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    Daulatabad Fort Story in Hindi: युद्धों और राजनीतिक उथल-पुथल का साक्षी- यादव राजाओं द्वारा निर्मित- दुर्जेय किलों में से एक दौलताबाद किला- जानिए गौरवशाली इतिहास और रोमांचक किस्से

    Janta YojanaBy Janta YojanaJuly 18, 2025No Comments7 Mins Read
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    Daulatabad Fort (Image Credit-Social Media)

    Daulatabad Fort (Image Credit-Social Media)

    Daulatabad Fort History: महाराष्ट्र के औरंगाबाद से महज 16 किलोमीटर दूर स्थित दौलताबाद किला, सिर्फ एक ऐतिहासिक इमारत नहीं, बल्कि भारतीय मध्ययुगीन स्थापत्य और रणनीतिक कौशल का अद्वितीय उदाहरण है। पहाड़ियों की गोद में 200 मीटर ऊंची शंकु के आकार की पहाड़ी पर बसा यह किला, इतिहास के कई उतार-चढ़ाव और अद्भुत घटनाओं का साक्षी रहा है। अपने समय में अजेय माने जाने वाले इस किले ने राजाओं और साम्राज्यों की बदलती तकदीरें देखी हैं। आइए जानते हैं इस किले से जुड़ी रोचक दास्तानें, ऐतिहासिक महत्व और पर्यटन की दृष्टि से इसकी खासियत के बारे में-

    दौलताबाद किले का निर्माण और उसका प्रारंभिक इतिहास

    1187 ईस्वी में यादव वंश के राजा भीलमराज यादव ने इस किले का निर्माण⁷ करवाया था। पहले इसे ‘देवगिरी किला’ कहा जाता था, जिसका अर्थ है ‘देवताओं की पहाड़ी’। इस किले की भौगोलिक स्थिति इतनी सटीक थी कि किसी भी आक्रमणकारी के लिए इसे जीत पाना असंभव जैसा था। यादव राजाओं ने इसे अपनी राजधानी भी बनाया। मजबूत पत्थरों से बनी इसकी दीवारें, चारों ओर खुदी गहरी खाई, रहस्यमयी सुरंगें और जलाशयों के कारण यह किला मध्यकालीन भारत के सबसे सुरक्षित किलों में गिना जाता था।

    मुहम्मद बिन तुगलक और राजधानी का स्थानांतरण

    1327 में दिल्ली सल्तनत के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने इस किले की रणनीतिक स्थिति से प्रभावित होकर इसे अपनी राजधानी बनाया। उसने दिल्ली से दौलताबाद राजधानी स्थानांतरित करने का आदेश दिया और इसके साथ ही दिल्ली के नागरिकों को भी दौलताबाद जाने के लिए विवश किया। इस ऐतिहासिक निर्णय को तुगलक के सबसे विवादित कदमों में गिना जाता है। भारी जनसंख्या का इस प्रकार स्थानांतरण करना व्यावहारिक नहीं था और अंततः यह प्रयोग विफल रहा। कुछ वर्षों बाद तुगलक ने राजधानी पुनः दिल्ली स्थानांतरित कर दी। हालांकि, इस घटनाक्रम ने दौलताबाद किले को इतिहास में विशेष स्थान दिला दिया।

     अद्भुत और रचनात्मक है किले की सुरक्षा व्यवस्था

    इस किले को अभेद्य बनाने के लिए इसमें कई अभियांत्रिकी और स्थापत्य चमत्कारों का प्रयोग किया गया था। किले के चारों ओर तीन परकोटे बनाए गए थे, जिनमें से प्रत्येक मजबूत पत्थर की दीवारों से घिरा हुआ था। इन दीवारों के बीच की दूरी और उनकी ऊंचाई ऐसी रखी गई थी कि शत्रु आसानी से पार न कर सके। किले के चारों ओर गहरी खाई बनाई गई थी, जिसमें पानी भरा रहता था और उसमें मगरमच्छ छोड़े जाते थे। इसके अतिरिक्त किले के अंदर भूलभुलैया जैसी जटिल गलियां बनाई गई थीं, जो दुश्मनों को भ्रमित कर देती थीं। भूमिगत सुरंगों का जाल भी इस किले का हिस्सा था, जिसका उपयोग युद्धकाल में भागने या सैन्य कार्रवाई करने में किया जाता था। किले में एक विशेष द्वार था, जिसे मौत का दरवाजा कहा जाता था, जहां से गुजरने वाले शत्रुओं पर ऊपर से गर्म तेल और पानी डाला जाता था। किले को लगभग 200 मीटर ऊंची चट्टान को काटकर बनाया गया है, जिससे दुश्मनों के लिए इस पर चढ़ाई करना अत्यंत कठिन था और कई बार महीनों तक प्रयास करने पर भी सफलता नहीं मिलती थी। किले का मुख्य प्रवेश द्वार इस प्रकार डिजाइन किया गया था कि आक्रमणकारी कभी सीधे द्वार तक नहीं पहुंच सके। किले में मौजूद भूमिगत सुरंगों के बारे में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं, जिनमें कहा जाता है कि ये सुरंगें दूर-दराज के अन्य किलों से भी जुड़ी थीं। इतिहास में दर्ज एक घटना के अनुसार, एक बार आक्रमणकारियों पर खौलता तेल डालकर उन्हें पीछे हटने पर मजबूर किया गया था, जिससे इस किले को ‘अजेय किला’ कहा जाने लगा।

