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    Home » Gia Ka Famous Mahadev Temple: गोवा में 12वीं सदी का प्राचीन सिद्ध शिव मंदिर, जहां शिवरात्रि पर लगती है भक्तों भीड़
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    Gia Ka Famous Mahadev Temple: गोवा में 12वीं सदी का प्राचीन सिद्ध शिव मंदिर, जहां शिवरात्रि पर लगती है भक्तों भीड़

    By January 22, 2025No Comments5 Mins Read
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    Goa Famous Tambdi Surla Lord Shiva Temple History 

    Goa Tambdi Surla Mahadev Temple History: जश्न और समुद्र तट पर मौज मस्ती के साथ समुद्री भोजन के लिए मशहूर गोवा जैसे शहर से आध्यात्म का नाता कम ही देखने को मिलता है। लेकिन जंगल में छिपा 12वीं सदी का मंदिर तटीय राज्य में किसी शांत और मनोरम स्थल से कम नहीं है। भगवान शिव को समर्पित, मध्ययुगीन महादेव मंदिर राज्य की राजधानी पणजी से लगभग 65 किलोमीटर दूर, संगुएम जिले के तांबडी सुरला गाँव में मौजूद है।अमोघ घाट में जंगलों और जलधाराओं के बीच बसा गोवा का ताम्बडी सुरला महादेव पत्थर अपने ऐतिहासिक महत्व के साथ ही साथ अपने खास आर्किटेक्ट के लिए भी जाना जाता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खूबी है कि इसका निर्माण बिना किसी गारे यानी पत्थरों को चिपकाने वाले पदार्थ के किया गया है। यह धार्मिक स्थल लोगों के बीच श्रद्धा का भी केंद्र बना हुआ है।आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में-

    पुर्तगाली आक्रमण के बाद भी सुरक्षित रहा यह मंदिर

    गोवा का यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जो 1561 में पुर्तगाली आक्रमण के बाद भी सुरक्षित बचा हुआ है। सबसे बड़ी बात यह है कि 1541 में गोवा में पुर्तगाली उपनिवेश में मूर्ति पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद पुर्तगाली सैनिकों ने 350 से ज़्यादा मंदिरों को नष्ट कर दिया। लेकिन यह मंदिर घने जंगलों से ढके हुए अपने एकांत स्थान के कारण सदियों तक इन शासकों के हमलों से बचने में सक्षम रहा। गोवा का यह जैन स्थापत्य शैली में बना मंदिर है। लेकिन इसमें भगवान शिव विराजमान मिलते हैं। कहा जाता है कि इसे कदंब वंश ने बनवाया था। आज, पर्यटकों और स्थानीय लोगों को मंदिर तक ले जाने के लिए सड़कें हैं।

    स्थानीय लोगों का मानना है कि मंदिर परिसर में सदियों से एक विशाल किंग कोबरा रहता है। हालाँकि, अभी तक इसके दिखने की कोई सूचना नहीं मिली है।

    यादव वंश की याद दिलाता है ताम्बडी सुरला मंदिर

    ताम्बडी सुरला मंदिर की खासियत यह है कि यह कदंब यादव वंश की स्थापत्य कला की याद दिलाता है। स्थापत्य शैली का नाम इसके संस्थापक हेमंद पंडित (1259-1274 ई.) के नाम पर रखा गया है, जो देवगिरी के सेउना यादवों के प्रधानमंत्री के तौर पर रसूख रखते थे। इस स्थापत्य शैली के उपयोग के कारण, कुछ लोग मंदिर का श्रेय हेमंद पंडित को देते हैं।

    जबकि इतिहासकारों के अनुसार, मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में कदंब रानी कमलादेवी ने करवाया था और यह बेसाल्ट से नहीं बना है, जैसा कि आम तौर पर माना जाता है, बल्कि यह भूरे-काले टैल्क क्लोराइट शिस्ट सोप स्टोन से बना है। लेकिन अभिलेखों के अनुसार यह काले बेसाल्ट पत्थर से बना है, वे यह भी कहते हैं कि पत्थर दक्कन के पठार से लाया गया था, जिसे उस समय के दौरान कीमती खनिजों का खजाना माना जाता था। जबकि कई अन्य लोगों का कहना है कि ग्रे-ब्लैक सोपस्टोन प्राथमिक सामग्री का इस्तेमाल किया गया है। इस मंदिर में मनाया जाने वाला मुख्य त्यौहार शिवरात्रि है।

