Gandhi Jayanti 2024 (Image Credit-Social Media)
India First Gandhi Aashram:�उत्तर प्रदेश का एक ऐसा शहर है जहाँ आपको देश का पहला गाँधी आश्रम मिल जायेगा। इतना ही नहीं आज़ादी के आंदोलन में भी इसका काफी अहम् योगदान रहा है। आइये जानते हैं कौन सा है ये शहर,कैसे ये बन गया ये खँडहर और क्या है इसका इतिहास।
आज़ादी की लड़ाई आसान नहीं थी लेकिन भारत के क्रांतिकरियों ने इसे अपने दम पर हासिल किया। वहीँ भारत की आज़ादी में अग्रणी भूमिका निभाने वाले और देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का योगदान सर्वोपरि रहा है। वहीँ 2 अक्टूबर को पूरा देश गाँधी जयंती मनाता है। ऐसे में जहाँ एक ओर देश की धरोहरों को सहेजा जा रहा है गाँधी वाटिका बनाकर भावी पीढ़ी को अहिंसा और सत्य की इस लड़ाई की शिक्षा देने का प्रयास हो रहा है वहीँ उत्तर प्रदेश के शहर में देश का पहला गाँधी आश्रम खँडहर बन चुका है और विलुप्त होने की कगार पर है।
सहारनपुर में स्थित देश का ये पहला गाँधी आश्रम है वहीँ इसका योगदान आज़ादी की लड़ाई में भी अहम् रहा है। जहाँ एक तरफ राज्य व केंद्र सरकारें ऐतिहासिक धरोहरों को सँभालने और उसे पर्यटक स्थल बनाकर सहेजने का प्रयास कर रहीं हैं। वहीँ दूसरी तरफ 1943 में स्थापित सहारनपुर के गांव घाटहेड़ा का गाँधी आश्रम अपनी बत्तर स्थिति में है और उपेक्षा का सामना भी कर रहा है वहीँ स्वतंत्रता की लड़ाई में इस आश्रम का योगदान काफी महत्वपूर्ण रहा है।
दरअसल अंग्रेजी हुकूमत के समय ये आश्रम स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आश्रय का स्थान था। वहीँ इस आश्रम में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और कांग्रेस नेता कमलापति त्रिपाठी जैसे लोग भी आया करते थे। वहीँ स्वतंत्रता की लड़ाई में जब मनानी रेलवे स्टेशन को फूंकने की योजना बन रही थी तब भी सभी क्रन्तिकारी इसी आश्रम में घंटों तक बैठकर मंत्रणा करते थे। जिसे सफलता के साथ पूरा भी किया गया। वहीँ यहाँ एक प्रशिक्षण केंद्र भी बनाया गया था।
ऐसे में ये आश्रम काफी महत्वपूर्ण है और देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपना विशेष महत्त्व रखता है। इस स्थान को सहेजना देश के लिए बेहद ज़रूरी है। इस गांव में रहने वाले लोग बताते हैं कि उस समय इसी गाँधी आश्रम में आसपास के 32 गांवों के लोग आते थे और ब्रिटिश हुकूमत से लड़ने की रणनीति बनाते थे।
जहाँ देश की बाकि सभी ऐतिहासिक धरोहरों को पर्यटन स्थल बनाया जा रहा है वहीँ 1943 के इस प्रथम गाँधी आश्रम की कोई सुध ली वाला भी नहीं है। कुछ समय अगर इसे ऐसे ही छोड़ दिया गया तो वो दिन दूर नहीं जब ये विलुप्त हो जाएगी। ये गांव गुर्जर बाहुल्य है और इसकी आबादी करीब 7,000 है। फिलहाल यहाँ के लोग इस ऐतिहासिक धरोहर को संजोने का काम करने में जुटे हुए हैं।