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Delhi Politics: राजनीति में टोटकों का बहुत महत्व होता है। यही नहीं,राजनीति में प्रायः इतिहास दोहराया जाता है। पर इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि कई बार नया इतिहास भी बनता है। टोटके भी टूटते है। अब यह बात दिल्ली के मुख्यमंत्री के नये नाम के बाद देखने की ज़रूरत है। अरविंद केजरीवाल ने आतिशी को दिल्ली का नया मुख्यमंत्री बना दिया है। पर इतिहास साक्षी कि जब जब किसी नेता ने किसी दबाव या परिस्थितियों के वशीभूत इस्तीफ़ा देकर अपने परिवार से बाहर के किसी राजनेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपीं है तो पार्टी सुप्रीमो को दिक़्क़त का सामना करना पड़ा है। पार्टी में दिक़्क़त उभरी है।
जब नीतीश ने मांझी पर जताया था भरोसा
बिहार के आज के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने सियासी समीकरण दुरुस्त करने के लिए जीतन राम माँझी को मुख्यमंत्री बनाया। उन्होंने सोचा अति दलित अति पिछड़ा समीकरण के मार्फ़त वह मज़बूत सरकार चला सकेंगे। नतीजतन नीतीश कुमार ने माँझी को बिहार के तेईसवें मुख्यमंत्री से नवाज़ा। यही नहीं, उन्होंने बिहार राज्य में तीसरे दलित मुख्यमंत्री का भी इतिहास रचा। दस महीने तक मुख्यमंत्री रहने के बाद 20 फ़रवरी, 2015 को जब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा तो जीतन राम माँझी के तेवर नीतीश कुमार के लिए चुभने वाले थे। हद तो यह हुई कि नीतीश कुमार के लिए पद छोड़ने के बदले उन्होंने सदन में बहुमत साबित करना बेहतर समझा। हालाँकि बहुमत साबित न कर पाने के कारण माँझी को इस्तीफ़ा देना पड़ा। उनके इस स्टैंड के चलते पार्टी ने भी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। 43 साल के राजनीतिक कैरियर में माँझी ने कई दलों में पनाह और छुट्टी भी ली। कांग्रेस के साथ उन्होंने अपनी पारी शुरु की। पर बाद में जनता दल, आरजेडी, जेडीयू और आज भाजपा के साथ हैं।
मांझी ने नौकरी छोड़ने के बाद राजनीति में कदम रखा। पहली बार 1980 में विधायक चुने गये। इसके बाद वो 1990 और 1996 में भी विधायक चुने गये।2005 में बाराचट्टी से बिहार विधान सभा के लिए चुने गये।1983 से 1985 तक वो बिहार सरकार में उपमंत्री रहे, 1985 से 1088 तक एवं पुनः 1998 से 2000 तक राज्यमंत्री रहे। 2008 में वह कैबिनेट मंत्री बने। उन्होंने अपनी पार्टी भी बनायी।
पिताजी के साथी को बनाया सीएम लेकिन…�
अपने संकटकाल में संकट मोचक समझ कर हेमंत सोरेन ने अपने पिता जी के समय के साथी चंपई सोरेन को झारखंड का सातवाँ मुख्यमंत्री बना दिया। 2 फरवरी, 2024 से 3 जुलाई, 2024 तक वह मुख्यमंत्री पद पर आसीन रहे। यह वह काल था, जब मनी लांड्रिंग के एक केस में हेमंत सोरेन को जेल जाना पड़ा था। जेल जाने के चलते हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। जबकि जेल में रहते हुए भी अरविंद केजरीवाल को इस्तीफ़ा देना पसंद नहीं आया। उन्होंने जेल से ही अपनी सरकार चलाई। हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने के बाद जब उनने मुख्यमंत्री पद की शपथ दोबारा ली तो चंपई सोरेन को एक बार फिर कैबिनेट मंत्री पद से नवाज़ा गया। चंपई सोरेन संयुक्त बिहार विधानसभा में भी दो बार विधायक रहे थे। वह सात बार के विधायक हैं। पहली बार 1991 में सरायकेला से विधायक चुने गये थे। झारखंड के अलग राज्य के आंदोलन के दौरान चंपई सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा से जुड़े। लेकिन जेल से बाहर आने के बाद हेमंत सोरेन के साथ का कैबिनेट पद चंपई सोरेन को रास नहीं आया। नतीजतन, उन्होंने बीते दिनों भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। देखना है कि झारखंड के आगामी चुनाव में भाजपा को चंपई सोरेन से कितना लाभ होता है।
गुरु और शिष्य का बरकरार रहेगा संबन्ध!
आतिशी को अरविंद केजरीवाल के साथ ही मनीष सिसोदिया का भी भरोसेमंद माना जाता है। वह दिल्ली सरकार में सबसे ताकतवर मंत्री मानी जाती हैं। जेल में बंद रहते हुए जब अरविंद केजरीवाल ने स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराने के लिए आतिशी को अधिकृत किया। तभी आतिशी की अहमियत का अंदाज लग गया था। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विजय सिंह और तृप्त वाही के घर 8 जून 1981 को आतिशी का जन्म हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा दिल्ली के स्प्रिंगडेल स्कूल से पूरी की है। उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज मैं इतिहास का अध्ययन किया। आगे की पढ़ाई के लिए वह इंग्लैंड चली गईं।
शेवनिंग स्कॉलरशिप मिलने पर उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से मास्टर्स की डिग्री हासिल की। बाद में उन्होंने रोड्स स्कॉलर के रूप में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से ही शैक्षिक अनुसंधान में अपनी दूसरी मास्टर्स उपाधि हासिल की। बाद में जैविक खेती और प्रगतिशील शिक्षा प्रणालियों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए उन्होंने मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में सात साल बिताए। गैर लाभकारी संगठनों के साथ काम करने के दौरान उनकी मुलाकात कुछ ऐसे सदस्यों से हुई जो आम आदमी पार्टी से जुड़े हुए थे। आप ने 2013 में पहली बार दिल्ली का विधानसभा चुनाव लड़ा। उस समय आतिशी पार्टी की घोषणा पत्र मसौदा समिति की प्रमुख सदस्य थीं। आप प्रवक्ता के रूप में भी उन्होंने पार्टी को मजबूत बनाने और पार्टी की नीतियां स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा। मगर उन्हें भाजपा प्रत्याशी और क्रिकेटर गौतम गंभीर से हार का सामना करना पड़ा था।
उन्होंने 2015 से 2018 तक सिसोदिया के शिक्षा सलाहकार के रूप में काम किया। शिक्षा व स्वास्थ्य को लेकर दिल्ली सरकार के बड़े बड़े दावे हैं। आतिशी दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनीं हैं। उनके आने से आप को पंजाबी वोटों के ध्रुवीकरण की उम्मीद तेज हुई है। दिल्ली में तकरीबन तीस फ़ीसदी पंजाबी मतदाता हैं। पर इसी के साथ इस पर भी नज़र बनाये रखना ज़रूरी हो गया है कि आतिशी इतिहास को दोहराती हैं। या फिर नया इतिहास रचती हैं।