी स्थापत्य कला को दर्शाते हैं। यह किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है और प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है।
अहमदनगर का किला (Ahmednagar Fort)
महाराष्ट्र के अहमदनगर किले (Ahmednagar Kila) का निर्माण निजाम शाही राजवंश ने किया था। लेकिन चांद बीबी (Chand Bibi) ने इसे एक अजेय दुर्ग के रूप में स्थापित किया। यह किला ब्रिटिश शासन के दौरान राजनीतिक कैदियों के लिए जेल के रूप में भी इस्तेमाल हुआ। इस किले की सुरक्षा व्यवस्था इसे अपराजेय बनाती थी। चांद बीबी ने यहां से कई युद्धों का संचालन किया और इसे निजाम शाही का प्रमुख केंद्र बनाया। किला वर्तमान में एक प्रमुख ऐतिहासिक स्थल है और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
रायगढ़ का किला (Raigad Ka Kila)
महाराष्ट्र के रायगढ़ किले (Raigad Fort) का निर्माण छत्रपति शिवाजी महाराज (Chatrapati Shivaji Maharaj) ने करवाया था। उनके बाद महारानी येसूबाई (Yesubai) ने इसका संरक्षण किया। यह किला मराठा साम्राज्य का केंद्र था। रायगढ़ किला मराठा साम्राज्य की राजधानी था। इसे सैन्य दृष्टि से अजेय बनाया गया था। यहां शिवाजी का राज्याभिषेक भी हुआ। यह किला आज भी मराठा साम्राज्य की विरासत को संजोए हुए है और पर्यटकों के लिए खुला है।
इतिमाद-उद-दौला का मकबरा (Itmad-ud-Daula Ka Makbara)
इतिमाद-उद-दौला का मकबरा, जिसे भारत का पहला संगमरमर का मकबरा माना जाता है, नूरजहां (Nur Jahan) द्वारा यमुना नदी के किनारे अपने पिता मिर्जा गयास बेग की स्मृति में बनवाया गया था। मिर्जा गयास बेग को ‘इतिमाद-उद-दौला’ की उपाधि दी गई थी। इस मकबरे में नूरजहां की मां और उनके भाई-बहनों के भी समाधि स्थल मौजूद हैं। मकबरा अपने आप में एक सुंदर बगीचे के बीच स्थित है। इसे अक्सर ‘गहनों के डिब्बे’ जैसा बताया जाता है। इसमें लाल और पीले बलुआ पत्थर पर मूंगों की जड़ाई का बारीक और अद्वितीय कार्य किया गया है।
हुमायूं का मकबरा (Humayun Ka Makbara)
हुमायूं का मकबरा, जिसे मुगल सम्राट हुमायूं की स्मृति में बनाया गया था, एक भव्य स्मारक है। इसे उनकी पहली पत्नी, महारानी बेगा बेगम (Bega Begum), ने 1569 में बनवाया था। इस शानदार संरचना के निर्माण के लिए फारसी वास्तुकार मिराक मिर्जा घियाथ को नियुक्त किया गया। मकबरा लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है और चारबाग शैली में विभाजित एक चौकोर बगीचे के बीच स्थित है। 1993 में, इस ऐतिहासिक स्मारक को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई, जो इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाता है।
विरुपाक्ष मंदिर (Virupaksha Temple)
कर्नाटक का पट्टाडकल शहर ‘भारतीय मंदिर वास्तुकला की प्रयोगशाला’ के रूप में प्रसिद्ध है, जहां उत्तर भारतीय नागर शैली और दक्षिण भारतीय द्रविड़ शैली के मंदिर वास्तुकला का अद्वितीय संगम देखा जा सकता है। विक्रमादित्य द्वितीय की रानी, रानी लोकमहादेवी ने द्रविड़ शैली में निर्मित विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर कांचीपुरम के प्रसिद्ध कैलासनाथ मंदिर से प्रेरित बताया जाता है। मूल रूप से इस परिसर में 32 मंदिर थे, जिनमें से कुछ समय के साथ नष्ट हो गए। रानी लोकमहादेवी के सम्मान में इस मंदिर को कभी-कभी लोकेश्वर मंदिर भी कहा जाता है।
मिरजान किला (Mirjan Fort)
गेरसोप्पा की रानी चेन्नाभैरदेवी (Rani Chennabhairadevi), जिन्हें पुर्तगालियों द्वारा ‘काली मिर्च की रानी’ कहा जाता था, ने मिरजान किले का निर्माण कराया। यह किला एक बंदरगाह के पास स्थित है, जो कभी मसालों के समृद्ध व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। रानी चेन्नाभैरदेवी विजयनगर साम्राज्य की प्रमुख शासिका थीं, जिन्होंने कर्नाटक और गोवा के कई क्षेत्रों पर 54 वर्षों तक शासन किया। यह किला उनका निवास स्थान था और यहां से पहाड़ों के अद्भुत दृश्य दिखाई देते हैं।
लाल दरवाजा (Lal Darwaja)
