Footprints Of Hanuman Ji Around The World (Photos – Social Media)
Hanuman Ji Famous Mandir: दुनिया भर के अलग-अलग स्थान पर 2 फुट से लेकर 6 फीट तक के लंबे पद चिन्ह देखने को मिलते हैं। इन चिन्हों को देखकर हर कोई यह सोचता है कि यह विशालकाय मानव के पद चिन्ह हैं। लोगों को ऐसा लगता है कि मानव ने यह पद चिन्ह अपने हाथों से बने हैं लेकिन सवाल ही होता है कि अगर मानव ने बनाए हैं तो किसी जंगल में निर्जन स्थान या फिर ऊंची पहाड़ियों पर इन्हें क्यों बनाया है। इस बात से यही सिद्ध होता है कि यह या तो भगवान शिव के भजन है या फिर इसे हनुमान जी से जोड़कर देखा जाता है। इन पद चिन्हों के दर्शन करने के बाद लोग अपने आप को धन्य महसूस करते हैं। चलिए आज हम आपको बताते हैं की धरती पर कहां-कहां भगवान हनुमान ने अपने कदम रखे थे और वहां पर उनके पैरों के निशान बन गए थे।
हनुमान पद श्रीलंका (Hanuman Pada Sri Lanka)
श्रीलंका एक ऐसी जगह है जहां हनुमान जी सीता जी को खोजने के लिए समुद्र पार करके गए थे और भव्य रूप धारण कर लिया था। जहां पर उन्होंने अपने पहले कदम रखे थे वहां उनके पैरों के निशान बन गए थे और यह आज भी वहां मौजूद है जैसे हनुमान पद कहा जाता है।
हनुमान पद लेपाक्षी आन्ध्र प्रदेश (Hanuman Pad Lepakshi Andhra Pradesh)
हनुमान जी यहां पर दर्द से तड़प रहे जटायु से मिले थे। राम ने यहां जटायु को मोक्ष प्राप्त करने में मदद की थी और लेपाक्षी दो शब्द कहे थे जिसका अर्थ पक्षी उदय होता है। यहां पर आपको बहुत बड़े कदमों के छाप मिलेंगे जिन्हें हनुमान जी का बताया जाता है।
हनुमान पद जाखू शिमला (Hanuman Pad Jakhu Shimla)
हिमाचल के शिमला में जाखू मंदिर है जहां पर हनुमान जी के पद चिन्ह देखने को मिलते हैं। मान्यता है कि राम रावण युद्ध के दौरान लक्ष्मण जी की मूर्छित हो जाने पर संजीवनी के लिए हिमालय की हनुमान जी इसी मार्ग से जा रहे थे। उनकी नजर यहां तपस्या कर रहे हैं यक्ष ऋषि पर पड़ी और बाद में इस जगह को याख और याखू और जाखू के नाम से पहचाना जाने लगा।
हनुमान पद पेनांग मलेशिया (Hanuman Pada Penang Malaysia)
यह हैरान कर देने वाली बात है लेकिन यहां के पेनांग में एक मंदिर है जिसके भीतर हनुमान जी के पैरों के निशान है। लोग अच्छे भाग्य के लिए इन पदचिन्हों पर सिक्के फेंकते हैं।
हनुमान पद रामकिएन थाईलैंड (Hanuman Pad Ramkien Thailand)
थाईलैंड में रामकिएन नाम की एक जगह मौजूद है कहा जाता है कि सम्राट अशोक के समय में हजारों बौद्ध भिक्षु भारत से बर्मा होकर पैदल गए थे और कालांतर में वही बस गए थे। यहां पर पैरों के निशान हैं।