Close Menu
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Trending
    • सेना पर दिये अपने बयान से पलटे डिप्टी सीएम देवड़ा, बोले- मेरे बयान तोड़-मरोड़कर किया गया पेश
    • नीरव मोदी को फिर से बड़ा झटका, यूके हाईकोर्ट ने जमानत याचिका खारिज की
    • Hathila Baba Dargah History: कौन थे हठीले शाह ? जिनकी दरगाह हैं सांप्रदायिक समरसता का प्रतीक, यहां के ऐतिहासिक रौजा मेला पर क्यों लगा है प्रतिबंध?
    • विपक्षी दलों को केंद्र के प्रेसिडेंशियल रेफ़रेंस पर आपत्ति क्यों? जानें स्टालिन जैसे नेता क्या बोले
    • Bihar Election 2025: चुनाव से पहले महिलाओं को लुभाने में लगे नीतीश कुमार, दी ये बड़ी सुविधा
    • Bihar Election 2025:BJP पर भारी पड़ रही RJD? क्या बदल रहा है बिहार का मूड? जानें इस बार किसका पलड़ा भारी
    • रिजर्व वन भूमि वापस लेने का आदेश, राज्य एसआईटी बनाकर जांच करेंः सुप्रीम कोर्ट
    • एस जयशंकर ने तालिबान विदेश मंत्री से बातचीत के मायने क्या?
    • About Us
    • Get In Touch
    Facebook X (Twitter) LinkedIn VKontakte
    Janta YojanaJanta Yojana
    Banner
    • HOME
    • ताज़ा खबरें
    • दुनिया
    • ग्राउंड रिपोर्ट
    • अंतराष्ट्रीय
    • मनोरंजन
    • बॉलीवुड
    • क्रिकेट
    • पेरिस ओलंपिक 2024
    Home » Gond Tribe Ka Janamsthal: कचारगढ़, गोंड आदिवासियों का आध्यात्मिक और प्राकृतिक तीर्थस्थल
    Tourism

    Gond Tribe Ka Janamsthal: कचारगढ़, गोंड आदिवासियों का आध्यात्मिक और प्राकृतिक तीर्थस्थल

    Janta YojanaBy Janta YojanaApril 12, 2025No Comments7 Mins Read
    Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter LinkedIn Pinterest Email

    Gond Tribe Ka Janamsthal (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    Gond Tribe Ka Janamsthal (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    Gond Tribe Ka Janamsthal: महाराष्ट्र के पूर्वी छोर पर स्थित गोंदिया (Gondia) ज़िले का नाम सुनते ही अधिकांश लोगों के मन में नक्सल प्रभावित क्षेत्र (Naxal Affected Area) की छवि उभरती है। लेकिन इस छवि के पीछे एक और चेहरा छिपा है, जैव विविधता से भरपूर, घने जंगलों से घिरा और ऐतिहासिक व आध्यात्मिक महत्व से संपन्न कचारगढ़।

    यह स्थान न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि गोंड आदिवासियों (Gond Tribe) के आराध्य देवताओं का भी प्रमुख तीर्थ है। यह गुफा, जो गोंदिया ज़िले की सालेकसा तहसील में स्थित है, सालेकसा से लगभग 7 किमी और ज़िला मुख्यालय से 55 किमी दूर है। नज़दीकी रेलवे स्टेशन सालेकसा है, जो गोंदिया-दुर्ग मार्ग पर स्थित है, जहाँ से दरेकसा-धनेगांव मार्ग होते हुए इस गुफा तक पहुँचा जा सकता है।

    इस गुफा को ध्यान से देखने पर लोहे और अन्य खनिजों के कच्चे अवशेष दिखाई देते हैं। हो सकता है इसलिए भी इस स्थान को नाम ‘कचारगढ़’ (Kachargarh) के नाम से जाना जाता हो। कचारगढ़, जो हज़ारों वर्षों से गुमनामी के अभिशाप से घिरा हुआ था, आखिरकार यह आदिवासी संस्कृति के शोधकर्ताओं और इतिहासकारों की नज़रों में आया। उन्होंने इस स्थान को खोजा और इसका अध्ययन किया और इस नतीजे पर पहुंचे कि यहीं गोंड आदिवासियों का मूलस्थान है।

    कचारगढ़ की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता (Religious and Cultural Importance of Kachargadh)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    कचारगढ़ गुफा (Kachargarh Cave) गोंड आदिवासी समाज का अत्यंत पवित्र धार्मिक स्थल (Gond Tribe Religious Place) है। यहाँ हर वर्ष माघी पूर्णिमा के अवसर पर लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं। यह एक वार्षिक तीर्थयात्रा का स्वरूप ले चुकी है, जिसमें लगभग चार से पांच लाख श्रद्धालु एवं पर्यटक सम्मिलित होते हैं। इस यात्रा को कचारगढ़ गढ़ यात्रा कहा जाता है।