    मुगल काल और दौलताबाद किला

    दौलताबाद किला विभिन्न समय में कई साम्राज्यों के हाथों में गया। बहमनी सुल्तानों, अहमदनगर के निजामशाही और बाद में मुगलों के अधीन भी यह किला रहा। 1633 में मुगल सम्राट शाहजहां ने इस किले को अपने अधीन कर लिया और मुगल शासन के अधीन इसे एक महत्त्वपूर्ण सैन्य और रणनीतिक केंद्र बनाया गया। मुगलों के समय में यह किला एक शक्तिशाली किला बना रहा और उनका दक्षिण भारत में शक्ति संतुलन बनाए रखने का केंद्र भी रहा।

     मराठा साम्राज्य और दौलताबाद

    17वीं शताब्दी में मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस किले पर अपना अधिकार कर लिया। शिवाजी महाराज ने इस किले की रणनीतिक महत्ता को पहचाना और इसे अपने सैन्य अभियानों में प्रयोग किया। इसके बाद यह किला पेशवाओं और मराठा साम्राज्य के अन्य शासकों के नियंत्रण में भी रहा। मराठा काल में इस किले का उपयोग एक प्रमुख गढ़ और शस्त्रागार के रूप में किया जाता था।

    ब्रिटिश काल और किले की स्थिति


    1818 में पेशवाओं की हार के बाद यह किला ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकार में चला गया। ब्रिटिश शासनकाल में इस किले का सामरिक महत्त्व कम हो गया और धीरे-धीरे यह केवल एक ऐतिहासिक स्मारक बनकर रह गया। हालांकि, इसकी भव्यता और ऐतिहासिकता ने इसे भारत की प्रमुख धरोहरों में शामिल कर दिया।

     दौलताबाद किले के स्थापत्य वैभव की मिसाल है चार मीनार

    किले के स्थापत्य में चांद मिनार विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जो लगभग 63 मीटर ऊंची है। इसे बहमनी सुल्तान अलाउद्दीन बहमन शाह ने बनवाया था और यह किले की पहचान बन गई है। किले के चारों ओर बनी विशाल पत्थर की दीवारों को महाकोट कहा जाता है, जो सुरक्षा के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण थीं। बारादरी, जहां से राजा अपने दरबारियों से बातचीत करते थे, आज भी इसकी भव्यता का प्रतीक है। किले में रखी विशाल तोपें तत्कालीन युद्धकालीन तकनीक और शक्ति का परिचायक हैं।

    पर्यटन की दृष्टि से आज का दौलताबाद किला

    आज दौलताबाद किला महाराष्ट्र का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन चुका है। इतिहास प्रेमी, वास्तुकला के छात्र और रोमांच पसंद करने वाले पर्यटक यहां बड़ी संख्या में आते हैं। औरंगाबाद से आसानी से टैक्सी या बस द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है। किले में प्रवेश का समय सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक निर्धारित है। भारतीय नागरिकों के लिए ₹25 और विदेशी पर्यटकों के लिए ₹300 का प्रवेश शुल्क लिया जाता है।

    दौलताबाद किले के आसपास घूमने योग्य स्थल

    अगर आप दौलताबाद किले की सैर पर आएं तो इसके आसपास भी कई दर्शनीय स्थल आपका इंतजार कर रहे हैं। किले से थोड़ी ही दूरी पर स्थित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, जहां भक्तों का तांता लगा रहता है। इसके अलावा बानी बेगम गार्डन, जहां मुगल शैली के बागों का अद्भुत संयोजन देखा जा सकता है। यह भी घूमने लायक जगह है। सलीम अली झील पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग समान है और वहीं औरंगजेब का मकबरा भी इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है।

     दौलतबाग का खानपान और स्थानीय स्वाद

    दौलताबाद और इसके आसपास के इलाकों में घूमते समय मुगलाई और हैदराबादी व्यंजनों का स्वाद लेना एक खास अनुभव होता है। यहां के प्रसिद्ध तंदूर रेस्टोरेंट एंड बार और चाइना टाइस जैसे रेस्टोरेंट आपको लजीज भोजन का आनंद प्रदान करते हैं। स्वादिष्ट बिरयानी, कबाब और खासतौर पर यहां की स्थानीय मिठाइयों का स्वाद चखना न भूलें।

    वहीं दौलतबाग किले की सुरंगें, भूलभुलैया, चांद मिनार, बारादरी और पहाड़ी से दिखने वाला मनोरम दृश्य, इस किले को विशेष बनाते हैं। दौलताबाद किला न सिर्फ एक स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है, बल्कि यह भारतीय इतिहास के अद्भुत और रोमांचक अध्यायों का जीवंत गवाह भी है। इस किले की यात्रा आपको इतिहास की गलियों में ले जाती है, जहां हर पत्थर कोई कहानी कहता है। अगर आप इतिहास और साहसिक यात्रा के शौकीन हैं तो दौलताबाद किला आपके लिए एक आदर्श स्थल है।

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