
Etah Mein Ghoomne ki Jagah (Image Credit-Social Media)
Etah Mein Ghoomne ki Jagah
Etah Mein Ghumne Ki Jagah: एटा उत्तर प्रदेश का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जनपद है, जो गंगा–यमुना दोआब के निकट स्थित होने के कारण प्राचीन काल से ही व्यापार, कृषि और आवागमन का अहम केंद्र रहा है। लोक–परंपरा के अनुसार इस क्षेत्र को पहले ‘ऐन्था’ नाम से पुकारा जाता था, जिसका संबंध यहाँ के लोगों के उग्र और वीर स्वभाव से जोड़ा जाता है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एटा और आसपास के क्षेत्रों में अंग्रेज़ी सत्ता के विरुद्ध कई विद्रोही कार्रवाइयाँ हुईं और यह जिला क्रांतिकारियों की गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण पड़ाव बना, जिसके कारण यह स्वतंत्रता–इतिहास में विशेष स्थान रखता है।
एटा ज़िले का भू–दृश्य नदियों, तालाबों और खेतों से घिरा है; यमुना के निकटवर्ती हिस्सों, इसान और अन्य स्थानीय नदियों के तटों पर बसे गाँवों की कृषि–संस्कृति आज भी यहाँ के सामाजिक जीवन की धुरी है। धान, गेहूँ, आलू, दलहन और तिलहन की अच्छी पैदावार के साथ–साथ डेयरी, अनाज मंडियाँ और ग्रामीण कुटीर–उद्योग एटा को एक उभरते हुए कृषि–औद्योगिक ज़िले के रूप में पहचान दिला रहे हैं।
एटा की पहचान केवल इतिहास तक सीमित नहीं, बल्कि समृद्ध हस्तकला और धातु–उद्योग के कारण भी यह जिला उल्लेखनीय है। विशेष रूप से जलेसर क्षेत्र घुँघरू, घंटी और पीतल–उत्पादों के लिए पूरे देश में पहचाना जाता है; मंदिरों में लगने वाली बड़ी–बड़ी पीतल की घंटियाँ, घुँघरू, सजावटी धातु–वस्तुएँ और पूजा–समग्री यहाँ के शिल्पकारों की बारीक कारीगरी को दर्शाती हैं, जो एटा को एक महत्त्वपूर्ण ‘मंदिर–घंटी और घुँघरू’ क्लस्टर के रूप में स्थापित करती हैं। यह पारंपरिक धातु–कला आज भी बड़े पैमाने पर स्थानीय रोज़गार का आधार है और आधुनिक बाज़ारों व ई–कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से राष्ट्रीय–अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँच रही है।
धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी एटा समृद्ध विरासत का संवाहक है। नगर और ग्रामीण क्षेत्रों में फैले प्राचीन मंदिर, दरगाहें और आश्रम यहाँ की गंगा–जमुनी तहज़ीब और लोक–आस्था को जीवंत रखते हैं। एटा और आसपास के कस्बों में मनाए जाने वाले होली के फाग–गीत, आल्हा, कजरी और रसिया जैसे बुंदेली–ब्रज लोक–गायन, अखाड़ा–संस्कृति, रामलीला और मौसमी मेलों की परंपरा इस ज़िले को उत्तर भारतीय लोक–सांस्कृतिक मानचित्र पर विशिष्ट बनाती है।
जिले का सबसे प्रमुख ऐतिहासिक–विरासत स्थल अवागढ़ किला है, जो कभी स्थानीय राजघराने का मज़बूत गढ़ रहा। ऊँची–ऊँची प्राचीरें, बुर्ज, प्रवेश–द्वार और किले के भीतर के अवशेष मध्यकालीन सामरिक स्थापत्य की झलक प्रस्तुत करते हैं। अवागढ़ किले के आसपास विकसित हो रहे हेरिटेज–वॉक, लाइट–और–साउंड शो और फोटो–पॉइंट जैसी संभावनाएँ इसे भविष्य में एक महत्त्वपूर्ण हेरिटेज–टूरिज़्म साइट में बदल सकती हैं।
