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    Home » Chambal River History: विलुप्ति की कगार से जीवन की ओर, जानिए चंबल के घड़ियाल के बारे में
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    Chambal River History: विलुप्ति की कगार से जीवन की ओर, जानिए चंबल के घड़ियाल के बारे में

    Janta YojanaBy Janta YojanaMay 14, 2025No Comments8 Mins Read
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    Chambal Gharial History and Facts

    Chambal Gharial History and Facts

    Chambal Gharial History and Facts: भारत की नदियों में अनेक अद्भुत और दुर्लभ जीव पाए जाते हैं, जिनमें से एक है – “घड़ियाल”। यह जीव अपनी लंबी, संकरी थूथन और शांत स्वभाव के लिए जाना जाता है। एक समय था जब भारत की प्रमुख नदियों में घड़ियाल बड़ी संख्या में दिखाई देते थे, लेकिन आज यह जीव विलुप्ति की कगार पर खड़ा है। चंबल नदी, जो उत्तर भारत की सबसे कम प्रदूषित और प्राकृतिक नदियों में गिनी जाती है, घड़ियालों का आखिरी मजबूत गढ़ बन चुकी है।

    यह लेख चंबल के घड़ियालों के इतिहास, जीवनशैली, संकट और संरक्षण की दिलचस्प और सूचनात्मक यात्रा है।

    एक विचित्र मगरमच्छ, घड़ियाल

    घड़ियाल (Gharial), जिसका वैज्ञानिक नाम गैवियालिस गैंगेटिकस(Gavialis gangeticus) है, भारतीय उपमहाद्वीप की नदियों में पाई जाने वाली मगरमच्छ की एक विशिष्ट और संकटग्रस्त प्रजाति है। इसकी सबसे पहचान योग्य विशेषता है इसकी लंबी, पतली और संकरी थूथन, जिसमें 100 से अधिक नुकीले, इंटरलॉकिंग दांत होते हैं। यह थूथन विशेष रूप से मछलियाँ पकड़ने के लिए अनुकूलित होती है, जो इसके आहार का मुख्य हिस्सा हैं। वयस्क घड़ियाल लगभग पूरी तरह से मछलियाँ खाते हैं, जबकि छोटे घड़ियाल कीड़े, मेंढक और अन्य छोटे जलजीव भी खा लेते हैं। शांत स्वभाव का यह जीव आमतौर पर इंसानों के लिए खतरा नहीं होता और अक्सर समूहों में धूप सेंकते देखा जा सकता है। नर घड़ियाल की थूथन के सिरे पर प्रजनन काल के दौरान एक ‘घड़ा’ जैसी आकृति विकसित होती है, जिसे ‘घरा’ कहा जाता है। यह विशेष संरचना मादा को आकर्षित करने, आवाजें निकालने और बुलबुले बनाने में सहायक होती है। इसी ‘घड़ा’ की आकृति से इसका नाम ‘घड़ियाल’ पड़ा, जो इसे मगरमच्छों की दुनिया में एक अनोखी पहचान देता है।

    चंबल नदी: घड़ियालों की आखिरी शरणस्थली

    चंबल नदी मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से बहती है और यह भारत की सबसे स्वच्छ और निर्जन नदियों में से एक मानी जाती है। यह नदी बीहड़ों के बीच से गुजरती है, जहाँ मानवीय दखल अपेक्षाकृत कम है। इसी कारण यह नदी जैव विविधता के लिए स्वर्ग जैसी है।

    यहाँ पर 1979 में स्थापित “राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य” (National Chambal Gharial Sanctuary) घड़ियालों, डाल्फिन, कछुओं और अन्य जलजीवों के संरक्षण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

    संरक्षण की शुरुआत, चंबल सेंचुरी की स्थापना

    1970 के दशक तक घड़ियालों की संख्या भयावह रूप से घट चुकी थी। जल प्रदूषण, शिकार, नदी से रेत निकालने और अंडों की तस्करी के कारण यह प्रजाति संकट में पड़ गई थी। इस संकट को देखते हुए सरकार ने 1979 में राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य (National Chambal Sanctuary) की स्थापना की।

