
Bihar Elections 2025: चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर (पीके) बिहार की राजनीति में नया अध्याय लिख सकते हैं। उनकी पार्टी जनसुराज बिहार राज्य के दोनों प्रमुख महागठबंधन (INDIA) और एनडीए (NDA) दोनों के लिए चिंता का सबब बन गई है। पीके खुद को तीसरा विकल्प बताकर बिहार की जनता के सामने नई उम्मीद पेश कर रहे हैं, उससे सत्ता के पारंपरिक दावेदारों के वोट बैंक में सेंध लगती दिख रही है। जो महागठबंधन और एनडीए के लिए बड़ी खतरे की घंटी है।
जन सुराज का नुकसान मॉडल
जन सुराज की रणनीति बिहार की राजनीति के स्थापित समीकरणों को चुनौती दे रही है। पीके अपने अभियान में भ्रष्टाचार, पलायन, और जातिगत राजनीति से ऊपर उठकर शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसे मूलभूत मुद्दों को उठा रहे हैं। प्रशांत किशोर लगातार एनडीए और महागठबंधन दोनों पर भ्रष्टाचार के मुद्दों को लेकर हमलावर हैं। उनका अनुसार दोनों गठबंधनों के 30 साल के शासन ने बिहार को बदहाली में धकेल दिया है। इस सीधी आलोचना से स्वच्छ छवि वाले और पढ़े-लिखे मतदाताओं को आकर्षित करने में मदद मिल रही है जो पारंपरिक पार्टियों से निराश हैं।
जातीय समीकरणों का ध्यान
जन सुराज ने उम्मीदवारों के चयन में जातीय समीकरणों का ध्यान रखा है, लेकिन उनका फोकस जाति से ऊपर उठकर अच्छे उम्मीदवारों को टिकट देने पर रहा है। उन्होंने अति-पिछड़ा वर्ग (EBC) और ओबीसी (OBC) को सर्वाधिक तवज्जो दी है, जो परंपरागत रूप से किसी एक गठबंधन का मजबूत वोट बैंक माना जाता है। इसके अलावा, मुस्लिम और यादव जैसे महागठबंधन के कोर वोट बैंक में भी मजबूत उम्मीदवारों को उतारकर पार्टी उनकी चिंता बढ़ा रही है। पलायन को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाकर पीके प्रवासी बिहारी वोटरों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रहे हैं।
युवा रोजगार न मिलने से हताश
बिहार राज्य में रोजगार न मिलने से हताश हैं। उन्होंने एक साल में पलायन रोकने का वादा किया है, जिससे एनडीए को मिलने वाले प्रवासी वोटों में कटौती हो सकती है। पीके अपने भाषणों में जनता को याद दिला रहे है। उन्हें भाजपा के डर से लालू (महागठबंधन) को या लालू के डर से नीतीश-भाजपा (एनडीए) को वोट देने की राजनीतिक बंधुआ मजदूरी करने की जरूरत नहीं है। जन सुराज एक सशक्त और साफ-सुथरा विकल्प पेश कर रहा है, जो मतदाताओं को डर की राजनीति से बाहर निकलने का मौका दे रहा है। प्रशांत किशोर के दावा अनुसार कि उनका मुकाबला केवल एनडीए और जन सुराज के बीच है महागठबंधन को ठगबंधन बताते हैं।
दोनों को गठबंधन को नुकसान
सर्वे के मुताबिक बड़ी संख्या में लोगों का मानना है कि जन सुराज एनडीए और महागठबंधन दोनों को बराबर नुकसान पहुंचा सकती है। हालांकि जन सुराज के लिए बड़ी चुनौती साबित करना है कि वह सिर्फ गेम चेंजर नहीं बल्कि विनर है। पीके का दावा अनुसार उनकी पार्टी या तो 10 से कम या 150 से अधिक सीटें जीतेगी, बीच का कोई रास्ता नहीं है। अगर वह महत्वपूर्ण सीटें जीतकर या बड़े गठबंधनों को बहुमत से रोककर खुद को किंगमेकर की भूमिका में स्थापित करने में सफल होते हैं, तो वह निश्चित रूप से बिहार की राजनीति के नए बाजीगर कहलाएंगे। प्रशांत किशोर की साफ-सुथरी राजनीति और मूलभूत मुद्दों पर आधारित अपील, बिहार के निराश वोटरों के बीच पैठ बना रही है, जो महागठबंधन और एनडीए के लिए खतरे की घंटी है।