प्राकृतिक और पर्यावरणीय पर्यटन की दृष्टि से एटा का पटना पक्षी विहार (पटना बर्ड सेंचुरी) विशेष महत्त्व रखता है। यह झील–आधारित पक्षी अभयारण्य प्रवासी और स्थानीय पक्षियों के लिए सुरक्षित आवास के रूप में जाना जाता है। सर्दियों के मौसम में यहाँ बड़ी संख्या में जल–पक्षी, बत्तखों की विभिन्न प्रजातियाँ और अन्य प्रवासी पक्षी दिखाई देते हैं, जिससे यह बर्ड–वॉचिंग, नेचर–फोटोग्राफी और पर्यावरण–शिक्षा के लिए आदर्श गंतव्य बन जाता है। वन विभाग और पर्यटन विभाग द्वारा यहाँ पर्यटक सुविधा–केंद्र, व्यू–प्वाइंट, नैसर्गिक ट्रेल और स्थानीय समुदाय आधारित ईको–टूरिज़्म गतिविधियों को बढ़ावा देने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि संरक्षण और आजीविका दोनों का संतुलन बनाए रखा जा सके।
एटा शहर और उसके आसपास धार्मिक–पर्यटन के कई केंद्र मौजूद हैं। अवागढ़ किले के निकट स्थित प्राचीन मंदिर, स्थानीय शिव–शक्ति पीठ, गौ–शालाएँ और आश्रम क्षेत्रीय आस्था के प्रमुख केंद्र हैं। कैलाश मंदिर परिसर और आसपास के अन्य प्राचीन शिव–मंदिर शिव–भक्तों के लिए खास महत्व रखते हैं; सावन मास, महाशिवरात्रि और अन्य त्योहारों के अवसर पर यहाँ विशेष मेले और धार्मिक आयोजन होते हैं, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करते हैं। गुरुकुल जैसे पारंपरिक शिक्षा–केन्द्र वैदिक अध्ययन और भारतीय संस्कृति की शिक्षा के साथ–साथ पर्यटकों के लिए भी एक जीवंत सांस्कृतिक–अनुभव उपलब्ध कराते हैं।
एटा की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में घुँघरू–घंटी–उद्योग के अलावा पीतल–उत्पाद, कृषि–उपज प्रसंस्करण, डेयरी और लघु–स्तरीय उद्योग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जिले में विकसित हो रहे औद्योगिक क्षेत्रों, गन्ना और आलू आधारित इकाइयों, कोल्ड–स्टोरेज, मंडियों और सड़क–कनेक्टिविटी के सुधरते नेटवर्क ने इसे छोटे–कस्बाई–उद्योग और लॉजिस्टिक्स के उभरते केंद्र के रूप में स्थापित करना शुरू कर दिया है।
पर्यटन की दृष्टि से एटा को धार्मिक–विरासत–पर्यटन, ईको–टूरिज़्म और ग्रामीण–सांस्कृतिक पर्यटन के संयुक्त सर्किट के रूप में विकसित किए जाने की संभावनाएँ हैं। अवागढ़ किला और आसपास के ऐतिहासिक स्थल, पटना पक्षी विहार, पारंपरिक घुँघरू–पीतल–उद्योग, लोक–उत्सव और नज़दीकी ज़िलों (आगरा, कासगंज, हाथरस, अलीगढ़) से बेहतर सड़क–और–रेल कनेक्टिविटी एटा को आधुनिक पर्यटन मानचित्र पर तेज़ी से उभरता हुआ गंतव्य बना सकती हैं।
एटा तक पहुँच सड़क और रेल दोनों मार्गों से सुगम है। राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों—जैसे एनएच–321, एनएच–91, यूपीएसएच–31 और यूपीएसएच–85—के माध्यम से एटा आगरा, अलीगढ़, कासगंज, फ़िरोज़ाबाद और बदायुं आदि से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। निकटतम हवाई अड्डा खेरिया एयरपोर्ट, आगरा (लगभग 100 किमी) है, जबकि एटा रेलवे स्टेशन से उत्तर भारत के प्रमुख शहरों के लिए रेल–सेवाएँ उपलब्ध हैं।www.uptourism.gov.in


