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Ibn Battuta Kaun Tha In Hindi: इब्न-ए-बतूता (1304-1369 ईस्वी) विश्व के महानतम यात्रियों, खोजकर्ताओं और लेखकों में से एक थे। उनका पूरा नाम इब्न बतूता मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद बिन इब्राहीम अललवाती अलतंजी अबू अबुल्लाह था। उन्होंने 14वीं शताब्दी में 120,000 वर्ग किलोमीटर की यात्रा की, जो उस युग में एक असाधारण उपलब्धि थी। उनकी यात्राओं ने इतिहास, भूगोल और सांस्कृतिक अध्ययन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आइए, उनके जीवन और यात्राओं को विस्तार से समझें।
प्रारंभिक जीवन (Ibn Battuta Real Life Story In Hindi)
इब्न-ए-बतूता का जन्म 24 फरवरी 1304 को उत्तर अफ्रीका में मोरक्को (Morocco) के टंगियर (Tangier) में हुआ था। उनका परिवार बर्बर मुस्लिम था, जो इस्लामी न्यायशास्त्र (फिक़ह) के क्षेत्र में जाना जाता था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा के दौरान इस्लामी कानून, न्यायशास्त्र और धर्मशास्त्र का अध्ययन किया। युवा अवस्था में ही उन्हें यात्रा और अन्वेषण की तीव्र इच्छा जागृत हो गई थी। हालांकि, एक जगह रहकर जीवन बिताने की बजाय, उन्हें जीवन का उद्देश्य खोजने का जुनून था।
यात्राओं की शुरुआत: 21 साल की उम्र में, उन्होंने हज के इरादे से टंगियर छोड़ दिया। पहली यात्रा मक्का की थी, लेकिन उनकी धार्मिक प्रवृत्ति, साहित्यिक रुचि और उत्सुकता ने उन्हें आगे बढ़ाया। उत्तरी अफ्रीका की यात्रा के दौरान उन्हें रेगिस्तान और डाकुओं का सामना करना पड़ा।
इराक, ईरान और मक्का का सफर: 1326 में हज के बाद इराक के बगदाद और ईरान के इस्फहान और शिराज का दौरा किया। इन शहरों की संस्कृति और साहित्यिक जीवन ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। 1327 से 1330 तक वे मक्का और मदीना में रहे, जहां विभिन्न इस्लामिक संस्कृतियों और लोगों से उनकी मुलाकात हुई।
अफ्रीका के पूर्वी तट की यात्रा: जेद्दा से यमन और अदन होते हुए उन्होंने अफ्रीका के पूर्वी तट का दौरा किया। इसके बाद वे फिर से मक्का लौट आए। इन यात्राओं ने उनके पर्यटन के प्रति रुचि को और अधिक बढ़ा दिया।
शादी और भारत में महिलाओं की स्थिति
इब्न बतूता की यात्रा के दौरान उनकी पहली शादी एक ऐसी महिला से हुई, जिसके पहले से ही दस बच्चे थे। इसके बाद, जहां-जहां वे रुके, उन्होंने एक नई शादी कर अपनी परंपरा को जारी रखा।
खानपान के विषय में इब्न बतूता लिखते हैं कि उस समय शाही दरबार में समोसे बेहद पसंद किए जाते थे। आम लोगों के भोजन में उड़द की दाल और आम के अचार का भी विशेष स्थान था।
अपने विवरण में इब्न बतूता उस समय भारत में महिलाओं की स्थिति का भी उल्लेख करते हैं। वे बताते हैं कि युद्ध में पराजित महिलाओं को दरबार में गुलाम बनाकर रखा जाता था। यदि कोई स्त्री संभ्रांत वर्ग के किसी व्यक्ति को पसंद आ जाती, तो वह उससे विवाह कर लेता था। अन्य महिलाओं से मजदूरी और वैश्यावृत्ति करवाई जाती थी। साथ ही, उन्होंने सती प्रथा के प्रचलन का भी जिक्र किया है, जो उस समय समाज में एक आम बात थी।
भारत की यात्रा

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
अफगानिस्तान के रास्ते भारत आगमन: इब्न-ए-बतूता ने मक्का-मदीना से ईरान, क्रीमिया, खीवा और बुखारा होते हुए अफगानिस्तान के रास्ते भारत की यात्रा की। 1334 ईस्वी में वह सिंध प्रांत में पहुंचे, जब भारत में मुहम्मद बिन तुगलक का शासन था।
दिल्ली पहुंचने पर मुहम्मद बिन तुगलक ने उन्हें 12,000 दीनार के वेतन पर शाही काजी के पद पर नियुक्त किया। मुहम्मद बिन तुगलक को इतिहास में सनकी शासक के रूप में जाना जाता है, और इब्न-ए-बतूता ने भी अपने यात्रा वृतांत ‘रिहला’ में इसका उल्लेख किया है।
इब्न-ए-बतूता ने लिखा कि दिल्ली का सुल्तान सबके लिए एक समान था। वह प्रतिदिन किसी भिखारी को अमीर बनाता और किसी न किसी को मौत की सजा देता था। एक बार उसने खुद को भी 21 छड़ी से मार खाने की सजा दी थी।
दिल्ली से पलायन