1447 में रानी बीबी राजी (Rani Bibi Raji) ने जौनपुर में लाल दरवाजा मस्जिद का निर्माण कराया, जो संत सैय्यद अली दाऊद कुतुबुद्दीन को समर्पित थी। यह मस्जिद रानी के महल के भीतर उनकी निजी उपासना स्थल थी। बीबी राजी शर्की वंश के शासक सुल्तान महमूद शर्की की रानी थीं। उनके द्वारा बनवाए गए स्मारकों में से एक मदरसा, जिसे जामिया हुसैनिया कहा जाता है, आज भी अस्तित्व में है। रानी बीबी राजी ने अपने पति के शासनकाल के दौरान क्षेत्र में लड़कियों के लिए पहला विद्यालय स्थापित कर शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मुबारक बेगम मस्जिद (Mubarak Begum Masjid)
दिल्ली के हौज काजी में स्थित मुबारक बेगम मस्जिद 19वीं सदी की एक ऐतिहासिक संरचना है, जिसे लाल बलुआ पत्थर और लखौरी ईंटों से बनाया गया है। इस मस्जिद का निर्माण मुबारक बेगम (Mubarak Begum) द्वारा कराया गया था, जो शुरुआत में मुगल दरबार की नर्तकी और वेश्या थीं। साधारण पृष्ठभूमि से आने वाली मुबारक बेगम ने बाद में दिल्ली के पहले ब्रिटिश निवासी, डेविड ऑक्टरलोनी से विवाह किया। ऑक्टरलोनी ने उनके योगदान को सम्मानित करते हुए उनके नाम पर इस मस्जिद का निर्माण करवाया।
यह मस्जिद एक गैर-शाही महिला द्वारा प्रायोजित धार्मिक संरचना का एक दुर्लभ उदाहरण है। मस्जिद में तीन गुंबदों वाला प्रार्थना कक्ष और प्रत्येक गुंबद के नीचे तीन मेहराबदार प्रवेश द्वार हैं। हालांकि, इसका ऐतिहासिक महत्व होने के बावजूद, जुलाई 2020 में भारी बारिश के कारण इसका केंद्रीय गुंबद ढह गया। दिल्ली वक्फ बोर्ड के अधीन यह मस्जिद आखिरी बार 2016 में मरम्मत के तहत आई थी।लेकिन इसे और संरक्षण की आवश्यकता है।
कुदसिया बाग (Qudsia Bagh)
दिल्ली की चहल-पहल भरी गलियों के बीच स्थित कुदसिया बाग एक भव्य उद्यान परिसर है, जो मुगल बादशाह मुहम्मद शाह की पत्नी, महारानी कुदसिया बेगम (Qudsia Begum) की सुरुचिपूर्ण शैली का प्रतीक है। इसे महारानी ने दरबारी जीवन की भागदौड़ से राहत पाने के लिए बनवाया था। बाग में सुंदर झरने, हरे-भरे लॉन और बेहतरीन मंडप हैं, जो उनकी देखरेख और संरक्षण में निर्मित किए गए थे।
कुदसिया बाग महारानी कुदसिया बेगम के प्रकृति और सौंदर्य के प्रति प्रेम का जीवंत उदाहरण है। आज यह उद्यान दिल्ली के वास्तुकला परिदृश्य में एक प्रिय स्थान है। यहां आने वाले लोग बगीचे की खूबसूरती और महारानी के बेहतरीन जीवनशैली की झलक से प्रभावित हो सकते हैं।
महारानी मंदिर (Maharani Mandir)
गुलमर्ग की सुरम्य कश्मीर घाटी में स्थित महारानी मंदिर का निर्माण 1915 में महारानी मोहिनी बाई सिसोदिया (Maharani Mohini Bai Sisodia) ने करवाया था। डोगरा राजवंश के राजा हरि सिंह की पत्नी, महारानी मोहिनी बाई की स्थापत्य कला और सुंदरता की झलक इस शांत और पवित्र स्थल में देखी जा सकती है। यह मंदिर अपनी भव्यता और सौंदर्य के कारण आज भी दर्शकों को आकर्षित करता है।
मोती मस्जिद (Moti Masjid)
मध्य प्रदेश के भोपाल की दूसरी बेगम, सिकंदर बेगम ने 1860 में इस अद्वितीय मस्जिद का निर्माण किया, जो उनकी स्थापत्य कला और परिष्कृत रुचि का प्रतीक है। यह मस्जिद न केवल उनके द्वारा किए गए स्थापत्य योगदान को दर्शाती है, बल्कि क्षेत्र में उनके स्थायी प्रभाव का भी प्रतीक बनी हुई है।
फतेहपुरी मस्जिद (Fatehpuri Masjid)
शाहजहां की प्रिय पत्नी, फतेहपुरी बेगम (Fatehpuri Beghum) ने 1650 में इस भव्य मस्जिद का निर्माण किया। इसके स्थापत्य की भव्यता आज भी आगंतुकों को आकर्षित करती है और यह उनकी कला और सौंदर्य की अनूठी पहचान के रूप में सम्मानित है।
इन किलों का निर्माण महिलाओं की शक्ति, दूरदर्शिता और प्रशासनिक कौशल का प्रतीक है। ये किले भारतीय इतिहास में उन महिलाओं की भूमिका को दर्शाते हैं, जिन्होंने न केवल युद्ध लड़े, बल्कि अपने शासन और संस्कृति को भी संरक्षित किया। ये किले आज भारतीय पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण केंद्र हैं और हमारी सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध बनाते हैं।