
Rice and maize fuel project
‘ग्रीन बिहार’: बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण मौजूदा समय की वैश्विक चुनौती बन चुका है। ऐसे में वायु को सबसे अधिक प्रदूषित करने का काम ईंधनों से निकलने वाला धुवां कर रहा है। यही वजह है कि अब जैविक ईंधनों को चलन में लाने पर तेजी से काम किया जा रहा है। इथेनॉल जिसमें एक बड़ा विकल्प बनकर उभरा है। इस कड़ी में बिहार का जमुई जिला इन दिनों सुर्खियों में है। यहां के नक्सल प्रभावित चकाई प्रखंड के उरवा-भलुआ गांव में एशिया की सबसे बड़ी इथेनॉल फैक्ट्री का निर्माण तेजी से चल रहा है। पर्यावरण के अनुकूल ईंधन के रूप में तेजी से अपनी पहचान कायम कर रहा इथेनॉल अब देश की ऊर्जा नीति का अहम हिस्सा बन चुका है। इसी को ध्यान में रखते हुए इसके अधिक से अधिक उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है। केंद्र और राज्य सरकार की संयुक्त पहल से शुरू की गई यह परियोजना न केवल बिहार बल्कि पूरे पूर्वी भारत के लिए औद्योगिक विकास का नया अध्याय साबित हो सकती है। यह संयंत्र पर्यावरण-अनुकूल ईंधन उत्पादन के साथ-साथ रोजगार और किसानों की आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि का भी माध्यम बनने जा रहा है। आइए जानते हैं एशिया की सबसे बड़ी इथेनॉल फैक्ट्री से जुड़े डिटेल्स के बारे में विस्तार से –
क्या है इथेनॉल संयंत्र परियोजना ?
इस विशाल इथेनॉल संयंत्र की स्थापना पश्चिम बंगाल की अंकुर बायोकैम प्राइवेट लिमिटेड कंपनी द्वारा की जा रही है। लगभग 4,000 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हो रही यह फैक्ट्री करीब 69 एकड़ भूमि में फैली होगी। इसका प्रतिदिन 750 लाख लीटर इथेनॉल उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है, जिससे यह एशिया का सबसे बड़ा संयंत्र बन जाएगा। प्रोजेक्ट मैनेजर कमलाकांत के अनुसार, इस प्लांट का निर्माण कार्य अब तक आधा से अधिक पूरा हो चुका है और 2026 तक इसका कार्य पूर्ण कर लिया जाएगा।
इस फैक्ट्री के साथ 20 मेगावाट का को-जनरेशन पावर प्लांट भी तैयार किया जा रहा है, जिससे यह अपने संचालन के लिए आवश्यक ऊर्जा खुद उत्पन्न कर सकेगी। परियोजना को केंद्र सरकार की ‘एथेनॉल ब्लेंडिंग प्रोग्राम’ (Ethanol Blending Programme) के तहत हरी झंडी दी गई है। जिसके अंतर्गत पेट्रोल और डीजल में 20 प्रतिशत तक इथेनॉल मिलाने का लक्ष्य रखा गया है । ताकि देश की विदेशी तेल पर निर्भरता कम हो और पर्यावरण प्रदूषण में भी कमी लाई जा सके।
किसानों और स्थानीय लोगों के लिए नया अवसर
फैक्ट्री के संचालन से 10,000 से अधिक लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। यह रोजगार स्थानीय स्तर पर मिलेगा, जिससे पलायन पर काफी हद तक रोक लगेगी। चकाई प्रखंड जैसे क्षेत्र, जो पहले नक्सल गतिविधियों और बेरोजगारी के कारण पिछड़े माने जाते थे, अब औद्योगिक विकास के नए केंद्र बनते दिख रहे हैं।
इथेनॉल उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में मक्का और चावल का उपयोग किया जाएगा। कंपनी किसानों से उचित मूल्य पर इन अनाजों की खरीद करेगी, जिससे उन्हें अपनी उपज का स्थायी और लाभकारी बाजार मिलेगा। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी और उनकी निर्भरता बिचौलियों पर घटेगी। यह परियोजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह बढ़ाने के साथ ही कृषि क्षेत्र को नई दिशा देने का काम करेगी।
