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    Home » Das Pratha Ka itihas: भारत में दस प्रथा ने कैसे जन्म लिया और विश्व में दास प्रथा का क्या इतिहास रहा है , आइए जानते हैं
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    Das Pratha Ka itihas: भारत में दस प्रथा ने कैसे जन्म लिया और विश्व में दास प्रथा का क्या इतिहास रहा है , आइए जानते हैं

    By March 9, 2025No Comments7 Mins Read
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    Bharat Mein Das Pratha Ka itihas (Image Credit-Social Media)

    Bharat Mein Das Pratha Ka itihas (Image Credit-Social Media)

    Das Pratha Ka Itihas: दास प्रथा मानव इतिहास के सबसे अमानवीय और कष्टदायक अध्यायों में से एक रही है। यह व्यवस्था प्राचीन काल से ही विभिन्न सभ्यताओं में प्रचलित रही, जहां मनुष्यों को संपत्ति की तरह खरीदा और बेचा जाता था। भारत, चीन, यूनान, रोम, अरब, अफ्रीका और अमेरिका सहित लगभग हर महाद्वीप में किसी न किसी रूप में दास प्रथा अस्तित्व में रही है। हालांकि, समय के साथ कई शासकों और समाज सुधारकों ने इस प्रथा को समाप्त करने के लिए प्रयास किए।

    दासता या दास प्रथा का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसके प्रमाण दुनिया की विभिन्न सभ्यताओं में पाए जाते हैं। दास का अर्थ एक ऐसे व्यक्ति से है जो किसी अन्य व्यक्ति के अधीन होता है और स्वतंत्रता से वंचित रहता है। दासों को निजी संपत्ति के रूप में माना जाता था और वे पूरी तरह अपने स्वामी के आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य होते थे। दासों से कोई भी कार्य कराया जा सकता था और उन्हें किसी भी अधिकार का दावा करने की अनुमति नहीं होती थी।

    Das Pratha Itihas (Image Credit-Social Media)

    Das Pratha Itihas (Image Credit-Social Media)

    दास प्रथा की उत्पत्ति

    अगर दास प्रथा की उत्पत्ति की बात करें तो यह कृषि के आविष्कार के साथ ही नवपाषाण काल (लगभग 11,000 वर्ष पूर्व) में प्रारंभ हुई मानी जाती है। जैसे-जैसे मानव सभ्यता विकसित हुई, वैसे-वैसे दास प्रथा भी विस्तारित होती गई।

    प्राचीन ग्रंथों में भी दासता का उल्लेख मिलता है:

    • यूनानी महाकवि होमर (900 ईसा पूर्व) के महाकाव्यों में दासों का वर्णन है।
    • अरस्तू ने भी अपनी कृतियों में दास प्रथा को स्वीकार किया और उसे समाज का एक अनिवार्य अंग बताया।
    • हाम्मुराबी की विधि संहिता (1792-1750 ईसा पूर्व) में दासों के अधिकार और उनके साथ किए जाने वाले व्यवहार के नियमों का उल्लेख है।
    • बाइबिल, सुमेर, मिस्र, चीन, अक्कादी, यूनान, रोम और इस्लामिक खिलाफत में भी दास प्रथा के प्रमाण मिलते हैं।

    वैदिक काल और प्राचीन भारत में दास प्रथा

    Das Pratha Itihas (Image Credit-Social Media)

    Das Pratha Itihas (Image Credit-Social Media)

    भारत में दास प्रथा के प्रमाण वेदों, महाकाव्यों और प्राचीन धर्मशास्त्रों में मिलते हैं। ऋग्वेद में “दास” और “दस्यु” शब्दों का उल्लेख हुआ है, जो आमतौर पर युद्ध में पराजित लोगों के लिए प्रयुक्त होते थे। मनुस्मृति में दासों को विभिन्न श्रेणियों में बांटा गया है:

    युद्ध में पकड़े गए दास

    • ऋण न चुका पाने के कारण दास बने लोग
    • स्वयं को बेचकर दास बनने वाले लोग
    • जन्म से दास
    • दंडस्वरूप दास बनाए गए लोग
    • उपहारस्वरूप प्राप्त दास
    • बौद्ध ग्रंथों और अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार, भारत में विभिन्न प्रकार के दास होते थे:
    • ध्वजाह्रत दास (युद्ध में पराजित लोग)
    • उदर दास (भोजन के बदले दास बने लोग)
    • आमाय दास (भरण-पोषण के लिए दास बने लोग)
    • भय से दास बने लोग
    • स्वैच्छिक दास
    • खरीदे गए दास
    • कृषि कार्य करने वाले दास (कम्मतगदास)