    गोंड समाज के लोग मानते हैं कि यही वह स्थान है जहाँ गोंड संस्कृति की उत्पत्ति हुई थी। यहाँ के घने जंगलों और पर्वतीय गुफाओं में उनके आदिवासी देवताओं– पारी कुपार लिंगो, माँ काली कंकाली, माता जंगो, बाबा जंगो, और शंभूसेक का निवास स्थान माना जाता है।

    कचारगढ़ गुफा: एक प्राकृतिक आश्चर्य

    यह गुफा पर्वत पर 518 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। प्रारंभ में दिखने वाली छोटी गुफा करीब 10 फ़ुट ऊँची, 12 फ़ुट चौड़ी और 20 फ़ुट लंबी है। लेकिन इसके पास ही मुख्य गुफा स्थित है, जिसका मुख 40 फ़ुट ऊँचाई पर चट्टान में खुलता है।

    गुफा के भीतर पहुँचने पर इसकी विशालता सामने आती है— यह लगभग 25 फ़ुट ऊँची, 60 फ़ुट चौड़ी और 100 फ़ुट लंबी है। इसके भीतर एक चट्टान में छेद है जिससे सूरज की रोशनी हर समय गुफा में प्रवेश करती रहती है। गुफा की दीवारों और ज़मीन पर खनिज तत्वों के चिह्न दिखाई देते हैं, जिससे यह संभावना भी जताई जाती है कि ‘कचारगढ़’ नाम शायद ‘कच्चे खनिज’ (कचा लोहा) से जुड़ा हो।

    गोंडी धर्म का उद्गम और पारी कुपार लिंगो गोंडी संस्कृति के रचनाकार पारी कुपार लिंगो ने गोंड जनजातियों को एक साथ लाने के लिए 33 वंश और 12 पेन को मिलाकर 750 गोत्रों की रचना की। इन गोत्रों को एक सूत्र में बाँधने की प्रक्रिया को गोंडी भाषा में ‘कच्चा’ कहा जाता है, जिससे संभवतः इस स्थान का नाम कचारगढ़ पड़ा।

    गोंड जनजातियों की पौराणिक मान्यता (Mythological Belief of Gond Tribe)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    गोंड बुज़ुर्गों की मान्यता है कि कचारगढ़ ही वह स्थान है जहाँ तीन हजार वर्ष पूर्व गोंड जनजाति की उत्पत्ति हुई थी। किंवदंती के अनुसार, माता गौरी के 33 पुत्र, जो अत्यंत उपद्रवी हो गए थे, उन्हें शंभूसेक ने एक गुफा में बंद कर दिया और दरवाजे पर एक विशाल पत्थर रख दिया। इस पर माँ काली कंकाली भावुक हुईं और उन्होंने संगीत सम्राट हिरासुका पाटारी को भेजा। उसकी संगीत की शक्ति से युवाओं में ऊर्जा उत्पन्न हुई और उन्होंने पत्थर को धकेलकर बाहर का रास्ता बनाया, किंतु पत्थर के नीचे दबकर पाटारी की मृत्यु हो गई।

    बाहर निकलने के बाद वे 33 युवक विभिन्न प्रदेशों में बस गए और समय के साथ उनका वंश फैला। फिर पारी कुपार लिंगो ने उन वंशों को संगठित कर एक संस्कृति का निर्माण किया, जिसमें 33 वंश, 12 पेन और 750 कुल (गोत्र) सम्मिलित हुए। गोंडी भाषा में ‘एक सूत्र में बाँधने’ की क्रिया को ‘कच्चा’ कहते हैं, जिससे यह स्थान ‘कचारगढ़’ कहलाया।

    गुफाओं की पुनः खोज और आधुनिक तीर्थ

    समय के साथ इस स्थान का पता लोगों की स्मृति से मिट गया था, परंतु यह स्थान गोंड समुदाय की मौखिक परंपराओं और लोकगाथाओं में जीवित रहा।

    1980 के दशक में आदिवासी विद्यार्थी संघ के युवाओं ने गुफा की तलाश प्रारंभ की। लेखक मोतीरावन कंगाली, शोधकर्ता के.बी. मरसकोल्हे, गोंड राजा वासुदेव शहा टेकाम सहित अन्य शोधार्थियों ने दरेकसा क्षेत्र की पहाड़ियों में गुफा की खोज की। एक गुफा मिली जिसकी छत में छेद था और द्वार पर एक विशाल पत्थर पड़ा हुआ था, जो मान्यताओं के अनुसार प्रतीकात्मक रूप से ‘धकेला हुआ’ प्रतीत होता था।

