
Caste Politics in Uttar Pradesh (Image Credit-Social Media)
Caste Politics in Uttar Pradesh (Image Credit-Social Media)
Caste Politics in Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश, जिसे भारतीय राजनीति की प्रयोगशाला कहा जाता है, हमेशा से सत्ता के समीकरणों का केंद्र रहा है। यह राज्य न केवल देश की संसद में सबसे अधिक प्रतिनिधित्व देता है, बल्कि दिल्ली की सत्ता तक पहुँचने का रास्ता भी यहीं से होकर जाता है। यहाँ की राजनीति को समझना केवल जनसंख्या के आँकड़े गिनने भर से संभव नहीं है; इसके लिए जातीय संरचना, स्थानीय नेतृत्व, संगठनात्मक मजबूती, मतदाता व्यवहार और बूथ‑स्तर की रणनीतियों की गहरी समझ ज़रूरी है। उत्तर प्रदेश की राजनीति जातियों के गणित से शुरू होकर संवाद और प्रतिनिधित्व के संतुलन पर आकर टिकती है।
उत्तर प्रदेश की सामाजिक और जातीय संरचना
उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में लगभग 50% हिस्सा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का है। लेकिन यह वर्ग अपने भीतर अत्यंत विविध है। यादव, कुर्मी, मौर्य, शाक्य, लोध, राजभर, निषाद, कश्यप आदि जातियाँ इसमें प्रमुख हैं। इन सभी की जनसंख्या और प्रभाव अलग‑अलग है।
• यादव लगभग 6% हैं, लेकिन संगठन, राजनीतिक चेतना और नेतृत्व क्षमता के कारण उनका प्रभाव पूरे राज्य में है। यही कारण है कि समाजवादी पार्टी (सपा) का पारंपरिक आधार यादव रहे हैं।
• कुर्मी, मौर्य, शाक्य, लोध जैसी जातियाँ मिलकर पूर्वांचल और मध्य उत्तर प्रदेश में स्थानीय निर्णायक भूमिका निभाती हैं।
• निषाद, राजभर, मल्लाह, कश्यप जैसी छोटी OBC जातियाँ संख्या में भले कम हों, पर पूर्वांचल के कई जिलों में ये चुनावी परिणाम तय करने की क्षमता रखती हैं।
इसी आधार पर भाजपा ने पिछले वर्षों में निषाद पार्टी और सुभासपा जैसे क्षेत्रीय सहयोगियों को साथ जोड़ा, जिससे इन गैर‑यादव OBC समूहों को सत्ता और संगठन में हिस्सेदारी दी जा सके। दूसरी तरफ, अखिलेश यादव ने PDA (पिछड़ा‑दलित‑अल्पसंख्यक) का नारा देकर इस सामाजिक आधार को व्यापक करने का प्रयास किया, ताकि समाजवादी पार्टी को केवल यादवों की पार्टी मानने की छवि बदली जा सके।
सवर्ण समुदाय और उनका राजनीतिक झुकाव
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण लगभग 12% हैं। यह वर्ग पारंपरिक रूप से सत्ता के साथ रहता है।
• 1990 के बाद ब्राह्मणों का रुझान भाजपा की ओर अधिक रहा।
• लेकिन जब भी भाजपा ने उनकी उपेक्षा की या संगठन और सत्ता में उनकी हिस्सेदारी कम दिखी, तब इस वर्ग ने असंतोष जताया।
• 2007 में मायावती ने ब्राह्मण‑दलित गठबंधन के सहारे सत्ता प्राप्त की, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि यह वर्ग सम्मान और प्रतिनिधित्व की तलाश में रहता है।
ठाकुर/राजपूत लगभग 6% हैं। योगी आदित्यनाथ जैसे प्रभावशाली नेता के कारण यह वर्ग भाजपा में सबसे सशक्त स्थिति में है। लेकिन ठाकुर नेतृत्व के वर्चस्व ने अन्य जातियों में असहजता भी पैदा की है, जो भाजपा के लिए भविष्य में चुनौती हो सकती है।
दलित और बहुजन समाज
उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी लगभग 21% है, जिसमें जाटव, पासी, कोरी, धोबी, वाल्मीकि जैसी कई उपजातियाँ शामिल हैं।
• जाटव बहुजन समाज पार्टी (BSP) का सबसे मज़बूत आधार रहे हैं।
