Hemant soren and Champai Soren (Pic:Social Media)
Champai Soren:�झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं। काफी लंबे समय से झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ रहने वाले 67 वर्षीय चंपई पार्टी प्रमुख शिबू सोरेन और उनके बेटे हेमंत सोरेन दोनों के काफी विश्वसनीय रहे हैं। लेकिन अब उन्होंने भाजपा में शमिल होने का फैसला लेकर झामुमो के साथ इन दोनों को भी तगड़ा झटका दे दिया है। चंपई सोरेन ने सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात की। उसके बाद उनके भाजपा में शामिल होने की बात पक्की हो गई।
और पार्टी छोड़ने का अब कारण भी बनी
पूर्व सीएम चंपई सोरेन 30 अगस्त को रांची में आधिकारिक तौर पर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होंगे। असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने अपने आधिकारिक एक्स अकाउंट पर एक पोस्ट के जरिए इसकी जानकारी दी है। चंपई के भाजपा में शामिल होने से झामुमो को तो झटका लगेगा ही साथ ही इंडिया गठबंधन को भी इससे नुकसान पहुंचना तय माना जा रहा है।
हेमंत सोरेन के मंत्रिमंडल में वे परिवहन और खाद्य व आपूर्ति विभाग का काम देख रहे थे। हेमंत के जेल जाने के बाद चंपई सोरेन को पार्टी ने राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था। लेकिन हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आते ही उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी और यही चंपई के नाराजगी और पार्टी छोड़ने का अब कारण भी बनी।
शिबू सोरेन के करीबी रहे हैं
चंपई सोरेन झारखंड राज्य गठन के आंदोलन में शिबू सोरेन के निकट सहयोगी रहे हैं। चंपई झारखंड विधानसभा में सरायकेला सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे इस सीट से सात बार विधायक चुने गए हैं।�
11 नवंबर 1956 को जन्मे चंपई सोरेन ने दसवीं तक की ही पढ़ाई की है। वे राज्य के सरायकेला खरसांवा जिले के गम्हरिया प्रखंड के जिलिंगगोड़ा गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता सेमल सोरेन किसान थे। 2020 में 101 साल की उम्र में उनका निधन हुआ था। चंपई सोरेन अपने माता-पिता की छह संतानों में तीसरे नंबर पर हैं। उनकी मां माधो सोरेन गृहिणी थीं।चंपई सोरेन का विवाह काफी कम उम्र में मानको सोरेन से हुआ। इस दंपति की सात संताने हैं।
1991 में मिली थी पहली जीत
चंपई सोरेन साल 1991 में सरायकेला सीट के लिए हुए उपचुनाव में पहली बार जीते और तत्कालीन बिहार विधानसभा के सदस्य बने। तब वह उपचुनाव वहां के तत्कालीन विधायक कृष्णा मार्डी के इस्तीफ़े के कारण हुआ था। इसके बाद वे 1995 में फिर चुनाव जीते लेकिन वे 2000 का चुनाव हार गए। साल 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने फिर से जीत का परचम लहराया और उसके बाद वे कोई चुनाव नहीं हारे। वे छह बार इस सीट से विधायक रहे हैं।