
Gauri Kund Kedarnath Yatra Guide (Image Credit-Social Media)
Gauri Kund Kedarnath Yatra
Gauri Kund Kedarnath Yatra Guide: अनगिनत ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों का गढ़ उत्तराखंड जिसे देवभूमि कहा जाता है, क्योंकि यहां हर घाटी, हर नदी और हर पत्थर किसी न किसी धार्मिक आस्था के साथ पौराणिक कथा से नाता रखता है। इन्हीं कथाओं और धार्मिक स्थलों की लंबी कतार में सबसे ज्यादा महत्व रखती है केदारनाथ की यात्रा। इस स्थल को वैसे तो शिव की महिमा से जोड़ कर देखा जाता है लेकिन शिव की अर्धांगिनी पार्वती का भी इस पवित्र स्थल से गहरा नाता है। जिसका जिक्र कैलाश यात्रा से जुड़ी कथाओं में किया गया है। यही वजह है कि इस यात्रा की शुरुआत होती है एक ऐसे स्थान से जो जितना छोटा दिखता है, उसका महत्व उतना ही विशाल है, यह स्थल गौरी कुंड के नाम से विख्यात है। गौरी कुंड सिर्फ एक जलस्रोत नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास और रहस्य का संगम है। यही वह जगह है जहां से केदारनाथ की कठिन यात्रा की शुरुआत होती है। जहां एक साधारण स्नान को पवित्र अनुष्ठान मानकर हर यात्री अपनी यात्रा का आरंभ करता है।
बेहद अद्भुत है हिमालय की गोद में बसे कुंड का चमत्कार
कैलाश धाम की यात्रा के दौरान रुद्रप्रयाग जिले की ऊंचाई पर बसा गौरी कुंड देखने में तो एक साधारण गर्म पानी का तालाब लगता है, लेकिन इसका रहस्य हर किसी को चकित कर देता है। वह है इसका पानी। बाहर बर्फ गिर रही हो, तापमान शून्य के नीचे चला जाए। यानी शरीर के भीतर खून भी जमने लग जाए। फिर भी इस कुंड का पानी हमेशा गर्म ही रहता है। यह किसी चमत्कार से कम नहीं है हालांकि वैज्ञानिक कहते हैं कि इसमें सल्फर की मात्रा अधिक है, जो पानी को गर्म बनाए रखती है और उसे औषधीय गुण भी देती है।

कड़कड़ाती ठंड में जब यात्री इस पवित्र कुंड तक पहुंचते हैं और इस पानी में डुबकी लगाते हैं, तो वे तन-मन दोनों है एक असीम शांति और ऊर्जा को महसूस करते हैं। यहां स्नान करते ही शरीर की सारी थकान छूमंतर हो जाती है। मांसपेशियों में शक्ति का ऐसा संचार होता है जिससे आगे की कठिन चढ़ाई के लिए एक नई ऊर्जा मिलती है।
गौरी कुंड देवी पार्वती की तपस्या की धरती
गौरी कुंड की असली पहचान उसकी पौराणिक कथाओं से जुड़ी है। कहते हैं कि यहीं पर देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। वर्षों तक उन्होंने इस जगह पर साधना की। अंततः उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव प्रकट हुए और उनसे विवाह किया। यही कारण है कि यह स्थान ‘गौरी’ यानी पार्वती के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
यही कारण है कि श्रद्धालु मानते हैं कि यहां स्नान करने से देवी गौरी का आशीर्वाद मिलता है और जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं।
बेहद रोचक हैं स्नान से जुड़ी मान्यताएं और आस्था
गौरी कुंड में स्नान करना केवल शरीर को शुद्ध करने की क्रिया नहीं है। यह आत्मा को भी शांति और पवित्रता प्रदान करने का साधन माना जाता है। यात्री यहां आकर जब जल में डुबकी लगाते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे वे अपने भीतर के सारे बोझ, सारी नकारात्मकता को वहीं छोड़कर आगे बढ़ रहे हों।कहा जाता है कि इस पवित्र जल में डुबकी लगाने से पिछले जन्मों तक के पाप मिट जाते हैं। साथ ही अविवाहित कन्याएं यहां स्नान करके अपने लिए उत्तम जीवनसाथी की कामना करती हैं, जबकि विवाहित स्त्रियां अपने सुहाग, परिवार और सुखी वैवाहिक जीवन की खुशहाली के लिए प्रार्थना करती हैं। यही वजह है कि हर भक्त अपनी यात्रा की शुरुआत इस स्नान से करना शुभ मानता है।