    मुस्लिम शासनकाल में दासों को चार प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया गया था:

    • ईथ (स्वामी के घर जन्मे दास)
    • लब्ध (युद्ध में प्राप्त दास)
    • युद्ध प्राप्त दास (शत्रुओं से छीने गए दास)
    • आत्म विक्रेता दास (स्वयं को बेचने वाले लोग)

    इसके अतिरिक्त, अन्य प्रकार के दासों में शामिल थे:

    • गुहजात दास (घर की दासी से जन्मे दास)
    • अनाकाल भूत (अकाल के समय बेचे गए लोग)
    • ऋण दास (जो कर्ज न चुका पाने के कारण दास बनते थे)
    • मौर्य और गुप्त काल में दास प्रथा


    Das Pratha Itihas (Image Credit-Social Media)

    Das Pratha Itihas (Image Credit-Social Media)

    मौर्यकाल (321-185 ईसा पूर्व) में दास प्रथा प्रचलित थी, लेकिन चाणक्य के अर्थशास्त्र में दासों के कुछ अधिकारों का उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया कि दासों के साथ क्रूर व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए और उन्हें स्वतंत्रता प्राप्त करने का अवसर मिलना चाहिए।

    गुप्त काल (319-550 ईस्वी) में भी दास प्रथा जारी रही, लेकिन समाज में इसका स्वरूप कुछ हद तक बदल गया। दासों का उपयोग कृषि, घरेलू कार्य और शिल्प उद्योग में किया जाता था।

    मध्यकालीन भारत में दास प्रथा

    • मध्यकालीन भारत में मुस्लिम आक्रमणों के साथ दास प्रथा और अधिक सशक्त हो गई।
    • दिल्ली सल्तनत (1206-1526) और दास प्रथा
    • दिल्ली सल्तनत के दौरान हजारों हिंदुओं और अन्य समुदायों के लोगों को युद्ध में बंदी बनाकर गुलाम बनाया जाता था।
    • कुतुबुद्दीन ऐबक स्वयं एक दास था, जिसने गुलाम वंश की स्थापना की।
    • फिरोज शाह तुगलक (1351-1388) ने लगभग 1,80,000 दासों को अपने शासन के दौरान रखा।

    मुगलकाल (1526-1857) और दास प्रथा

    • मुगलों ने भी दासों का व्यापक उपयोग किया, लेकिन कुछ शासकों ने इसे समाप्त करने की कोशिश भी की।
    • अकबर (1556-1605): उसने दास प्रथा को खत्म करने के लिए युद्ध में पकड़े गए लोगों को दास बनाने पर प्रतिबंध लगाया।
    • जहांगीर (1605-1627): उसने भी दासों के प्रति उदार नीति अपनाई।
    • शाहजहां (1628-1658) और औरंगजेब (1658-1707) के शासन में फिर से दास प्रथा बढ़ी।

    ब्रिटिश शासन और दास प्रथा का अंत

    • अंग्रेजों के शासनकाल में भी दास प्रथा किसी न किसी रूप में जारी रही।
    • 1843 में लॉर्ड एलनबरो ने भारत में दास प्रथा को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया।

    विश्व में दास प्रथा का विस्तृत इतिहास

    मेसोपोटामिया और मिस्र

    मेसोपोटामिया की सभ्यताओं (सुमेर, बेबीलोन, असीरिया) में दास प्रथा का उल्लेख मिलता है। हाम्मुराबी संहिता (1792-1750 ईसा पूर्व) में दासों के अधिकारों और उनके क्रय-विक्रय के नियमों का वर्णन है. मिस्र में दासों का उपयोग पिरामिड निर्माण और कृषि कार्यों के लिए किया जाता था।

    यूनान और रोम में दास प्रथा

    प्राचीन यूनान और रोम में दासों की स्थिति दयनीय थी।

    रोम साम्राज्य (27 ईसा पूर्व – 476 ईस्वी) में दासों को ग्लेडियेटर के रूप में युद्ध लड़ने के लिए बाध्य किया जाता था।