    1984 में माघ पूर्णिमा के दिन धनेगांव से पाँच गोंड श्रद्धालुओं ने गोंडी धर्म का झंडा फहराकर यात्रा का शुभारंभ किया। यही कचारगढ़ यात्रा की आधिकारिक शुरुआत मानी जाती है। आज यह यात्रा गोंड आदिवासी समुदाय के लिए एक धार्मिक और सामाजिक चेतना का पर्व बन गई है।

    सामाजिक निर्णयों का मंच

    कचारगढ़ यात्रा केवल धार्मिक महत्व तक सीमित नहीं है, यह एक ऐसा अवसर बन गया है जहाँ गोंड समाज अपने भविष्य से जुड़े बड़े निर्णय भी लेता है। उदाहरण के लिए, बीते वर्षों में एक महत्वपूर्ण निर्णय यह लिया गया कि वनों से बांस उद्योग के लिए नहीं काटे जाएँगे। यह निर्णय गोंड समाज की प्रकृति के प्रति गहरी आस्था और ज़िम्मेदारी को दर्शाता है।

    यहाँ लोग पारंपरिक नृत्य, नाटक और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक पहचान को व्यक्त करते हैं। यह न केवल गोंड जनजाति की एकजुटता को दर्शाता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का भी माध्यम बनता है।

    गोंड जनजाति से जुड़ी अद्भुत और रोचक बातें (Amazing and Interesting Facts Related to Gond Tribe)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    सबसे बड़ी आदिवासी जनजाति: गोंड भारत की सबसे बड़ी आदिवासी जनजातियों में से एक है, जिनकी आबादी लाखों में है और ये मध्य भारत (मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़) में सबसे अधिक पाई जाती है।

    गोंडी धर्म और देवता: गोंड लोग अपने विशिष्ट गोंडी धर्म का पालन करते हैं, जिसमें 33 सगापेन (पूर्वज) और 12 पेन (देवता) पूजनीय हैं।

    संगीत से चमत्कार: गोंड पौराणिक कथा अनुसार, संगीतकार हिरासुका पाटारी ने अपने संगीत से 33 युवकों में शक्ति भर दी जिससे वे विशाल पत्थर को हटाकर गुफा से बाहर निकल सके।

    कचारगढ़ गुफा: गोंडों का पवित्र तीर्थस्थल — कचारगढ़ — एशिया की सबसे बड़ी प्राकृतिक गुफाओं में से एक मानी जाती है, जो गोंड पूर्वजों का निवास स्थान रही है।

    गोत्र व्यवस्था: गोंड समाज में 750 कुल (गोत्र) होते हैं जो 33 वंश और 12 पेन के आधार पर बने हैं। हर गोत्र की अपनी अलग परंपरा और देवता हैं।

    गोंडी भाषा की लिपि: गोंडी भाषा की अपनी एक लिपि है जिसे ‘गोंडी लिपि’ कहा जाता है। हालांकि आज इसका प्रयोग कम है, पर इसे पुनर्जीवित करने के प्रयास हो रहे हैं।

    गोंड आर्ट: गोंड पेंटिंग्स दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। ये चित्रकारी प्रकृति, जानवरों, लोककथाओं और देवी-देवताओं पर आधारित होती है और इसकी शैली बहुत विशिष्ट होती है।

    परंपरागत योद्धा: ऐतिहासिक रूप से गोंड जनजाति के कई योद्धा और राजा हुए हैं जैसे राजा हिरदे शाह और राजा बख्त बुलंद, जिन्होंने गोंडवाना राज्य को समृद्ध किया।

    प्रकृति के उपासक: गोंड आदिवासी पेड़-पौधों, पहाड़ों, नदियों को पूजते हैं और जंगलों को देवताओं का घर मानते हैं।

    माघी पूर्णिमा का तीर्थ: माघ पूर्णिमा के अवसर पर लाखों गोंड तीर्थयात्री कचारगढ़ की यात्रा करते हैं जिसे कोयापूनेम यात्रा कहा जाता है।

    शब्द ‘गोंड’ की उत्पत्ति: ‘गोंड’ शब्द, तेलुगु शब्द ‘कोंड’ से निकला माना जाता है, जिसका अर्थ होता है ‘पहाड़ी’ या ‘पर्वतीय लोग’।

    भौगोलिक विस्तार: गोंड जनजाति का ऐतिहासिक क्षेत्र ‘गोंडवाना’ कहलाता है, जो इतना विशाल था कि उसी नाम पर एक भूगर्भीय सुपरकॉन्टिनेंट (Gondwana Land) का नाम पड़ा।