यात्रा से पहले मां गौरी का आशीर्वाद स्वरूप महत्व रखता है गौरी कुंड

केदारनाथ मार्ग की चढ़ाई आसान नहीं है। ऊबड़ खाबड़ पथरीले रास्तों से भरे ऊंचे – ऊंचे पहाड़, बर्फ से ढकी पगडंडियां और ठंडी हवाएं यहां हर यात्री की आस्था और धैर्य की परीक्षा लेती हैं। लेकिन गौरी कुंड का स्नान इस कठिनाई से पहले एक आशीर्वाद की तरह अपनी भूमिका निभाता है। गर्म पानी की डुबकी से मिली ऊर्जा शरीर को थकने नहीं देती। मन को प्रफुल्लित और सकारात्मक रखती है। जब यात्री गौरी कुंड से आगे बढ़ते हैं, तो उन्हें लगता है कि वे सिर्फ पहाड़ पर नहीं चढ़ रहे, बल्कि किसी दिव्य शक्ति की ओर बढ़ रहे हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से भी यह स्नान आत्मा को शुद्ध करता है और भगवान शिव के दर्शन के लिए व्यक्ति को योग्य बनाता है। मान्यता है कि जो यहां स्नान करता है, उसकी यात्रा निर्विघ्न और सफल होती है।
गौरी कुंड से जुड़ी है गणेश जी की कथा
गौरी कुंड को लेकर एक और प्रसिद्ध कथा है, जो भगवान गणेश से जुड़ी है। कहा जाता है कि जब देवी पार्वती स्नान कर रही थीं, तब उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक बालक की रचना की और उसे द्वार पर पहरा देने को कहा। वही बालक गणेश थे। जब भगवान शिव आए और गणेश ने उन्हें रोक दिया तो क्रोधित होकर उन्होंने उनका सिर काट दिया। बाद में जब सच्चाई सामने आई तो भगवान शिव ने हाथी का सिर लगाकर गणेश को पुनः जीवन दिया।
इस कथा के कारण भी गौरी कुंड को अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहां न केवल देवी पार्वती की तपस्या की स्मृति जुड़ी है, बल्कि गणेश जी की उत्पत्ति की कथा भी इस स्थान को विशेष बनाती है।
गौरी कुंड से जुड़े हैं कई रहस्य
गौरी कुंड की सबसे रहस्यमय बात यह है कि इसका पानी कभी सूखता नहीं और मौसम चाहे कैसा भी हो, यह हमेशा गर्म ही रहता है। स्थानीय लोग मानते हैं कि यह केवल प्राकृतिक स्रोत नहीं, बल्कि देवी पार्वती की तपस्या का आशीर्वाद है। श्रद्धालु कहते हैं कि इस पानी में स्नान करने से न सिर्फ शरीर शुद्ध और पवित्र होता है, बल्कि मन के बुरे विचार और नकारात्मकता भी धुल जाती है। यही कारण है कि इस जगह पहुंचकर हर कोई अपने आप को हल्का और सकारात्मक महसूस करता है। आधुनिक समय में भी गौरी कुंड अपनी आस्था और महिमा के कारण उतना ही महत्वपूर्ण है जितना सदियों पहले था। हर साल लाखों यात्री यहां पहुंचते हैं, स्नान करते हैं और फिर केदारनाथ की ओर निकल पड़ते हैं। आसपास धर्मशालाएं और छोटे-बड़े आश्रम बने हैं, जहां यात्री ठहरते हैं। 2013 की आपदा में यह क्षेत्र भारी तबाही से गुज़रा, लेकिन आस्था की शक्ति इतनी गहरी थी कि कुछ ही वर्षों में इस स्थान ने फिर से अपनी पहचान को पुनर्जीवित कर लिया। गौरी कुंड कोई साधारण जलकुंड नहीं, बल्कि यह श्रद्धा, इतिहास और अध्यात्म का संगम है। देवी पार्वती की तपस्या, भगवान गणेश की उत्पत्ति, जल के औषधीय गुण और आध्यात्मिक परंपराएं ये सब मिलकर इस स्थान को एक दिव्यता प्रदान करते हैं।