
Mahamana Malviya
महामना मालवीय: भारत की धरती पर कई ऐसी हस्तियों ने जन्म लिया है, जो केवल अपने युग के नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा बन गई हैं। पंडित मदन मोहन मालवीय उन्हीं महामानवों में से एक थे। जिनकी सोच ने शिक्षा को केवल ज्ञान नहीं, बल्कि राष्ट्रसेवा का माध्यम बना दिया। भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय केवल एक शिक्षाविद या स्वतंत्रता सेनानी नहीं थे, वे उस विचारधारा के प्रतीक थे, जिसने शिक्षा को राष्ट्रनिर्माण और धर्म को जीवनमूल्य से जोड़ा। उन्होंने 1916 में जिस बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की स्थापना की, वह केवल एक शैक्षणिक संस्थान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक तीर्थ है। जिसके निर्माण के लिए चंदे की शुरुआत कुंभ मेले में मिले एक सिक्के से हुई थी। वहीं इस विश्वविद्यालय के हृदय में स्थित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर उस भावना का प्रतीक है। जिसमें उन्होंने आधुनिक शिक्षा और सनातन परंपरा के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया।
उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर आइए जानते हैं महामना के बारे में, जिन्होंने एक ऐसे विश्वविद्यालय की नींव रखी जो केवल पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि शिक्षा के गढ़ का उत्कृष्ट मिसाल बन चुका है –
अपनी स्थापना के साथ शिक्षा और संस्कृति का संगम बना BHU
1904 में पंडित मदन मोहन मालवीय ने भारत में एक ऐसे विश्वविद्यालय की परिकल्पना की, जो भारतीय परंपराओं, संस्कृति और आधुनिक विज्ञान का संगम बने। इस विचार को उन्होंने साकार रूप दिया और बसंत पंचमी के दिन, 4 फरवरी 1916 को काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) की स्थापना की।
यह कार्य इतना आसान नहीं था। देश की गुलामी के दौर में इतने विशाल विश्वविद्यालय की कल्पना करना ही अपने आप में एक क्रांति थी। मालवीय जी ने इसके लिए चंदा इकट्ठा करने हेतु पूरे भारत का भ्रमण किया। कहा जाता है, इलाहाबाद के कुंभ मेले में एक वृद्ध व्यक्ति ने उन्हें इस महान कार्य के लिए एक पैसा दान किया और यही इस अभियान का पहला चंदा था। विश्वविद्यालय की स्थापना में डॉ. एनी बेसेंट, दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह और काशी नरेश प्रभु नारायण सिंह जैसे अनेक लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। रामनगर के महाराजा प्रभु नारायण सिंह ने भूमि दान की और बसंत पंचमी के शुभ दिन इसका शिलान्यास हुआ।
बना एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय
आज BHU न केवल भारत का बल्कि एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है। 1300 एकड़ में फैला यह संस्थान चार प्रमुख संस्थानों, 16 संकायों और 130 से अधिक विभागों का घर है। यहां विज्ञान, प्रौद्योगिकी, आयुर्विज्ञान, कृषि विज्ञान, कला, संगीत, संस्कृति और धर्म अध्ययन सबका समावेश है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय का हर भवन, हर प्रांगण मालवीय जी के राष्ट्रप्रेम, शिक्षा के प्रति समर्पण और भारतीय संस्कृति के प्रति उनकी निष्ठा की गवाही देता है। यहीं से उन्होंने शिक्षा को आत्मनिर्भर भारत का माध्यम बताया था। उनका कहना था कि, ‘हमारे विद्यालय ऐसे हों, जहां विद्यार्थी विद्या के साथ संस्कार भी ग्रहण करें।’