    कचारगढ़ केवल एक गुफा नहीं, बल्कि गोंड समाज की आत्मा का प्रतीक है। यह वह स्थान है जहाँ इतिहास, धर्म, प्रकृति और संस्कृति एक सूत्र में बंधकर आदिवासी समाज को उसकी जड़ों की याद दिलाते हैं।

    यह यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि गोंडवाना की आत्मा की पुकार है, जो हर वर्ष लाखों श्रद्धालुओं को बुलाती है — अपने पूर्वजों की स्मृति, संस्कृति की गरिमा और प्रकृति के सम्मान की ओर।

    Share. Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous ArticleMoradabad News: वक्फ बिल के विरोधियों पर जमकर बरसे आचार्य प्रमोद कृष्णम, कहा- भारत की भूमि पर केवल भारत का अधिकार
    Next Article पीएम मोदी ने किया क्रेडिट चोरी, कांग्रेस ने लगा दिया आरोप,कहा, इस मामले में मोदी जी को कोई श्रेय नहीं जाता
    Janta Yojana

    Janta Yojana is a Leading News Website Reporting All The Central Government & State Government New & Old Schemes.

    Related Posts

    Hathila Baba Dargah History: कौन थे हठीले शाह ? जिनकी दरगाह हैं सांप्रदायिक समरसता का प्रतीक, यहां के ऐतिहासिक रौजा मेला पर क्यों लगा है प्रतिबंध?

    May 16, 2025

    सिर्फ घूमने नहीं! अब ‘सोने’ के लिए भी निकले लोग, जानिए क्या है स्लीपिंग टूरिज्म और भारत में इसके टॉप डेस्टिनेशन

    May 15, 2025

    Uttarakhand Dharali Village: देवभूमि उत्तराखंड का छिपा हुआ स्वर्ग, आइए जाने कैसे पहुँचे यहाँ

    May 15, 2025
    Leave A Reply Cancel Reply

    ग्रामीण भारत

    गांवों तक आधारभूत संरचनाओं को मज़बूत करने की जरूरत

    December 26, 2024

    बिहार में “हर घर शौचालय’ का लक्ष्य अभी नहीं हुआ है पूरा

    November 19, 2024

    क्यों किसानों के लिए पशुपालन बोझ बनता जा रहा है?

    August 2, 2024

    स्वच्छ भारत के नक़्शे में क्यों नज़र नहीं आती स्लम बस्तियां?

    July 20, 2024

    शहर भी तरस रहा है पानी के लिए

    June 25, 2024
    • Facebook
    • Twitter
    • Instagram
    • Pinterest
    ग्राउंड रिपोर्ट

    किसान मित्र और जनसेवा मित्रों का बहाली के लिए 5 सालों से संघर्ष जारी

    May 14, 2025

    सरकार की वादा-खिलाफी से जूझते सतपुड़ा के विस्थापित आदिवासी

    May 14, 2025

    दीपचंद सौर: बुंदेलखंड, वृद्ध दंपत्ति और पांच कुओं की कहानी

    May 3, 2025

    पलायन का दुश्चक्र: बुंदेलखंड की खाली स्लेट की कहानी

    April 30, 2025

    शाहबाद के जंगल में पंप्ड हायड्रो प्रोजेक्ट तोड़ सकता है चीता परियोजना की रीढ़?

    April 15, 2025
    About
    About

    Janta Yojana is a Leading News Website Reporting All The Central Government & State Government New & Old Schemes.

    We're social, connect with us:

    Facebook X (Twitter) Pinterest LinkedIn VKontakte
    अंतराष्ट्रीय

    नीरव मोदी को फिर से बड़ा झटका, यूके हाईकोर्ट ने जमानत याचिका खारिज की

    May 16, 2025

    ऑपरेशन सिंदूर में तबाह मलबे पर फिर लश्कर का महल बनाएगा, आतंक से मोहब्बत नहीं छिपा पाया पाक

    May 15, 2025

    पाक के साथ टेंशन के बीच भारत के दरवाजे पर पहुंचा चीन का जासूसी जहाज, ड्रैगन की समुद्र में बड़ी चाल !

    May 15, 2025
    एजुकेशन

    बैंक ऑफ बड़ौदा में ऑफिस असिस्टेंट के 500 पदों पर निकली भर्ती, 3 मई से शुरू होंगे आवेदन

    May 3, 2025

    NEET UG 2025 एडमिट कार्ड जारी, जानें कैसे करें डाउनलोड

    April 30, 2025

    योगी सरकार की फ्री कोचिंग में पढ़कर 13 बच्चों ने पास की UPSC की परीक्षा

    April 22, 2025
    Copyright © 2017. Janta Yojana
    • Home
    • Privacy Policy
    • About Us
    • Disclaimer
    • Feedback & Complaint
    • Terms & Conditions

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.