    स्पार्टाकस (73-71 ईसा पूर्व) नामक दास योद्धा ने रोम में दास प्रथा के खिलाफ विद्रोह किया, लेकिन इसे कुचल दिया गया।

    अरब और अफ्रीकी दास व्यापार

    7वीं सदी में इस्लाम के उदय के बाद अरब व्यापारियों ने अफ्रीका से बड़ी संख्या में दासों की तस्करी शुरू की।

    अटलांटिक दास व्यापार (16वीं-19वीं सदी)

    यूरोप और अमेरिका में अफ्रीकी दासों को तंबाकू, चीनी और कपास के खेतों में काम करने के लिए लाया गया।

    दास प्रथा समाप्त करने वाले प्रमुख शासक और नेता

    अमेरिका: अब्राहम लिंकन (1861-1865) ने 1865 में 13वें संशोधन द्वारा दास प्रथा समाप्त की।

    ब्रिटेन: विलियम विलबरफोर्स के प्रयासों से 1833 में ब्रिटेन में दास प्रथा समाप्त हुई।

    फ्रांस: 1848 में नेपोलियन तृतीय ने दास प्रथा खत्म की।

    ब्राजील: 1888 में स्वर्ण कानून (Lei Áurea) के तहत दास प्रथा समाप्त हुई।

    10 मार्च और चीन में दास प्रथा का अंत

    10 मार्च 1910 को चीन ने आधिकारिक रूप से दास प्रथा को समाप्त करने की घोषणा की।

    चीन में दास प्रथा का इतिहास

    • प्राचीन चीन में ज़ोउ वंश (1046-256 ईसा पूर्व) के दौरान दासों का उपयोग युद्ध और निर्माण कार्यों में किया जाता था।
    • किन वंश (221-206 ईसा पूर्व) के दौरान दासों का उपयोग दीवारों और महलों के निर्माण में किया गया।
    • मिंग और किंग वंश (1368-1912) तक चीन में दास प्रथा किसी न किसी रूप में बनी रही।
    • चीन में दास प्रथा समाप्त करने वाले प्रमुख शासक
    Das Pratha Itihas (Image Credit-Social Media)

    Das Pratha Itihas (Image Credit-Social Media)

    सम्राट गुआंग्शु (1875-1908):

    उन्होंने दास प्रथा को कमजोर किया।

    1910 में चीन की किंग सरकार ने औपचारिक रूप से दास प्रथा को खत्म किया।

    दास प्रथा ने मानव सभ्यता पर गहरा प्रभाव डाला है। भारत, चीन, अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका सभी ने इस अमानवीय व्यवस्था का सामना किया। हालांकि, विभिन्न शासकों, समाज सुधारकों और मानवाधिकार आंदोलनों के कारण इसे धीरे-धीरे समाप्त कर दिया गया। आज भी मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी जैसी समस्याएं बनी हुई हैं, जिन्हें समाप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है।

    दास प्रथा समाप्त करने वाले प्रमुख शासक और आंदोलन

    भारत में दास प्रथा का अंत

    • अकबर (1556-1605): युद्ध में पकड़े गए लोगों को दास बनाने पर प्रतिबंध लगाया।
    • जहांगीर (1605-1627): दासों के प्रति नरम नीति अपनाई।
    • लॉर्ड एलनबरो (1843): ब्रिटिश शासन के दौरान दास प्रथा को समाप्त करने की घोषणा की।

    विश्व में दास प्रथा का अंत

    अब्राहम लिंकन (1861-1865): अमेरिका में 1865 के 13वें संशोधन द्वारा दास प्रथा समाप्त हुई।

    ब्रिटेन (1833): विलियम विलबरफोर्स के प्रयासों से दास प्रथा समाप्त हुई।

    फ्रांस (1848): नेपोलियन तृतीय ने दास प्रथा खत्म की।

    ब्राजील (1888): स्वर्ण कानून (Lei Áurea) द्वारा दास प्रथा समाप्त हुई।

    दास प्रथा मानव सभ्यता के सबसे काले अध्यायों में से एक रही है। यह भारत, चीन, अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका सहित हर जगह प्रचलित रही। हालाँकि, विभिन्न शासकों, समाज सुधारकों और मानवाधिकार आंदोलनों के प्रयासों से इसे समाप्त कर दिया गया। आज भी मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी जैसी समस्याएं बनी हुई हैं, जिन्हें समाप्त करने के लिए निरंतर प्रयास की आवश्यकता है।

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