• पिछले वर्षों में गैर‑जाटव दलितों का रुझान भाजपा की ओर बढ़ा, क्योंकि भाजपा ने उन्हें संगठन और सरकार में जगह दी।
• समाजवादी पार्टी ने भी PDA के तहत दलितों को जोड़ने का प्रयास किया, लेकिन जाटव नेतृत्व की अस्मिता और स्वाभिमान की राजनीति अभी भी BSP से जुड़ी है।
मुस्लिम मतदाता और टैक्टिकल वोटिंग
उत्तर प्रदेश का मुस्लिम समुदाय लगभग 19% है। यह समुदाय लंबे समय तक कांग्रेस के साथ रहा, फिर समाजवादी पार्टी की ओर झुका।
• अब मुस्लिम मतदाता टैक्टिकल वोटिंग करते हैं — यानी वे उस पार्टी को समर्थन देते हैं, जो भाजपा को हराने की स्थिति में दिखती है।
• यही कारण है कि ओवैसी जैसी पार्टियों का प्रवेश सपा की रणनीति को असहज करता है, क्योंकि इससे मुस्लिम वोट विभाजित होने की संभावना रहती है।
शहरी और उच्च आर्थिक वर्ग
शहरी सीटों पर कायस्थ, बनिया, पंजाबी, भूमिहार जैसी जातियाँ निर्णायक होती हैं। ये जातियाँ अक्सर विकास, आर्थिक नीतियों और कानून‑व्यवस्था के मुद्दों को प्राथमिकता देती हैं।
• भाजपा ने अपने शहरी एजेंडे और स्थिर शासन के वादे के कारण इस वर्ग में मज़बूत पकड़ बनाई।
• कांग्रेस और आम आदमी पार्टी कुछ सीटों पर तभी प्रभाव डाल पाती हैं, जब मुद्दा स्थानीय भ्रष्टाचार या आर्थिक असमानता पर केंद्रित हो।
क्षेत्रीय और ज़िला‑स्तरीय समीकरण
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण ज़िला‑स्तर पर भिन्न होते हैं —
1. पूर्वांचल (गोरखपुर, वाराणसी, मऊ) में निषाद, राजभर, मल्लाह जैसी जातियाँ निर्णायक हैं। भाजपा ने इन्हें सहयोगी दलों और संगठनात्मक हिस्सेदारी देकर जोड़ा।
2. मध्य यूपी (लखनऊ, कानपुर, बुंदेलखंड) में लोध, ब्राह्मण, ठाकुर प्रभावशाली हैं। शहरी वोटर आर्थिक मुद्दों और विकास पर वोट करता है।
3. पश्चिम यूपी (मेरठ, आगरा) में जाट निर्णायक हैं। किसान आंदोलनों के बाद भाजपा ने इस वर्ग के साथ पुनः संवाद स्थापित कर संगठन में हिस्सेदारी दी।
संगठन और बूथ‑स्तरीय रणनीति
भाजपा ने बूथ-स्तरीय नेटवर्क को जातीय विविधता के अनुरूप मज़बूत किया है — ब्राह्मण, ठाकुर, OBC और दलित, हर वर्ग में स्थायी कार्यकर्ता तंत्र।
सपा का PDA मॉडल बूथ‑स्तर पर मुख्यतः यादव‑मुस्लिम पर केंद्रित रहा, जबकि गैर‑यादव OBC और गैर‑जाटव दलितों तक इसका प्रभाव सीमित रहा।
BSP का संगठन जाटव बहुल इलाकों तक सीमित रह गया है।
हाल के चुनावी रुझान
• 2014 लोकसभा: भाजपा ने जाति‑पार गठबंधन बनाकर ऐतिहासिक जीत दर्ज की।
• 2017 विधानसभा: भाजपा ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ के तहत न्यून जातियों को जोड़कर बहुमत पाया।
• 2019 लोकसभा: SP‑BSP गठबंधन के बावजूद भाजपा ने गैर‑यादव OBC और शहरी वोटरों से बढ़त बनाई।
• 2022 विधानसभा: PDA मॉडल उभरा, लेकिन गैर‑यादव OBC और शहरी ब्राह्मण वोट भाजपा के साथ रहे।
• 2024 लोकसभा: PDA ने कुछ जिलों में असर दिखाया, पर निर्णायक सफलता नहीं मिली।
2027 की राजनीति : संवाद और समावेशन
उत्तर प्रदेश की राजनीति अब केवल जातीय गणना पर नहीं टिकेगी। 2027 के चुनाव में वही दल विजयी होगा —
1. जो जातियों के बीच संवाद और समावेशन की राजनीति करेगा।
2. जो केवल पहचान आधारित राजनीति नहीं, बल्कि प्रतिनिधित्व और जिम्मेदारी देगा।
3. जो शहरी‑ग्रामीण, बहुसंख्यक‑अल्पसंख्यक और बड़े‑छोटे OBC समूहों के बीच विश्वास का सेतु बनाएगा।
भविष्य की राजनीति का मूल मंत्र यही होगा —
“सिर्फ़ तुम कितने हो नहीं, बल्कि तुमने हमारे लिए क्या किया है।”