    आकर्षक है इस मंदिर की वास्तुकला

    मंदिर की वास्तुकला बेहद आकर्षक है। इस मंदिर का निर्माण उत्तम प्रकार की बेसाल्ट चट्टानों द्वारा किया गया है। भले ही इस मंदिर का आकार गोवा के अन्य मंदिरों की तुलना में काफी छोटा है। इस मंदिर में कंदब शैली की वास्तुकला देखी जा सकती है। मंदिर में एक छोटा सा मंडप है, जिसमें भगवान शिव के वाहन के रूप में एक सिरहीन नंदी की मूर्ति मौजूद है, जो चारों ओर से पत्थर के तख्तों से घिरी हुई है। जिसके बीच में एक खंभे वाला हॉल है मंदिर के अंदर जटिल डिजाइन वाली मूर्तियां कर्नाटक के प्राचीन ऐतिहासिक मंदिरों से मिलती जुलती हैं, जिन्हें कदंबों ने भी बनवाया था । एक प्रमुख साम्राज्य जिसने इन प्रांतों पर शासन किया था। इस मंदिर में भगवान शिव की स्थापना की गई है।

    लेकिन इसके अलावा यहां ब्रह्मा और विष्णु की प्रतिमाएं भी स्थित हैं। इस मंदिर में आपको कदंब राजतंत्र के प्रतीक के रूप में हाथी का चित्रण भी देखने को मिलेगा। हालांकि इस मंदिर की एक विशेषता यह है कि इसके गुंबद का निर्माण पूरा नहीं हो सका। जिसके कारण यह मंदिर पूरी तरह से नहीं बन सका। साथ ही इस मंदिर का द्वार पूर्व दिशा में है। सूर्य की पहली किरण के साथ ये मंदिर रौशनी से नहा उठता है। ताम्बडी सुरला महादेव मंदिर के निर्माण के लिए, पत्थरों को कुशल राजमिस्त्रियों द्वारा सटीक रूप से काटा गया था और संरचनात्मक अखंडता बनाए रखने के लिए किसी भी चिपकने वाले पदार्थ का उपयोग किए बिना एक दूसरे के ऊपर कारीगरी के साथ सेट किया गया है। मंदिर में गर्भगृह, अंतराल और एक मंडप है। मंडप में तीन तरफ़ बैठने की व्यवस्था के साथ प्रवेश द्वार हैं। हाथियों और जंजीरों की बेहतरीन नक्काशी से सजे चार स्तंभ पत्थर की छत को सहारा देते हैं, जिसे अष्टकोण किस्म के जटिल नक्काशीदार कमल के फूलों से सजाया गया है। शिवलिंग आंतरिक गर्भगृह के अंदर एक आसन पर स्थापित है।

    भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण या एएसआई के अनुसार, मंदिर का अंतराल और गर्भगृह धारवाड़ के बलम्बी में कल्लेश्वर मंदिर और बेलगावी के जैन मंदिर से मिलता जुलता है। गर्भगृह की बाहरी दीवार एक छिद्रित पत्थर की जालीदार स्क्रीन का उपयोग करके बनाई गई है। यह होयसल कला के मजबूत प्रभाव का संकेत देती है। इस पर देवकोष्ट या अधीनस्थ देवताओं की नक्काशी की गई है।

    पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है यह मंदिर

    पश्चिमी घाट की तलहटी में बसा ताम्बडी सुरला भगवान महावीर मंदिर यहां जंगलों के बीच मौजूद अभयारण्य द्वार से लगभग 18 किमी दूर है। इस स्थल की हरियाली, शांति और ऐतिहासिक महत्व के कारण यहाँ पर्यटकों का आना जाना लगा रहता हैं।

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