    यह अभयारण्य तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में फैला है और इसका क्षेत्रफल लगभग 5,400 वर्ग किलोमीटर है। यहां घड़ियालों को सुरक्षित और अनुकूल वातावरण मिलता है जिसमें वे प्रजनन कर सकते हैं और पनप सकते हैं। यह भारत का एकमात्र संरक्षित क्षेत्र है जो विशेष रूप से घड़ियालों के लिए बनाया गया है।

    घड़ियालों की जीवनशैली

    घड़ियाल पानी में रहने वाला जीव है और विशेष रूप से गहरे बहते पानी और रेतीले तटों को पसंद करता है। नर और मादा दोनों धूप सेंकने के लिए किनारों पर आते हैं। मादा घड़ियाल दिसंबर से फरवरी के बीच अंडे देती है और फिर रेत में उन्हें सुरक्षित करती है।

    घड़ियालों का जीवन लगभग 40 से 60 वर्षों का होता है। युवा घड़ियाल मछलियों के अलावा कीड़ों और छोटे जलीय जीवों को भी खाते हैं। उनकी लंबी थूथन उन्हें तेज गति से मछलियाँ पकड़ने में मदद करती है।

    संकट में घिरा अस्तित्व

    20वीं सदी के मध्य तक भारत की नदियों में हजारों की संख्या में पाए जाने वाले घड़ियाल, 1970 के दशक तक केवल सैकड़ों में सिमट गए। वर्ष 1946 में इनकी संख्या लगभग 5,000 से 10,000 के बीच मानी जाती थी, लेकिन लगातार मानवीय हस्तक्षेप और पर्यावरणीय संकटों ने इस प्रजाति को विलुप्ति की कगार पर पहुँचा दिया। घड़ियाल केवल स्वच्छ, बहती और गहरी नदियों में जीवित रह सकते हैं, लेकिन बढ़ते औद्योगिक और घरेलू प्रदूषण ने उनके प्राकृतिक आवास को गंभीर नुकसान पहुँचाया है। इसके अतिरिक्त, अवैध रेत खनन से नदी किनारे अंडे देने वाले उनके स्थलों का विनाश हो रहा है, जिससे उनका प्रजनन प्रभावित होता है। मछुआरों द्वारा इस्तेमाल किए गए जाल और छोड़े गए ‘घोस्ट नेट्स’ में अक्सर छोटे घड़ियाल फँसकर मारे जाते हैं, जो उनके लिए आज भी एक बड़ा खतरा बने हुए हैं। साथ ही, बांधों और जल परियोजनाओं से न केवल नदी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होता है, बल्कि अंडों के बहने और घोंसलों के डूबने जैसी घटनाएँ भी आम हो गई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में घड़ियालों को खतरनाक मगरमच्छ समझने की गलतफहमी और उससे उपजा भय भी इनकी हत्या का कारण बनता है। इस प्रकार, वैज्ञानिक तथ्यों के अभाव और मिथकों ने भी इस प्रजाति के संरक्षण को चुनौतीपूर्ण बना दिया है।

    संरक्षण की कोशिशें

    1970 के दशक में घड़ियालों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई, जिससे चिंतित होकर भारत सरकार ने 1975 के आसपास घड़ियाल संरक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसे गंभीर संकट का संकेत मानते हुए IUCN (International Union for Conservation of Nature) ने घड़ियाल को ‘Critically Endangered’ यानी अति संकटग्रस्त श्रेणी में सूचीबद्ध किया है। इसके संरक्षण के लिए 1979 में राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य की स्थापना की गई, जो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में फैला हुआ है। यह अभयारण्य लगभग 5,400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है, जबकि इसके भीतर चंबल नदी की लंबाई करीब 425 से 435 किलोमीटर तक है। यहां घड़ियालों के अंडों को एकत्र कर संरक्षित स्थानों पर रखा जाता है, और चूजों को कृत्रिम वातावरण में बड़ा कर नदी में छोड़ा जाता है। इसके साथ ही स्थानीय ग्रामीणों में जागरूकता फैलाने हेतु शिक्षा अभियान भी चलाए जाते हैं। इस अभयारण्य का मुख्य उद्देश्य घड़ियालों के साथ-साथ गंगा डॉल्फिन और लाल मुकुट वाले कछुए जैसे संकटग्रस्त जीवों का संरक्षण करना है। वैज्ञानिक अध्ययन के क्षेत्र में देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII), जिसकी स्थापना 1982 में हुई थी, प्रमुख भूमिका निभाता है। यह संस्थान घड़ियालों के व्यवहार, प्रजनन, खानपान और प्रवास पर वैज्ञानिक शोध कर महत्वपूर्ण आंकड़े एकत्र करता है, जो इनके संरक्षण की दिशा में सहायक सिद्ध होते हैं।