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
एक बार सुल्तान ने एक सूफी संत को बुलावा भेजा, लेकिन संत ने इनकार कर दिया। तुगलक ने संत का सिर कलम करवा दिया और उसके रिश्तेदारों और दोस्तों की सूची तैयार करवाई, जिसमें इब्न-ए-बतूता का नाम भी था। उन्हें तीन हफ्तों तक नजरबंद रखा गया। इब्न-ए-बतूता को शंका थी कि सुल्तान उन्हें मरवा सकता है। 1341 में उन्होंने तुगलक को सुझाव दिया कि उन्हें चीन के राजा के पास एक दूत के रूप में भेजा जाए। तुगलक सहमत हो गया और उन्हें तोहफे देकर चीन रवाना कर दिया। इस प्रकार 12 वर्षों तक भारत में रहने के बाद इब्न-ए-बतूता यहां से सुरक्षित निकलने में सफल रहे।
मालदीव, श्रीलंका और चीन की ओर यात्रा
दिल्ली से भागने के बाद उन्होंने मालदीव में दो साल काजी के रूप में बिताए। श्रीलंका, बंगाल, असम और सुमात्रा की यात्रा के बाद उन्होंने चीन के लिए अपने मिशन को फिर से शुरू किया। चीन की यह यात्रा भी खतरों से भरी थी, लेकिन वे अपने अध्ययन और खोज में लगे रहे।
रिहला: यात्रा वृतांत

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
‘रिहला’ का अर्थ है ‘यात्रा-वृतांत’। इब्न-ए-बतूता की यह पुस्तक उनके द्वारा देखे गए विभिन्न देशों की सभ्यता, संस्कृति, राजनीति, व्यापार और समाज का प्रमाणिक दस्तावेज है। रिहला में उन्होंने चीन, भारत, मध्य एशिया, अफ्रीका और यूरोप के देशों का सजीव चित्रण किया है। इस पुस्तक को ऐतिहासिक अध्ययन का एक अमूल्य स्रोत माना जाता है। इसमें उन्होंने 60 शासकों, कई मंत्रियों, गवर्नरों और 2000 से अधिक महत्वपूर्ण हस्तियों का उल्लेख किया।
इब्न-ए-बतूता की मृत्यु मोरक्को में हुई। उन्होंने अपनी यात्राओं और लेखन के माध्यम से जो ज्ञान का भंडार छोड़ा, वह आज भी अध्ययन और शोध का विषय बना हुआ है। इब्न बतूता की यात्रा ने दिखाया कि हज एक ऐसी चीज़ है जो इस्लामी दुनिया में मुसलमानों को एकजुट करती है। इस दौरान विचारों का आदान-प्रदान होता है और मुसलमानों को एक समान पहचान का एहसास होता है।
लगभग 30 वर्षों की यात्रा के दौरान, इब्न बतूता ने उत्तर अफ्रीका, मिस्र और स्वाहिली तट की यात्राएं कीं; अरब प्रायद्वीप पर मक्का पहुंचे, रास्ते में फिलिस्तीन और ग्रेटर सीरिया का दौरा किया; अनातोलिया और फारस होते हुए अफगानिस्तान तक गए; हिमालय पार कर भारत, फिर श्रीलंका और मालदीव पहुंचे; और पूर्वी चीन के तट तक पहुँचने के बाद वापस लौटते समय ज़िगज़ैग करते हुए मोरक्को तक का सफर तय किया। अभी भी संतुष्ट न होकर, उन्होंने सहारा रेगिस्तान में कुछ और वर्षों तक इधर-उधर की यात्राएं कीं। उन्होंने अपने प्रसिद्ध समकालीन मार्को पोलो से भी अधिक दूर तक यात्रा की और अधिक नई जगहों की खोज की।
इस शब्द के अस्तित्व में आने से पहले ही, इब्न बतूता एक सच्चे “पुनर्जागरण व्यक्ति” के रूप में जीवन जी रहे थे। एक प्रशिक्षित काज़ी (न्यायाधीश) होने के साथ-साथ, वे भूगोल, वनस्पति विज्ञान और इस्लामी धर्मशास्त्र में भी निपुण थे और उनके पास एक सामाजिक वैज्ञानिक जैसी तीक्ष्ण अवलोकन क्षमता थी। लेकिन जिस मुख्य कारण से इब्न बतूता आज भी याद किए जाते हैं, वह है उनकी लेखनी।
खानाबदोशी का जब भी भी ज़िक्र आया तो हुए इब्न बतूता का नाम लिए बिना पूरा ना हुआ। इसलिए सर्वेश्वर दयाल सक्सेना लिखते हैं,
इब्न बतूता पहन के जूता निकल पड़े तूफान में थोड़ी हवा नाक में घुस गई घुस गई थोड़ी कान में
इब्न-ए-बतूता की असाधारण यात्रा यह दर्शाती है कि ज्ञान की प्यास और खोज की भावना इंसान को कहीं भी ले जा सकती है। उनकी यात्रा न केवल व्यक्तिगत अनुभव थी बल्कि मानवता के लिए ज्ञान और शिक्षा का एक स्थायी स्रोत भी है।
आज इब्न-ए-बतूता को एक महान यात्री, खोजकर्ता और इतिहासकार के रूप में याद किया जाता है। उनकी ‘रिहला’ मध्यकालीन इतिहास, भूगोल और संस्कृति के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है। इब्न-ए-बतूता का जीवन और उनकी यात्राएं यह सिद्ध करती हैं कि ज्ञान, अन्वेषण और जिज्ञासा की कोई सीमा नहीं होती। उनके यात्रा वृतांत हमें न केवल भौगोलिक दृष्टिकोण से बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी एक व्यापक दृष्टि प्रदान करते हैं। उनके योगदान को आने वाली पीढ़ियां सदैव याद रखेंगी।