काशी विश्वनाथ मंदिर- विश्वविद्यालय के भीतर एक आध्यात्मिक केंद्र
बीएचयू परिसर में स्थित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर महामना मालवीय के उस अद्वितीय दृष्टिकोण का परिणाम है, जिसमें उन्होंने धर्म और शिक्षा को एक-दूसरे का पूरक माना। मालवीय जी का मानना था कि जब तक शिक्षा आस्था और नैतिकता से जुड़ी नहीं होगी, तब तक उसका उद्देश्य अधूरा रहेगा।
इसलिए उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर में भगवान शिव के मंदिर की स्थापना का निर्णय लिया। यह वही नया काशी विश्वनाथ मंदिर है, जिसे आज BHU परिसर में ‘विश्वनाथ मंदिर (न्यू टेंपल)’ के नाम से जाना जाता है।
मंदिर का निर्माण और विशेषताएं
मालवीय जी ने मंदिर के निर्माण की योजना 1930 के दशक में बनाई थी। हालांकि वे इसका सम्पूर्ण निर्माण पूरा होते नहीं देख पाए। 12 नवंबर 1946 को उनका निधन हो गया। मंदिर का निर्माण कार्य बाद में बिड़ला परिवार के सहयोग से पूरा हुआ, इसलिए इसे बिड़ला मंदिर भी कहा जाता है।
यह मंदिर गुलाबी संगमरमर से निर्मित है और इसकी स्थापत्य शैली पारंपरिक नागर शैली की है। इसमें सात अलग-अलग मंदिर हैं। मुख्य गर्भगृह में भगवान विश्वनाथ (शिव) की मूर्ति स्थापित है, जबकि अन्य मंदिरों में पार्वती, गणेश, हनुमान, कार्तिकेय, नंदी और देवी अन्नपूर्णा की प्रतिमाएं हैं।
मंदिर का शिखर 252 फीट ऊंचा है और इसके दीवारों पर गीता, उपनिषद और अन्य वैदिक ग्रंथों के श्लोक अंकित हैं। यह एक ऐसा मंदिर है जहां छात्र, शिक्षक और आगंतुक सभी केवल पूजा नहीं, बल्कि भारतीय दर्शन की गहराई को भी अनुभव करते हैं।
धर्म और शिक्षा का संतुलन था महामना का दृष्टिकोण
महामना मालवीय जी का उद्देश्य केवल एक विश्वविद्यालय बनाना नहीं था, बल्कि एक ऐसे आदर्श शिक्षण केंद्र की स्थापना करना था, जहां छात्र केवल पढ़ाई न करें, बल्कि चरित्र, आस्था और देशभक्ति से ओतप्रोत हों। उन्होंने कहा था कि, ‘धर्म का अर्थ केवल पूजा नहीं, बल्कि वह आचरण है जो मानव को श्रेष्ठ बनाता है।’
इस दृष्टिकोण से काशी हिंदू विश्वविद्यालय और काशी विश्वनाथ मंदिर एक-दूसरे के पूरक हैं। मंदिर छात्रों को अध्यात्म का संदेश देता है, तो विश्वविद्यालय उन्हें आधुनिक ज्ञान से परिचित कराता है।
यहां मालवीय जी की स्मृतियां आज भी हैं जीवंत
BHU परिसर में स्थित मालवीय भवन आज भी महामना की उपस्थिति का आभास कराता है। उनके रहने का कमरा, गीता पाठ का स्थल, उनकी खड़ाऊं, पोशाक, पत्र और भारत रत्न की प्रतिकृति वहां संरक्षित हैं। इसके अतिरिक्त भारत कला भवन संग्रहालय में उनके निजी दस्तावेज, पत्र और दुर्लभ तस्वीरें आज भी उनके आदर्शों की झलक दिखाती हैं। महामना मालवीय का जीवन राष्ट्र सेवा, शिक्षा और नैतिकता का प्रतीक है। उन्होंने दिखाया कि ज्ञान केवल परीक्षा पास करने का साधन नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने का माध्यम है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय और उसमें स्थित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर दोनों मिलकर इस बात का प्रमाण हैं कि जब आस्था और शिक्षा का संगम होता है, तब एक राष्ट्र की नींव सशक्त होती है।