    वैज्ञानिक अध्ययन

    घड़ियाल संरक्षण में वैज्ञानिक अनुसंधान की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) और अन्य अनुसंधान संस्थान घड़ियालों पर नियमित अध्ययन करते हैं। इन अध्ययनों के माध्यम से उनके व्यवहार, प्रजनन, खानपान और प्रवास से संबंधित बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। WII ने विशेष रूप से चंबल नदी सहित कई नदियों में घड़ियालों की आबादी, उनके प्रजनन स्थल, पारिस्थितिकी तंत्र और उन पर पड़ने वाले मानवजनित दबावों का गहन अध्ययन किया है। इसके अलावा, संस्थान के शोधकर्ता घड़ियालों के घोंसलों की स्थिति, अंडों की सुरक्षा, चूजों की वृद्धि, नदी प्रवाह में परिवर्तन और जलवायु प्रभावों का भी विश्लेषण करते हैं। इन वैज्ञानिक प्रयासों से न केवल संरक्षण नीतियों को दिशा मिलती है, बल्कि संकटग्रस्त प्रजातियों की दीर्घकालिक सुरक्षा के लिए ठोस आधार भी तैयार होता है। WII के साथ-साथ कई अन्य संस्थान और विशेषज्ञ भी घड़ियालों पर अनुसंधान में सक्रिय रूप से योगदान दे रहे हैं।

    चंबल के घड़ियालों की वर्तमान स्थिति

    चंबल नदी में घड़ियालों की आबादी संरक्षण प्रयासों के चलते निरंतर बढ़ रही है और आज यह संख्या लगभग 2,481 तक पहुंच चुकी है (2025 के आंकड़ों के अनुसार)। यह विश्व की सबसे बड़ी घड़ियाल आबादी मानी जाती है। 2007-08 में इसी नदी में रहस्यमयी परिस्थितियों में लगभग 110–125 घड़ियालों की मृत्यु ने व्यापक चिंता पैदा की थी, जिसके बाद संरक्षण की दिशा में कई बड़े कदम उठाए गए। इन प्रयासों का सकारात्मक प्रभाव मादा घड़ियालों की संख्या और प्रजनन दर पर स्पष्ट रूप से देखा गया है। 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, चंबल में 18 स्थानों पर 1,924 अंडे दिए गए थे, जिनमें से 1,225 शिशु (हैच्लिंग्स) सफलतापूर्वक नदी में छोड़े गए। इस सफलता में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जागरूकता अभियानों और सहयोग की वजह से अब अवैध रेत खनन और शिकार जैसी गतिविधियों में उल्लेखनीय कमी आई है, जिससे घड़ियालों के प्राकृतिक आवास को सुरक्षा मिली है।

    मानवीय जिम्मेदारी

    घड़ियाल केवल एक जीव नहीं, बल्कि हमारी जैविक विरासत का हिस्सा हैं। वे हमारी नदियों के स्वास्थ्य के संकेतक हैं। यदि घड़ियाल स्वस्थ हैं, तो इसका अर्थ है कि नदी स्वच्छ और संतुलित है।

    हमें समझना होगा कि यह धरती केवल मनुष्यों की नहीं, बल्कि इन बेजुबान प्राणियों की भी है। यदि हमने इनके लिए जगह नहीं छोड़ी, तो एक दिन हमारा भी अस्तित्व संकट में होगा।

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