इथेनॉल उत्पादन में बन रही विकास की नई राह
बिहार पहले से ही देश के इथेनॉल उत्पादन में अग्रणी बनने की राह पर है। राज्य सरकार ने 2026 तक नौ नए इथेनॉल संयंत्रों की स्थापना का लक्ष्य रखा है। जमुई का यह प्रोजेक्ट उनमें से सबसे बड़ा है। सरकार का उद्देश्य है कि बिहार को पूर्वी भारत का जैव-ईंधन हब बनाया जाए।
केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी घोषणा की थी कि आने वाले वर्षों में वाहनों को पेट्रोल और डीजल के स्थान पर इथेनॉल से चलाया जाएगा, जिससे न केवल प्रदूषण घटेगा बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा। इस दृष्टि से जमुई की यह फैक्ट्री बिहार की औद्योगिक प्रगति और पर्यावरणीय संतुलन दोनों के लिए एक बड़ा कदम मानी जा रही है।
दूरदराज इलाकों तक पहुंच रहा विकास
वर्तमान जानकारी के अनुसार, बिहार के उरवा-भलुआ में फैक्ट्री का सिविल वर्क यानी आधारभूत निर्माण कार्य पूरा हो चुका है, जबकि मशीनरी इंस्टॉलेशन और परीक्षण प्रक्रिया जारी है। 2026 के मध्य तक उत्पादन की शुरुआत होने की संभावना जताई जा रही है। फिलहाल सरकारी अभिलेखों में इसे निर्माणाधीन (Under Construction) श्रेणी में ही दर्शाया गया है।
स्थानीय प्रशासन और कंपनी के बीच लगातार समन्वय बना हुआ है ताकि परियोजना समय पर पूरी हो सके। नक्सल प्रभावित क्षेत्र में इतने बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य का सफल संचालन खुद में एक बड़ी उपलब्धि है। हासिल हुई इस के बाद ये बात स्पष्ट है कि विकास अब सबसे दूरदराज इलाकों तक भी पहुंच रहा है।
इस राह में कम नहीं हैं चुनौतियां
पर्यावरण संरक्षण में स्योगी इस परियोजना के संभावित लाभ बहुत बड़े हैं, लेकिन इसके सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। इथेनॉल उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की निरंतर उपलब्धता, भंडारण व्यवस्था, परिवहन सुविधा और ऊर्जा आपूर्ति जैसी बातें संचालन के लिए बेहद जरूरी घटक हैं। इसके साथ ही पर्यावरणीय प्रभावों की निगरानी भी जरूरी है ताकि भूजल स्तर और कृषि पैटर्न पर कोई नकारात्मक असर न पड़े। वित्तीय दृष्टि से भी यह परियोजना एक बड़ा निवेश है, इसलिए लाभप्रदता और बाजार की मांग बनाए रखना अनिवार्य होगा। फिर भी, सरकार के सतत प्रयासों और निजी क्षेत्र की भागीदारी से यह उम्मीद की जा रही है कि परियोजना सफलतापूर्वक आगे बढ़ेगी। साथ ही इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि
जमुई के उरवा-भलुआ गांव में बन रही एशिया की सबसे बड़ी इथेनॉल फैक्ट्री बिहार की औद्योगिक पर्यावरण-अनुकूल ईंधन उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ ही स्थानीय युवाओं को रोजगार, किसानों को बाजार और क्षेत्र को आर्थिक स्थिरता प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करेगी।
डिस्क्लेमर:
इस आलेख में दी गई जानकारी विभिन्न सरकारी और सार्वजनिक रिपोर्टों तथा उपलब्ध परियोजना दस्तावेज़ों पर आधारित है। निर्माण कार्य और उत्पादन की स्थिति से जुड़ी जानकारियां समय-समय पर बदल सकती हैं। इस लेख का उद्देश्य केवल सामान्य जानकारी साझा करना है।


