Delhi Election Exit Poll: दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए 5 फरवरी को मतदान संपन्न हो गया। चुनाव आयोग के अनुसार, शाम 6 बजे तक 60.42 प्रतिशत मतदान हुआ, जो 2020 के 62.80 प्रतिशत और 2015 के 67.12 प्रतिशत से कम है। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस बार दिल्ली के मतदाताओं ने किस पार्टी को अपना समर्थन दिया?
मतदान में बढ़ोतरी और सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड
इतिहास को देखें तो दिल्ली में वोटिंग प्रतिशत बढ़ने पर सत्ता परिवर्तन का स्पष्ट ट्रेंड नहीं रहा है। 2003, 2008, 2013 और 2015 में मतदान प्रतिशत बढ़ा, लेकिन केवल 2013 में सरकार बदली थी। 2003 में 4.43 प्रतिशत और 2008 में 4.1 प्रतिशत वोट बढ़े, जिससे कांग्रेस की सीटें घटीं, लेकिन सत्ता नहीं बदली। 2013 में 8 प्रतिशत अधिक मतदान हुआ और कांग्रेस सिर्फ 8 सीटों पर सिमट गई। वहीं, 2015 में 1.45 प्रतिशत बढ़ोतरी से आम आदमी पार्टी (AAP) को 67 सीटों पर प्रचंड बहुमत मिला। इस बार मतदान प्रतिशत में कमी आई है, जिससे AAP की सीटों में गिरावट की संभावना जताई जा रही है। अरविंद केजरीवाल ने खुद 55 सीटें जीतने का दावा किया था, जबकि 2020 में पार्टी ने 62 सीटें जीती थीं।
झारखंड और महाराष्ट्र से तुलना
दिल्ली चुनाव से पहले झारखंड और महाराष्ट्र में मतदान प्रतिशत बढ़ा और सत्तारूढ़ दलों की वापसी हुई। झारखंड में 3 प्रतिशत अधिक मतदान से हेमंत सोरेन गठबंधन की सीटें 47 से बढ़कर 56 हो गईं। महाराष्ट्र में 4 प्रतिशत अधिक मतदान से महायुति गठबंधन ने 236 सीटें जीतीं। इन चुनावों में महिला मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिससे दिल्ली में भी महिला वोटरों के रुझान पर नजर रहेगी।
मुस्लिम बहुल इलाकों में भारी मतदान
दिल्ली के सीलमपुर और मुस्तफाबाद में सबसे ज्यादा वोटिंग हुई। 2020 में इन दोनों सीटों पर AAP ने जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार इन्हें कड़ी चुनौती मिल रही है। मुस्तफाबाद में AIMIM के ताहिर हुसैन, बीजेपी के मोहन सिंह विष्ट और AAP के आदिल मैदान में हैं। वहीं, सीलमपुर में AAP के चौधरी जुबेर, बीजेपी के अनिल गौर और कांग्रेस के अब्दुल रहमान के बीच मुकाबला है। इन सभी फैक्टर्स को देखते हुए यह तय करना मुश्किल है कि दिल्ली में सत्ता किसकी होगी, लेकिन मतदान का पैटर्न बताता है कि मुकाबला बेहद दिलचस्प रहेगा।